"संघाटक व्रत": अवतरणों में अंतर

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*संघाटक व्रत जागर; भूमि पर शयन; आचार्य को प्रतिमा का दान करना चाहिए।
*संघाटक व्रत जागर; भूमि पर शयन; आचार्य को प्रतिमा का दान करना चाहिए।
*ऐसी मान्यता है कि नारी का पति एवं पुत्र से वियोग नहीं होता।
*ऐसी मान्यता है कि नारी का पति एवं पुत्र से वियोग नहीं होता।
*ऐसी मान्यता है कि इस व्रत से [[पार्वती]] ने [[शिव]] को प्राप्त किया था। <ref>हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 370-375, [[वराह पुराण]] से उद्धरण)</ref>
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08:28, 19 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा पर संघाटक व्रत आरम्भ होता है।
  • उस दिन एकभक्त; द्वितीया एवं तृतीया पर उपवास; चतुर्थी पर पारण करना चाहिए।
  • संघाटक व्रत तिथिव्रत; देवता शिव की पुजा करनी चाहिए।
  • यदि एक पक्ष में किया जाए तो साढ़े सात मासों तक किन्तु यदि दोनों पक्षों में, तो साढ़े तीन मासों तक व्रत करना चाहिए।
  • एक पुरुष एवं एक स्त्री की दो स्वर्ण प्रतिमाओं का निर्माण तथा पंचामृत से स्नान कराना चाहिए।
  • संघाटक व्रत जागर; भूमि पर शयन; आचार्य को प्रतिमा का दान करना चाहिए।
  • ऐसी मान्यता है कि नारी का पति एवं पुत्र से वियोग नहीं होता।
  • ऐसी मान्यता है कि इस व्रत से पार्वती ने शिव को प्राप्त किया था।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 370-375, वराह पुराण से उद्धरण)

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