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'''खाडिलकर, कृष्णजी प्रभाकर''' (1872-1948 ई.) नाट्याचार्य। इनका जन्म सांगली में हुआ था। विद्यार्थी अवस्था में ही इनकी नाट्यप्रतिभा चमक उठी। ये बहुमुखी प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे जो परीक्षा में, खेल में और वक्तृत्व की स्पर्धा में सदा चमकते थे। हाई स्कूल तथा कालेज में पढ़ते हुए इन्होंने संस्कृत तथा अंग्रेजी नाटकों का गहन अध्ययन किया।
'''खाडिलकर, कृष्णजी प्रभाकर''' (1872-1948 ई.) नाट्याचार्य थे। इनका जन्म [[सांगली]] में हुआ था। विद्यार्थी अवस्था में ही इनकी नाट्यप्रतिभा चमक उठी। ये बहुमुखी प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे जो परीक्षा में, खेल में और वक्तृत्व की स्पर्धा में सदा चमकते थे। हाई स्कूल तथा कॉलेज में पढ़ते हुए इन्होंने [[संस्कृत]] तथा [[अंग्रेजी|अंग्रेजी नाटकों]] का गहन अध्ययन किया।


वकील होने पर स्वदेशसेवा करने की उदात्त भावना से ये लोकमान्य तिलक के सहकारी बने। इनके स्वभाव में लालित्य और गांभीर्य का अलौकिक मेल था। लोकजागरण के उदात्त उद्देश्य से ये नाट्यसर्जना करने लगे। इन्होंने शेक्सपियर की नाट्यशैली को अपनाकर लगभग 15 कलापूर्ण एवं प्रभावशाली नाटकों की सफल रचना की। इन्होंने कलापूर्ण गद्यनाटक के समान ही संगीतनाटक भी लिखे और गद्यनाटकों को संगीतनाटक जैसा कलापूर्ण बनाया।
वकील होने पर स्वदेश सेवा करने की उदात्त भावना से ये [[लोकमान्य तिलक]] के सहकारी बने। इनके स्वभाव में लालित्य और गांभीर्य का अलौकिक मेल था। लोक जागरण के उदात्त उद्देश्य से ये नाट्य सर्जना करने लगे। इन्होंने शेक्सपियर की नाट्यशैली को अपनाकर लगभग 15 कला पूर्ण एवं प्रभावशाली नाटकों की सफल रचना की। इन्होंने कला पूर्ण गद्य नाटक के समान ही संगीत नाटक भी लिखे और गद्य नाटकों को संगीत नाटक जैसा कलापूर्ण बनाया।


1893 में इनका सवाई माधवराव की मृत्यु नामक गद्य एवं दुखांत नाटक अभिनीत हुआ जिसने दर्शकों को विशेष आकर्षित किया। इसके उपरांत कीचकवध और भाऊ बंदकी जैसे गद्यनाटकों ने इनकी लोकप्रियता को चार चाँद लगाए। इनका कीचकवध नाटक सामयिक राजनीतिक परिस्थितियों पर लिखा व्यंग्य करने में इतना सफल रहा कि अंग्रेज सरकार को उसे जब्त करना पड़ा। पौराणिक नाट्यवस्तु द्वारा सामयिक राजनीति की मार्मिक आलोचना करने में ये बड़े सफल थे। इसी प्रकार भाऊ बंदकी नामक ऐतिहासिक नाटक लिखने में भी ये खूब सफल रहे। 1912 से इन्होंने संगीतनाटक लिखने प्रारंभ किए और 1936 तक इस प्रकार के सात नाटक लिखे। जिनमें 1. संगीत मानापमान, 2.संगीत स्वयंवर, 3.संगीत द्रौपदी उत्कृष्ट नाटक है।
1893 में इनका सवाई माधवराव की मृत्यु नामक गद्य एवं दुखांत नाटक अभिनीत हुआ जिसने दर्शकों को विशेष आकर्षित किया। इसके उपरांत '''कीचक वध''' और ''भाऊ बंदकी'' जैसे गद्य नाटकों ने इनकी लोकप्रियता को चार चाँद लगाए। इनका कीचक वध नाटक सामयिक राजनीतिक परिस्थितियों पर लिखा व्यंग्य करने में इतना सफल रहा कि [[अंग्रेज़ी शासन|अंग्रेज सरकार]] को उसे जब्त करना पड़ा।  


