शिव व्रत
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
(1) आषाढ़ पूर्णिमा से चार मासों तक नख परित्याग एवं बैंगन का सेवन वर्जित।
(2) मार्गशीर्ष से कार्तिक तक शिव भगवान की पूजा की जाती है।
- शिव के समक्ष प्रत्येक मास में क्रम से आटें से बनी निम्नलिखित वस्तुओं का दान–घोड़ा, गज, रथ, 11 बैलों का एक झुण्ड, एक चन्द्र ज्योति (या कर्पूर का) घर, जिसमें दास-दासियाँ हों तथा गृहस्थी के उपकरण हों, धान से पूर्ण सात पात्र, दो सौ फल एवं गुग्गुल, दान का एक 'मण्डल', जिसमें खाद्य पदार्थ एक चित्र हों, पुष्पों से निमित्त एक यान (गाड़ी); गुग्गुल धूप एवं देवदार, बिल्ब के बीज, घी एवं अगुरु भाद्रपद मास में जलाये जाते हैं।
- आश्विन मास भर अर्क की पत्तियों से बने दोने में दूध एवं घी।
- एक दोने में ईख का रस जो वस्त्र से ढंका रहता है।
- वर्ष के अन्त में शिवभक्तों को भोज एवं पेय तथा सोने एवं वस्त्र का दान दिया जाता है।[2]
(3) पौष से मार्गशीर्ष तक दोनों पक्षों की चतुर्दशी या अष्टमी या पूर्णिमा पर होप्ता है।
- विशिष्ट पूजा, यथा–एक प्रस्थ जौ, दूध एवं घी से पूर्ण शर्करा का नैवेद्य।
- एक बैल के साथ एक वितस्ति ऊँचाई की जौ के आटे की कपिला गौ का निर्माण किया जाता है।
- माघ में 11 ब्राह्मणों एवं चार गैंड़ों को खिलाना, फाल्गुन में नकुल को खिलाना, चैत्र में आटे की शिव प्रतिमा, इसी प्रकार सभी मासों में विभिन्न पदार्थों का आटे से निर्माण।
- एक वर्ष तक यह व्रत किया जाता है।[3]
(4) दोनों पक्षों की अष्टमी एवं चतुर्दशी पर उपवास एवं अपरान्ह्न में शिव पूजा की जाती है।
- जप एवं होम किया जाता है।
- गुरु सम्मान किया जाता है।
- पंचगव्य के तीन चुलुकों (चुल्लुओं) का पान किया जाता है।
- दूसरे दिन केवल हविष्य भोजन करना चाहिए।
- पूरे जीवन भर करना चाहिए।
- शिवलोक में तीन पीढ़ियों का निवास होता है।[4]
(5) पौष में आरम्भ होता है।
- गेहूँ चावल एवं दूध के पदार्थों को नक्त विधि से खाना होता है।
- दोनों पक्षों की अष्टमी पर उपवास भूमि शयन करना चाहिए।
- पूर्णिमा पर घृत से रुद्र स्नान करना चाहिए।
- इसे एक वर्ष के लिए मार्गशीर्ष तक करना चाहिए।
- विभिन्न मासों में विभिन्न पदार्थों का उपयोग किया जाता है।[5]
(6) एक अयन से दूसरे अयन (6 मासों) तक होता है।
- पुष्प एवं घी का अर्पण किया जाता है।
- अन्त में पुष्पार्पण, पायस एवं घी से ब्रह्मभोज कराया जाता है।
- घृतधेनु का दान दिया जाता है।
- इससे धन एवं स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।[6]
(7) आषाढ़ पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक नाख़ून न कटाना।
- अन्त में सोने के साथ मधु एवं घृत से पूर्ण एक घट का दान दिया जाता है।
- कर्ता रुद्रलोक को जाता है।[7]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 440-441, मत्स्य पुराण 11|11-12 से उद्धरण);
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 819-821, कालोत्तरपुराण से उद्धरण);
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 398-400, कालोत्तरपुराण से उद्धरण);
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 343, कालोत्तरपुराण से उद्धरण);
- ↑ लिंग पुराण (83|13-54);
- ↑ कृत्यरत्नाकर (219, अग्निपुराण से उद्धरण);
- ↑ कृत्यरत्नाकर (219-220); वर्षक्रियाकौमुदी (292)।
अन्य संबंधित लिंक
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