योगेश्वर द्वादशी
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- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- योगेश्वरद्वादशी व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है।
- चार जलपूर्ण घट, जिनके भीतर रत्न रखे गये हों, जिन पर चन्दन लेप चिह्न लगे हों, जिनके चारों ओर श्वेत वस्त्र बंधे हों, जिनके ऊपर तिल एवं सोने से युक्त ताम्र पात्र रखे गये हों, ये चार समुद्र समझे जाते हैं।
- घट के ढक्कन के बीच में हरि (जो कि योगेश्वर कहे जाते हैं) की प्रतिमा रखी जाती है और उसकी पूजा की जाती है।
- दूसरे दिन चारों घट ब्राह्मणों को दान में दे दिये जाते हैं।
- स्वर्ण प्रतिमा किसी पाँचवें अन्य ब्राह्मण को दी जाती है।
- ब्राह्मणों को भोजन एवं दक्षिणा देनी चाहिए।
- इस व्रत को धरणी व्रत भी कहा जाता है।
- कर्ता पापमुक्त हो जाता है और स्वर्गलोक को जाता है।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृत्यकल्पतरु (व्रत खण्ड 336-339), हेमाद्रि व्रत खण्ड 1,1041-1044, वराह पुराण 50|4-29 से उद्धरण, कृत्यरत्नाकर (427-430
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