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*प्रत्येक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर कर्ता नक्त करता है, तिल से होम करता है, तिल का दान करता है। | *प्रत्येक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर कर्ता नक्त करता है, तिल से होम करता है, तिल का दान करता है। | ||
*अन्त में पाँचवें मास में गणेश की स्वर्णिम प्रतिमा को पायस से पूर्ण चार ताम्र पात्रों एवं तिलपूर्ण एक पात्र के साथ में दान करता है। | *अन्त में पाँचवें मास में गणेश की स्वर्णिम प्रतिमा को पायस से पूर्ण चार ताम्र पात्रों एवं तिलपूर्ण एक पात्र के साथ में दान करता है। | ||
*इससे सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। <ref>भविष्योत्तरपुराण (33|1-13)।</ref> | *इससे सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है।<ref>भविष्योत्तरपुराण (33|1-13)।</ref> | ||
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10:41, 18 सितम्बर 2010 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- यह व्रत फाल्गुन शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर आरम्भ करना चाहिए।
- गणेश देवता की चार मासों तक पूजा करनी चाहिए।
- प्रत्येक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर कर्ता नक्त करता है, तिल से होम करता है, तिल का दान करता है।
- अन्त में पाँचवें मास में गणेश की स्वर्णिम प्रतिमा को पायस से पूर्ण चार ताम्र पात्रों एवं तिलपूर्ण एक पात्र के साथ में दान करता है।
- इससे सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भविष्योत्तरपुराण (33|1-13)।
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