"संवर शील बौद्ध निकाय": अवतरणों में अंतर
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बुरे विषयों की ओर प्रवृत्त इन्द्रियों की उन विषयों से रक्षा करना अर्थात अपनी इन्द्रियों को बुरे विषयों में न लगने देना, इस प्रकार अपने द्वारा स्वीकृत आचरणों की रक्षा करना, ज्ञान के द्वारा क्लेश (नीवरण) धर्मों को उत्पन्न होने से रोकना, विपरीत धर्मों से समागम होने पर उन्हें सहन करना तथा उत्पन्न हो गये काम-वितर्क आदि को उत्पन्न न होने देने के लिए प्रयास करना 'संवर शील' है। | बुरे विषयों की ओर प्रवृत्त इन्द्रियों की उन विषयों से रक्षा करना अर्थात अपनी इन्द्रियों को बुरे विषयों में न लगने देना, इस प्रकार अपने द्वारा स्वीकृत आचरणों की रक्षा करना, ज्ञान के द्वारा क्लेश (नीवरण) धर्मों को उत्पन्न होने से रोकना, विपरीत धर्मों से समागम होने पर उन्हें सहन करना तथा उत्पन्न हो गये काम-वितर्क आदि को उत्पन्न न होने देने के लिए प्रयास करना 'संवर शील' है। | ||
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20:08, 14 सितम्बर 2010 का अवतरण
बौद्ध धर्म के अठारह बौद्ध निकायों में संवर शील की यह परिभाषा है:-
बुरे विषयों की ओर प्रवृत्त इन्द्रियों की उन विषयों से रक्षा करना अर्थात अपनी इन्द्रियों को बुरे विषयों में न लगने देना, इस प्रकार अपने द्वारा स्वीकृत आचरणों की रक्षा करना, ज्ञान के द्वारा क्लेश (नीवरण) धर्मों को उत्पन्न होने से रोकना, विपरीत धर्मों से समागम होने पर उन्हें सहन करना तथा उत्पन्न हो गये काम-वितर्क आदि को उत्पन्न न होने देने के लिए प्रयास करना 'संवर शील' है।