"वर्ष व्रत": अवतरणों में अंतर

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*यह व्रत [[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[नवमी]] से आरम्भ करना चाहिए।
*यह व्रत [[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[नवमी]] से आरम्भ करना चाहिए।
*[[हिमालय]], हेमकूट, श्रंगवान, मेरु, मलयवान, गंधमादन नामक बड़े पर्वतों की पूजा करनी चाहिए। उस दिन उपवास करना चाहिए।
*[[हिमालय]], हेमकूट, श्रंगवान, मेरु, मलयवान, गंधमादन नामक बड़े पर्वतों की पूजा करनी चाहिए। उस दिन उपवास करना चाहिए।
*व्रत के अन्त में जम्बूद्वीप की रजत आकृति का दान करना चाहिए। इनमें <ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 959, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)। [[ब्रह्मपुराण]] (18|16), [[मत्स्यपुराण]] (113|10-12) एवं [[वायुपुराण]] (1|8)</ref> हिमालय, हेमकूट आदि को वर्षपर्वत की संज्ञा दी गयी है।  
*व्रत के अन्त में जम्बूद्वीप की रजत आकृति का दान करना चाहिए। इनमें<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 959, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)। [[ब्रह्मपुराण]] (18|16), [[मत्स्यपुराण]] (113|10-12) एवं [[वायुपुराण]] (1|8)</ref> हिमालय, हेमकूट आदि को वर्षपर्वत की संज्ञा दी गयी है।  


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06:43, 10 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह व्रत चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी से आरम्भ करना चाहिए।
  • हिमालय, हेमकूट, श्रंगवान, मेरु, मलयवान, गंधमादन नामक बड़े पर्वतों की पूजा करनी चाहिए। उस दिन उपवास करना चाहिए।
  • व्रत के अन्त में जम्बूद्वीप की रजत आकृति का दान करना चाहिए। इनमें[1] हिमालय, हेमकूट आदि को वर्षपर्वत की संज्ञा दी गयी है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 959, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)। ब्रह्मपुराण (18|16), मत्स्यपुराण (113|10-12) एवं वायुपुराण (1|8)

संबंधित लिंक

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