"वृन्ताक त्याग विधि": अवतरणों में अंतर
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*ऐसी मान्यता है कि जो वृन्ताक को जीवन भर छोड़ देता है वह विष्णुलोक जाता है। | *ऐसी मान्यता है कि जो वृन्ताक को जीवन भर छोड़ देता है वह विष्णुलोक जाता है। | ||
*जो ऐसा वर्षभर या केवल एक मास ही करता है, वह नरक में नहीं पड़ता है। | *जो ऐसा वर्षभर या केवल एक मास ही करता है, वह नरक में नहीं पड़ता है। | ||
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12:50, 17 सितम्बर 2010 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- वृन्ताक त्याग विधि व्रत के द्वारा जीवन भर या एक वर्ष या 6 मासों तक या 3 मासों तक वृन्ताक फल का त्याग करना पड़ता है।
- एक रात्रि भर भरणी या मघा नक्षत्र में उपवास करना होता है।
- एक वेदी पर यम, काल, चित्रगुप्त, मृत्यु एवं प्रजापति का आवाहन किया जाता है और गंध आदि पूजा की जाती है।
- तिल एवं घी से स्वाहा के साथ यम, नील, नीलकण्ठ, यमराज, चित्रगुप्त, वैवस्वत के लिए होम किया जाता है।
- वृन्ताक त्याग विधि में 108 आहुतियाँ; सोने का बना एक वृन्ताक, काली गाय एक बैल, अँगूठियाँ, कर्णफूल, छ़त्र, चप्पल, काले वस्त्र का जोड़ा एवं काले कम्बल का दान देना चाहिए।
- ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
- ऐसी मान्यता है कि जो वृन्ताक को जीवन भर छोड़ देता है वह विष्णुलोक जाता है।
- जो ऐसा वर्षभर या केवल एक मास ही करता है, वह नरक में नहीं पड़ता है।
- यह प्रकीर्णक व्रत है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड2, 909-910, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)
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