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11:04, 5 जुलाई 2023 के समय का अवतरण

शांता कुमार
शांता कुमार
शांता कुमार
पूरा नाम शांता कुमार
जन्म 2 सितम्बर, 1934
जन्म भूमि कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
पति/पत्नी संतोष शैलजा
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनीतिज्ञ
पार्टी भारतीय जनता पार्टी
पद भूतपूर्व मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश

प्रथम बार- 22 जून 1977 से 14 फ़रवरी 1980 तक
दूसरी बार- 5 मार्च 1990 से 15 दिसम्बर 1992

विशेष योगदान हिमाचल प्रदेश में इन्हें 'पानी वाले मुख्यमंत्री' के रूप में जाना जाता है। पेयजल की जो दिक्कत थी, इन्होंने इसे बखूबी समझा और उसके निवारण के लिए कदम उठाये।
अन्य जानकारी सियासत के इतिहास में अपने खुद के वोट से ही सीएम बनने वाले नेता के तौर पर शांता कुमार की अनोखी पहचान हमेशा कायम रहेगी।
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शांता कुमार (अंग्रेज़ी: Shanta Kumar, जन्म- 2 सितम्बर, 1934, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश) भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। हिमाचल के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बनने का खिताब शांता कुमार के नाम है। इस सूबे में वह भारतीय जनता पार्टी के खासे कद्दावार नेता के तौर पर जाने जाते हैं। उन्होंने सियासत को भले ही अलविदा कह दिया हो, लेकिन हिमाचल प्रदेश की राजनीति में अभी भी उनका दबदबा कायम है। उन्हें सूबे की जनता को बेहतरीन तरीके से समझने वाले नेता के तौर पर माना जाता है। उन्होंने दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री पद को सम्भाला है। सियासत के इतिहास में अपने खुद के वोट से ही सीएम बनने वाले नेता के तौर पर उनकी अनोखी पहचान हमेशा कायम रहेगी।

परिचय

हिमाचल प्रदेश विधानसभा के 2017 में हुए चुनाव के दौरान भी शांता कुमार का प्रत्‍याशियों के चयन में अप्रत्‍यक्ष रूप से अहम हाथ रहा था। शांता कुमार प्रदेश की भौगोलिक स्थिति व लोगों की नब्‍ज को समझते हैं। 12 सितंबर 1934 को जन्‍मे शांता कुमार ने 1963 में गढ़जमूला पंचायत से पंच निर्वाचित होकर अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। वह 1977 से 1980 तक पहली बार जनता दल से मुख्‍यमंत्री बने थे। इसके बाद 1990 से 1992 तक दोबारा प्रदेश की कमान संभाली। इसके अलावा 1989 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए। इसके बाद 19981999 से 2004 तक तीसरी बार और 2014 से 2019 तक चौथी बार लोकसभा सदस्‍य के रूप में चुने गए। 2019 के बाद शांता कुमार ने सक्रिय राजनीति से सन्‍यास ले लिया।[1]

पानी वाले मुख्‍यमंत्री

शांता कुमार भाजपा में एक ऐसा नाम है, जो आज सक्रिय राजनीति से थोड़ा दूर होने के बावजूद संगठन व पार्टी में मजबूत पकड़ रखते हैं। शांता कुमार एक राजनीतिज्ञ ही नहीं बल्कि एक लेखक व साहित्यकार के रूप में भी जाने जाते हैं। हिमाचल प्रदेश में इन्हें 'पानी वाले मुख्यमंत्री' के रूप में जाना जाता है। पेयजल को लेकर जो लोगों की दिक्कत थी इन्होंने इसे बखूबी समझा और उसके निवारण के लिए कदम उठाए व हर घर को शुद्ध पेयजल पहुंचाने का प्रयास किया।

आपाताकाल के बाद का चुनाव

इंदिरा गांधी सरकार ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लागू किया था। 21 महीने तक लगे इस आपातकाल को 21 मार्च 1977 को खत्म किया गया था। इसके बाद हिमाचल में विधानसभा का चौथा चुनाव हुआ। कई मायनों में साल 1977 का ये विधानसभा चुनाव खास बन गया। इस चुनाव में सूबे में बीजेपी ने बढ़त बनाई थी और शांता कुमार मुख्यमंत्री बने थे। बीजेपी के दिग्गज नेता शांता कुमार के सीएम पद तक पहुंचने का वाकया काफी रोचक है।[2]

इस सूबे में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार आई थी और तब खुद के अपने एक वोट की बदौलत शांता कुमार ने सीएम बनकर इतिहास रचा था। सीएम पद के लिए शांता कुमार का मुकाबला हमीरपुर के लोकसभा सदस्य ठाकुर रणजीत सिंह से था। कांग्रेस पूरी धमक के साथ 56 सीटों पर उतरी थी, लेकिन बीजेपी का ऐसा असर रहा कि उसे तब 9 ही सीटों पर जीत हासिल हो पाई थी। बीजेपी के साथ मिलकर सूबे के कई छोटे-छोटे राजनीतिक दलों ने ये चुनाव लड़ा। चुनाव आयोग में इन छोटे दलों का रजिस्ट्रेशन नहीं था, लेकिन बीजेपी की छत्रछाया में इन्हें भी इन चुनावों का फायदा मिला। बीजेपी पूरे दमखम के साथ सूबे की सभी 68 सीटों पर मुकाबले के लिए उतरी थी। तब बीजेपी ने 53 सीटों पर जीत हासिल की तो 6 निर्दलीय विधायक उसके समर्थन में आ गए। फिर क्या था सूबे में बीजेपी की सरकार आसानी से बन गई।