नाट्यवस्तु के विन्यास, चरित्रचित्रण, प्रभावकारी कथोकथन, रसों के निर्वाह, सभी दृष्टियों से खाडिलकर के नाटक कलापूर्ण हैं। इनकी नाट्यसृष्टि श्रृंगार, वीर, क रु णादि रसों से ओतप्रोत है। इनकी नाट्य रचना से नाट्यसाहित्य और रंगमंच का यथेष्ट उत्कर्ष हुआ। इनकी रचना को स्रोत आदर्शवाद था जो इनके जीवन में प्राय: उमड़ पड़ता था इन्होंने स्पष्ट कहा है कि राष्ट्रोन्नति में सहायक हो, ऐसा लोकजागरण करना या लोकशिक्षा देना मेरी नाट्यकला का प्रधान उद्देश्य है। नाटक कार को चाहिए कि वह आदर्श चरित्रचित्रण दर्शकों के सामने प्रस्तुत करे ताकि वे उनसे प्रभावित होकर कर्मयोग का आचरण करें।
पौराणिक नाट्यवस्तु द्वारा सामयिक राजनीति की मार्मिक आलोचना करने में ये बड़े सफल थे। इसी प्रकार भाऊ बंदकी नामक ऐतिहासिक नाटक लिखने में भी ये खूब सफल रहे। [[1912]] से इन्होंने संगीत नाटक लिखने प्रारंभ किए और [[1936]] तक इस प्रकार के सात नाटक लिखे। जिनमें
#संगीत मानापमान,  
#संगीत स्वयंवर,  
#संगीत द्रौपदी उत्कृष्ट नाटक है।


खाडिलकर प्रखर राष्ट्रभक्त और तेजस्वी संपादक भी थे जिन्होंने बंबई में नवाकाल नामक दैनिक पत्र को लगभग 16 साल तक सफलता से संपादित किया। ये मराठी के शेक्सपियर कहलाते है। आयु के अंतिम दिनों में इन्होंने अध्यात्म पर भी गंभीर ग्रंथ लिखे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 3|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=310 |url=}}</ref>  
नाट्यवस्तु के विन्यास, चरित्र-चित्रण, प्रभावकारी कथोपकथन, [[रस|रसों]] के निर्वाह, सभी दृष्टियों से खाडिलकर के नाटक कलापूर्ण हैं। इनकी नाट्यसृष्टि [[श्रृंगार रस|श्रृंगार]], [[वीर रस|वीर]], [[रस|करुणादि]] रसों से ओतप्रोत है। इनकी नाट्य रचना से [[नाटक|नाट्य साहित्य]] और [[रंगमंच]] का यथेष्ट उत्कर्ष हुआ। इनकी रचना को स्रोत आदर्शवाद था जो इनके जीवन में प्राय: उमड़ पड़ता था इन्होंने स्पष्ट कहा है कि राष्ट्रोन्नति में सहायक हो, ऐसा लोकजागरण करना या लोकशिक्षा देना मेरी नाट्यकला का प्रधान उद्देश्य है। नाटककार को चाहिए कि वह आदर्श चरित्र-चित्रण दर्शकों के सामने प्रस्तुत करे ताकि वे उनसे प्रभावित होकर कर्मयोग का आचरण करें।
 
खाडिलकर प्रखर राष्ट्रभक्त और तेजस्वी संपादक भी थे जिन्होंने [[बंबई]] में '''नवाकाल''' नामक [[दैनिक अखबार|दैनिक पत्र]] को लगभग 16 [[साल]] तक सफलता से संपादित किया। ये '''[[मराठी]] के शेक्सपियर''' कहलाते है। आयु के अंतिम दिनों में इन्होंने अध्यात्म पर भी गंभीर [[ग्रंथ]] लिखे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 3|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=310 |url=}}</ref>  





