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*उस दिन नास्तिकों, पाषण्डियों, महापातकियों एवं चाण्डालों से नहीं बोलना चाहिए।
*उस दिन नास्तिकों, पाषण्डियों, महापातकियों एवं चाण्डालों से नहीं बोलना चाहिए।
*[[हरि]] एवं लक्ष्मी को [[चंद्र देवता|चन्द्र]] एवं रात्रि के समान माना जाता है।<ref> विष्णुधर्मोत्तरपुराण (3|216|17)</ref>
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07:46, 12 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • (पौर्णमासी) फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर करना चाहिए।
  • तिथिव्रत देवता विष्णु का व्रत है।
  • कर्ता तेल एवं नमक का त्याग करके नक्तविधि से रहता है।
  • एक वर्ष तक करना चाहिए।
  • चार मासों की तीन अवधियों में लक्ष्मी के साथ केशव की पूजा करनी चाहिए।
  • उस दिन नास्तिकों, पाषण्डियों, महापातकियों एवं चाण्डालों से नहीं बोलना चाहिए।
  • हरि एवं लक्ष्मी को चन्द्र एवं रात्रि के समान माना जाता है।[1]

 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विष्णुधर्मोत्तरपुराण (3|216|17)

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