"बिल्वलक्ष व्रत": अवतरणों में अंतर
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*पुरुष या स्त्री द्वारा [[श्रावण]], [[वैशाख]], [[माघ]] या [[कार्तिक]] में प्रतिदिन तीन सहस्र बिल्व बत्तियाँ (बत्तियाँ रूई से स्त्री द्वारा बटी जाती हैं और घी या तिल के तेल में डुबोयी रहती हैं) जलायी जाती हैं, ये बत्तियाँ ताम्र पात्र में रख दी जाती हैं और [[शिव]] मन्दिर में या [[गंगा नदी|गंगा]] के तट पर या गोशाला में या किसी ब्राह्मण के समक्ष यह कृत्य होता है। | *पुरुष या स्त्री द्वारा [[श्रावण]], [[वैशाख]], [[माघ]] या [[कार्तिक]] में प्रतिदिन तीन सहस्र बिल्व बत्तियाँ (बत्तियाँ रूई से स्त्री द्वारा बटी जाती हैं और घी या तिल के तेल में डुबोयी रहती हैं) जलायी जाती हैं, ये बत्तियाँ ताम्र पात्र में रख दी जाती हैं और [[शिव]] मन्दिर में या [[गंगा नदी|गंगा]] के तट पर या गोशाला में या किसी ब्राह्मण के समक्ष यह कृत्य होता है। | ||
*एक लाख या एक करोड़ बत्तियाँ बनायी जाती | *एक लाख या एक करोड़ बत्तियाँ बनायी जाती हैं। | ||
*इस व्रत का [[पूर्णिमा]] पर उद्यापन किया जाता | *यदि सम्भव हो तो सभी बत्तियाँ एक ही दिन जलायी जा सकती हैं। | ||
*इस व्रत का [[पूर्णिमा]] पर उद्यापन किया जाता है।<ref>वर्षक्रियादीपक (398-403)</ref> | |||
07:17, 10 सितम्बर 2010 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- पुरुष या स्त्री द्वारा श्रावण, वैशाख, माघ या कार्तिक में प्रतिदिन तीन सहस्र बिल्व बत्तियाँ (बत्तियाँ रूई से स्त्री द्वारा बटी जाती हैं और घी या तिल के तेल में डुबोयी रहती हैं) जलायी जाती हैं, ये बत्तियाँ ताम्र पात्र में रख दी जाती हैं और शिव मन्दिर में या गंगा के तट पर या गोशाला में या किसी ब्राह्मण के समक्ष यह कृत्य होता है।
- एक लाख या एक करोड़ बत्तियाँ बनायी जाती हैं।
- यदि सम्भव हो तो सभी बत्तियाँ एक ही दिन जलायी जा सकती हैं।
- इस व्रत का पूर्णिमा पर उद्यापन किया जाता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वर्षक्रियादीपक (398-403)
संबंधित लिंक
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