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'''स्वामी सारदानन्द''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Swami Saradananda'', जन्म- [[23 दिसम्वर]], [[1865]]; मृत्यु- [[19 अगस्त]], [[1927]]) [[रामकृष्ण परमहंस]] के शिष्यों में से एक थे। उनका पूर्वाश्रम का नाम शरतचन्द्र चक्रवर्ती था। [[रामकृष्ण मिशन]] की स्थापना के बाद वे इसके प्रथम संपादक बने और मृत्यु तक इस पद पर बने रहे। [[शारदा देवी]] के रहने के लिए स्वामी सारदानन्द ने [[कोलकाता]] में 'उद्वोधन भवन' का निर्माण करवाया था।
'''स्वामी सारदानन्द''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Swami Saradananda'', जन्म- [[23 दिसम्बर]], [[1865]]; मृत्यु- [[19 अगस्त]], [[1927]]) [[रामकृष्ण परमहंस]] के शिष्यों में से एक थे। उनका पूर्वाश्रम का नाम शरतचन्द्र चक्रवर्ती था। [[रामकृष्ण मिशन]] की स्थापना के बाद वे इसके प्रथम संपादक बने और मृत्यु तक इस पद पर बने रहे। [[शारदा देवी]] के रहने के लिए स्वामी सारदानन्द ने [[कोलकाता]] में 'उद्वोधन भवन' का निर्माण करवाया था।
==परिचय==
==परिचय==
स्वामी सारदानन्द का जन्म 23 दिसंबर, 1865 को कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) में हुआ था। वे रामकृष्ण परमहंस के संन्यासी शिष्यों में से एक थे। जब 'रामकृष्ण मिशन' की स्थापना [[स्वामी विवेकानन्द]] ने की, तब इसके प्रथम संपादक स्वामी सारदानन्द ही बने। वह 19 अगस्त, 1927 तक अपनी पूर्ण जीवन तक अर्थात मृत्यु तक इस पद पर बने रहे।<ref name="pp">{{cite web |url=http://shoot2pen.in/2020/12/23/swami-saradanand/ |title=स्वामी सारदानन्द|accessmonthday=10 अप्रॅल|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=shoot2pen.in |language=हिंदी}}</ref>
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15:27, 10 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण

स्वामी सारदानन्द

स्वामी सारदानन्द (अंग्रेज़ी: Swami Saradananda, जन्म- 23 दिसम्बर, 1865; मृत्यु- 19 अगस्त, 1927) रामकृष्ण परमहंस के शिष्यों में से एक थे। उनका पूर्वाश्रम का नाम शरतचन्द्र चक्रवर्ती था। रामकृष्ण मिशन की स्थापना के बाद वे इसके प्रथम संपादक बने और मृत्यु तक इस पद पर बने रहे। शारदा देवी के रहने के लिए स्वामी सारदानन्द ने कोलकाता में 'उद्वोधन भवन' का निर्माण करवाया था।

परिचय

स्वामी सारदानन्द का जन्म 23 दिसंबर, 1865 को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में हुआ था। वे रामकृष्ण परमहंस के संन्यासी शिष्यों में से एक थे। जब 'रामकृष्ण मिशन' की स्थापना स्वामी विवेकानन्द ने की, तब इसके प्रथम संपादक स्वामी सारदानन्द ही बने। वह 19 अगस्त, 1927 तक अपनी पूर्ण जीवन तक अर्थात मृत्यु तक इस पद पर बने रहे।[1]

रचना

स्वामी सारदानन्द ने रामकृष्ण की प्रामाणिक जीवनी ग्रंथ 'श्रीरामकृष्ण लीलाप्रसंग' की रचना की। पाँच खंडों में रचित यह ग्रंथ रामकृष्ण की जीवनियों में सर्वश्रेष्ठ है। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘भारत में शक्तिपूजा’ और ‘गीतातत्व’ नामक दो और पुस्तकों का लेखन किया।

कथन

"Through selfless work the mind gets purified. And when the mind becomes pure, there arise knowledge and devotion in it."

तात्पर्य - "निस्वार्थ कार्य से मन शुद्ध होता है और जब मन पवित्र हो जाता है तो उसमें ज्ञान और भक्ति पैदा होती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. स्वामी सारदानन्द (हिंदी) shoot2pen.in। अभिगमन तिथि: 10 अप्रॅल, 2021।

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