"सूर्य व्रत": अवतरणों में अंतर

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10:13, 12 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • षष्ठी पर उपवास करना चाहिए।
  • सप्तमी पर 'भास्कर प्रसन्न हों' के साथ में सूर्य पूजा करनी चाहिए।
  • सभी रोगों से मुक्ति मिलती है।[1]
  • माघ में प्रात:काल स्नान करके तथा किसी गृहस्थ एवं उसकी पत्नी का पुष्पों, वस्त्रों, आभूषणों एवं भोज से सम्मान करना चाहिए।
  • सौभाग्य तथा स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।[2]
  • जब आश्विन शुक्ल पक्ष के रविवार को चतुर्दशी में आरम्भ कर सकते हैं।
  • देवता शिव, शिवलिंग के लिए विशिष्ट स्नान, लेप रूप में रोचना का प्रयोग तथा लाल पुष्पों से पूजा करनी चाहिए।
  • कपिला गाय के दूध एवं घी से नैवेद्य करना चाहिए।
  • किसी शैव ब्राह्मण को कुंकुम से युक्त भोजन दान करना चाहिए।
  • इससे पुत्रों की उत्पत्ति होती है।[3]
  • रविवार को कर्ता और कर्म करता है तथा गुड़ एवं नमक से युक्त रोटियों से सूर्य की पूजा करता है और उस दिन नक्त रखता है।
  • सभी कामनाओं की पूर्ति, सूर्य लोक की प्राप्ति होती है।[4]
  • चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी एवं सप्तमी पर सूर्य पूजा करनी चाहिए।
  • श्वेत मिट्टी से एक वेदिका का निर्माण, जिस पर रंगीन चूर्णों से आठ दल वाले कमल की आकृति बनी हो करना चाहिए।
  • बीजकोष पर सूर्य प्रतिमा का स्थापन करना चाहिए।
  • पूर्व दिशा से आरम्भ कर आठ दिशाओं में अर्ध देवों, देवियों एवं मुनियों का चित्र खींचना तथा वसन्त से आरम्भ कर सभी 6 ऋतुओं में ऐसे दो को रखना चाहिए।
  • घी की आहुतियाँ देनी चाहिए, 108 बार सूर्य को तथा 8 बार अन्य लोगों को नमस्कार करना चाहिए।
  • एक वर्ष तक करना चाहिए।
  • अन्त में गोदान एवं स्वर्ण दान करना चाहिए।
  • सूर्यलोक की प्राप्ति होती है।
  • यदि 12 वर्षों तक किया जाए तो सायुज्य की प्राप्ति होती है।[5]
  • मार्गशीर्ष में (रविवार को) आरम्भ कर 12 मासों के लिए रखना चाहिए।
  • लाल चन्दन से किसी ताम्रपत्र पर बीजकोष के साथ 12 दलों वाले कमल का चित्र तथा उस पर सूर्य पूजा करनी चाहिए।
  • कतिपय मासों में देवता के विभिन्न नाम[6]नैवेद्य तथा कर्ता द्वारा खाया जाने वाला विशिष्ट पदार्थ चढ़ाना चाहिए।
  • विभिन्न पाप से मुक्ति एवं कामनापूर्ति होती है।[7]
  • यह वारव्रत है।
  • सप्तमी को पूरे पौष भर नक्त तथा दोनों सप्तमियों पर उपवास करना चाहिए।
  • पौष में सूर्य एवं अग्नि की प्रतिदिन तीन बार पूजा करनी चाहिए।[8]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 388-389)
  2. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 794, पद्मपुराण से उद्धरण), कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 444, मत्स्यपुराण 101|36-47 के समान ही)
  3. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 64-65, कालोत्तरपुराण से उद्धरण)
  4. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 779-780, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)
  5. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 770-774, विष्णुधर्मोत्तरपुराण 1|167|11-15, 168|1-30 से उद्धरण)
  6. (यथा– मार्गशीर्ष में मित्र, पौष में विष्णु, माघ में वरुण आदि)
  7. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 552-557, सौरधर्म से उद्धरण)
  8. कृत्यरत्नाकर (475-476, भविष्यपुराण से उद्धरण

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