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'''ब्रह्मानन्द सरस्वती''' [[मधुसूदन सरस्वती]] के समकालीन थे। ये उच्च तार्किकतापूर्ण 'अद्वैतसिद्धि ग्रन्थ' के टीकाकार हैं। इनका स्थितिकाल 17वीं शताब्दी है। इनके दीक्षागुरु परमानन्द सरस्वती और विद्यागुरु नारायणतीर्थ थे। | '''ब्रह्मानन्द सरस्वती''' [[मधुसूदन सरस्वती]] के समकालीन थे। ये उच्च तार्किकतापूर्ण 'अद्वैतसिद्धि ग्रन्थ' के टीकाकार हैं। इनका स्थितिकाल 17वीं शताब्दी है। इनके दीक्षागुरु परमानन्द सरस्वती और विद्यागुरु नारायणतीर्थ थे। | ||
*[[माध्व सम्प्रदाय|माध्व]] मतावलम्बी व्यासराज के शिष्य रामाचार्य ने मधुसूदन सरस्वती से अद्वैतसिद्धि का अध्ययन कर फिर | *[[माध्व सम्प्रदाय|माध्व]] मतावलम्बी व्यासराज के शिष्य रामाचार्य ने मधुसूदन सरस्वती से अद्वैतसिद्धि का अध्ययन कर फिर उन्हीं के मत का खण्डन करने के लिए 'तरगिंणी' नामक ग्रन्थ की रचना की थी। | ||
*इससे असन्तुष्ट होकर ब्रह्मनन्दजी ने अपने [[ग्रन्थ]] 'अद्वैतसिद्धि' पर 'लघुचन्द्रिका' नाम की टीका लिखकर तरगिंणीकार के मत का खण्डन किया। | *इससे असन्तुष्ट होकर ब्रह्मनन्दजी ने अपने [[ग्रन्थ]] 'अद्वैतसिद्धि' पर 'लघुचन्द्रिका' नाम की टीका लिखकर तरगिंणीकार के मत का खण्डन किया। | ||
*अपने इस कार्य में उन्हें पूर्ण-रूपेण सफलता प्राप्त हुई। | *अपने इस कार्य में उन्हें पूर्ण-रूपेण सफलता प्राप्त हुई। |
12:05, 27 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
ब्रह्मानन्द सरस्वती मधुसूदन सरस्वती के समकालीन थे। ये उच्च तार्किकतापूर्ण 'अद्वैतसिद्धि ग्रन्थ' के टीकाकार हैं। इनका स्थितिकाल 17वीं शताब्दी है। इनके दीक्षागुरु परमानन्द सरस्वती और विद्यागुरु नारायणतीर्थ थे।
- माध्व मतावलम्बी व्यासराज के शिष्य रामाचार्य ने मधुसूदन सरस्वती से अद्वैतसिद्धि का अध्ययन कर फिर उन्हीं के मत का खण्डन करने के लिए 'तरगिंणी' नामक ग्रन्थ की रचना की थी।
- इससे असन्तुष्ट होकर ब्रह्मनन्दजी ने अपने ग्रन्थ 'अद्वैतसिद्धि' पर 'लघुचन्द्रिका' नाम की टीका लिखकर तरगिंणीकार के मत का खण्डन किया।
- अपने इस कार्य में उन्हें पूर्ण-रूपेण सफलता प्राप्त हुई।
- ब्रह्मानन्द सरस्वती ने रामाचार्य की सभी आपत्तियों का बहुत ही सन्तोषजनक समाधान किया।
- संसार का मिथ्यात्व, एकजीववाद, निर्गुणत्व, ब्रह्मनन्द, नित्यनिरतिशय आनन्दस्वरूप, मुक्तिवाद-इन सभी विषयों का इन्होंने दार्शनिक समर्थन किया है।
- ब्रह्मानन्द सरस्वती को अद्वैतवाद का एक प्रधान आचार्य माना जाता हैं।
- इनकी टीकावली के आधार पर द्वैत-अद्वैत वादों का तार्किक शास्त्रार्थ या परस्पर खण्डन-मण्डन अब तक चला आ रहा है, जो दार्शनिक प्रतिभा का एक मनोरंजन है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 459 |