"विष्णुत्रिमूर्ति व्रत": अवतरणों में अंतर
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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है। | *[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है। | ||
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*यह देवता मनुष्यों के शरीर के भीतर वात, पित्त एवं कफ के रूप में विराजमान रहते हैं, इस प्रकार विष्णु के तीन स्थूल रूप हैं। [[ज्येष्ठ]] [[शुक्ल पक्ष]] [[तृतीया]] को उपवास करना चाहिए। | *यह देवता मनुष्यों के शरीर के भीतर वात, पित्त एवं कफ के रूप में विराजमान रहते हैं, इस प्रकार विष्णु के तीन स्थूल रूप हैं। | ||
*इसमें [[विष्णु]] की पूजा करनी चहिए। प्रात: वायु पूजा करनी चहिए। मध्याह्न में अग्नि में जौ एवं तिल से होम तथा रात्रि में जल में चन्द्रपूजा करनी चाहिए। एक वर्ष तक शुक्ल पक्ष की तृतीया पर पूजा करनी चहिए। | *[[ज्येष्ठ]] [[शुक्ल पक्ष]] [[तृतीया]] को उपवास करना चाहिए। | ||
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12:44, 17 सितम्बर 2010 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- विष्णु जी के तीन रूप हैं, यथा– वायु, चन्द्र एवं सूर्य ये तीनों रूप तीन लोकों की रक्षा करते हैं।
- यह देवता मनुष्यों के शरीर के भीतर वात, पित्त एवं कफ के रूप में विराजमान रहते हैं, इस प्रकार विष्णु के तीन स्थूल रूप हैं।
- ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया को उपवास करना चाहिए।
- इसमें विष्णु की पूजा करनी चहिए।
- प्रात: वायु पूजा करनी चहिए।
- मध्याह्न में अग्नि में जौ एवं तिल से होम तथा रात्रि में जल में चन्द्रपूजा करनी चाहिए।
- एक वर्ष तक शुक्ल पक्ष की तृतीया पर पूजा करनी चहिए।
- इससे स्वर्ग प्राप्ति होती है।
- यदि तीन वर्षों तक किया जाए तो 5000 वर्षों तक स्वर्ग में स्थिति रहती है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विष्णुधर्मोत्तरपुराण (3|136|1-26)।
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