06:51, 13 जनवरी 2020 का अवतरण

खाडिलकर, कृष्णजी प्रभाकर (1872-1948 ई.) नाट्याचार्य थे। इनका जन्म सांगली में हुआ था। विद्यार्थी अवस्था में ही इनकी नाट्यप्रतिभा चमक उठी। ये बहुमुखी प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे जो परीक्षा में, खेल में और वक्तृत्व की स्पर्धा में सदा चमकते थे। हाई स्कूल तथा कॉलेज में पढ़ते हुए इन्होंने संस्कृत तथा अंग्रेजी नाटकों का गहन अध्ययन किया।

वकील होने पर स्वदेश सेवा करने की उदात्त भावना से ये लोकमान्य तिलक के सहकारी बने। इनके स्वभाव में लालित्य और गांभीर्य का अलौकिक मेल था। लोक जागरण के उदात्त उद्देश्य से ये नाट्य सर्जना करने लगे। इन्होंने शेक्सपियर की नाट्यशैली को अपनाकर लगभग 15 कला पूर्ण एवं प्रभावशाली नाटकों की सफल रचना की। इन्होंने कला पूर्ण गद्य नाटक के समान ही संगीत नाटक भी लिखे और गद्य नाटकों को संगीत नाटक जैसा कलापूर्ण बनाया।

1893 में इनका सवाई माधवराव की मृत्यु नामक गद्य एवं दुखांत नाटक अभिनीत हुआ जिसने दर्शकों को विशेष आकर्षित किया। इसके उपरांत कीचक वध और भाऊ बंदकी जैसे गद्य नाटकों ने इनकी लोकप्रियता को चार चाँद लगाए। इनका कीचक वध नाटक सामयिक राजनीतिक परिस्थितियों पर लिखा व्यंग्य करने में इतना सफल रहा कि अंग्रेज सरकार को उसे जब्त करना पड़ा।

पौराणिक नाट्यवस्तु द्वारा सामयिक राजनीति की मार्मिक आलोचना करने में ये बड़े सफल थे। इसी प्रकार भाऊ बंदकी नामक ऐतिहासिक नाटक लिखने में भी ये खूब सफल रहे। 1912 से इन्होंने संगीत नाटक लिखने प्रारंभ किए और 1936 तक इस प्रकार के सात नाटक लिखे। जिनमें

  1. संगीत मानापमान,
  2. संगीत स्वयंवर,
  3. संगीत द्रौपदी उत्कृष्ट नाटक है।

नाट्यवस्तु के विन्यास, चरित्र-चित्रण, प्रभावकारी कथोपकथन, रसों के निर्वाह, सभी दृष्टियों से खाडिलकर के नाटक कलापूर्ण हैं। इनकी नाट्यसृष्टि श्रृंगार, वीर, करुणादि रसों से ओतप्रोत है। इनकी नाट्य रचना से नाट्य साहित्य और रंगमंच का यथेष्ट उत्कर्ष हुआ। इनकी रचना को स्रोत आदर्शवाद था जो इनके जीवन में प्राय: उमड़ पड़ता था इन्होंने स्पष्ट कहा है कि राष्ट्रोन्नति में सहायक हो, ऐसा लोकजागरण करना या लोकशिक्षा देना मेरी नाट्यकला का प्रधान उद्देश्य है। नाटककार को चाहिए कि वह आदर्श चरित्र-चित्रण दर्शकों के सामने प्रस्तुत करे ताकि वे उनसे प्रभावित होकर कर्मयोग का आचरण करें।

खाडिलकर प्रखर राष्ट्रभक्त और तेजस्वी संपादक भी थे जिन्होंने बंबई में नवाकाल नामक दैनिक पत्र को लगभग 16 साल तक सफलता से संपादित किया। ये मराठी के शेक्सपियर कहलाते है। आयु के अंतिम दिनों में इन्होंने अध्यात्म पर भी गंभीर ग्रंथ लिखे।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 3 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 310 |

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