काम आया खुद का वोट

साल 1977 के विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने उतरी बीजेपी के सामने भी इस दौरान एक चुनौती पेश आई। उसके सामने विधायक दल का नेता चुनने के लिए हुई बैठक में दो गुटों की असहमति से पार पाने का सवाल उठा था। इस बैठक में एक गुट ने हिमाचल सीएम पद के सांसद रणजीत सिंह का नाम आगे किया तो दूसरे ने शांता कुमार के नाम का प्रस्ताव रखा। मसला तब पेश आया जब दोनों ही गुट अपनी बात से टस से मस नहीं हुए। अब सीएम पद के लिए चुनाव के लिए वोटिंग ही इकलौता रास्ता बचा रह गया।

यहां भी बात अटक गई, क्योंकि शांता कुमार और रणजीत सिंह दोनों को ही बराबर 29 विधायकों का समर्थन मिला। इसमें शांता कुमार ने खुद का एक वोट डालकर बाजी मार ली। उन्होंने विधायक के तौर ये वोट दिया तो उनके वोटों की संख्या रणजीत सिंह के मुकाबले 30 पहुंच गई और वो सीएम बन गए। उनके प्रतिद्वंद्वी ठाकुर रणजीत सिंह हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से सांसद थे इस वजह से उनका खुद का वोट नहीं था।[2]

ऊना के हाथ से निकला सीएम का मौका

साल 1977 में ठाकुर रणजीत सिंह केवल एक वोट से हिमाचल प्रदेश के सीएम बनने से रह गए थे। उन्हें ये एक वोट मिलता तो ऊना जिले के नाम पहली बार सूबे के सीएम चुने जाने का खिताब होता। दरअसल ठाकुर रणजीत सिंह ऊना जिले के कुटलैहड़ हलके के रहने वाले हैं। इस जिले से आज तक हिमाचल के सीएम चुनकर नहीं आए हैं। रणजीत सिंह के सीएम बनने की राह में दो विधायकों ने रोड़े अटकाए थे। इन दोनों ही ने उन्हें वोट नहीं दिया। इसकी वजह रही कि अगर सिंह सीएम बनते तो उन्हें 6 महीने के अंदर सांसद का पद छोड़ना पड़ता और उनके लिए विधानसभा चुनाव लड़ना जरूरी हो जाता। अपने राजनीतिक कॅरियर को दांव पर लगते देख तब इन दो विधायकों ने शांता कुमार को वोट दिया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भारतीय राज्यों में पदस्थ मुख्यमंत्री
क्रमांक राज्य मुख्यमंत्री तस्वीर पार्टी पदभार ग्रहण
1. अरुणाचल प्रदेश पेमा खांडू
भाजपा 17 जुलाई, 2016
2. असम हिमंता बिस्वा सरमा
भाजपा 10 मई, 2021
3. आंध्र प्रदेश वाई एस जगनमोहन रेड्डी
वाईएसआर कांग्रेस पार्टी 30 मई, 2019
4. उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ
भाजपा 19 मार्च, 2017
5. उत्तराखण्ड पुष्कर सिंह धामी
भाजपा 4 जुलाई, 2021
6. ओडिशा नवीन पटनायक
बीजू जनता दल 5 मार्च, 2000
7. कर्नाटक सिद्धारमैया
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 20 मई, 2023
8. केरल पिनाराई विजयन
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी 25 मई, 2016
9. गुजरात भूपेन्द्र पटेल
भाजपा 12 सितम्बर, 2021
10. गोवा प्रमोद सावंत
भाजपा 19 मार्च, 2019
11. छत्तीसगढ़ विष्णु देव साय
भारतीय जनता पार्टी 13 दिसम्बर, 2023
12. जम्मू-कश्मीर रिक्त (राज्यपाल शासन) लागू नहीं 20 जून, 2018
13. झारखण्ड हेमन्त सोरेन
झारखंड मुक्ति मोर्चा 29 दिसम्बर, 2019
14. तमिल नाडु एम. के. स्टालिन
द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम 7 मई, 2021
15. त्रिपुरा माणिक साहा
भाजपा 15 मई, 2022
16. तेलंगाना अनुमुला रेवंत रेड्डी
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस 7 दिसंबर, 2023
17. दिल्ली अरविन्द केजरीवाल
आप 14 फ़रवरी, 2015
18. नागालैण्ड नेफियू रियो
एनडीपीपी 8 मार्च, 2018
19. पंजाब भगवंत मान
आम आदमी पार्टी 16 मार्च, 2022
20. पश्चिम बंगाल ममता बनर्जी
तृणमूल कांग्रेस 20 मई, 2011
21. पुदुचेरी एन. रंगास्वामी
कांग्रेस 7 मई, 2021
22. बिहार नितीश कुमार
जदयू 27 जुलाई, 2017
23. मणिपुर एन. बीरेन सिंह
भाजपा 15 मार्च, 2017
24. मध्य प्रदेश मोहन यादव
भाजपा 13 दिसंबर, 2023
25. महाराष्ट्र एकनाथ शिंदे
शिव सेना 30 जून, 2022
26. मिज़ोरम लालदुहोमा
जोरम पीपल्स मूवमेंट 8 दिसम्बर, 2023
27. मेघालय कॉनराड संगमा
एनपीपी 6 मार्च, 2018
28. राजस्थान भजन लाल शर्मा
भारतीय जनता पार्टी 15 दिसम्बर, 2023
29. सिक्किम प्रेम सिंह तमांग
सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा 27 मई, 2019
30. हरियाणा नायब सिंह सैनी
भाजपा 12 मार्च, 2024
31. हिमाचल प्रदेश सुखविंदर सिंह सुक्खू
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 11 दिसम्बर, 2022