लॉर्ड कर्ज़न
लॉर्ड एलगिन द्वितीय के बाद 1899 ई. में लॉर्ड कर्ज़न भारत का वाइसराय बनकर आया। भारत का वाइसराय बनने के पूर्व भी कर्ज़न चार बार भारत आ चुका था। भारत में वाइसराय के रूप में उसका कार्यकाल काफ़ी उथल-पुथल का रहा है। लॉर्ड कर्ज़न के विषय में पी.राबटर्स ने लिखा है कि, "भारत में किसी अन्य वाइसराय को अपना पद सम्भालने से पूर्व भारत की समस्याओं का इतना ठीक ज्ञान नहीं था, जितना कि लॉर्ड कर्ज़न को। कर्ज़न ने जनमानस की आकांक्षाओं की पूर्णरूप से अवहेलना करते हुए भारत में ब्रिटिश हुकूमत को पत्थर की चट्टान पर खड़ा करने का प्रयास किया"। लॉर्ड कर्ज़न ने भारत में शिक्षा और आर्थिक सुधारों के लिए मुख्य रूप से कार्य किये थे। भूमि पर लिये जाने वाले भूमिकर को और अधिक उदार बनाये जाने हेतु उसने 'भूमि प्रस्ताव' भी पारित किया था।
सुधार कार्य
लॉर्ड कर्ज़न के द्वारा किये गये कुछ महत्वपूर्ण सुधार कार्य इस प्रकार हैं :-
पुलिस सुधार
पुलिस सुधार के अन्तर्गत कर्ज़न ने 1902 ई. में 'सर एण्ड्रयू फ़्रेजर' की अध्यक्षता में एक 'पुलिस आयोग' की स्थापना की। 1903 ई. में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में आयोग ने पुलिस विभाग की आलोचना करते हुए कहा कि, यह विभाग पूर्णतः अक्षम, प्रशिक्षण से रहित, भ्रष्ट एवं दमनकारी है। आयोग द्वारा दिये गये सुझावों के आधार पर सभी स्तरों में वेतन की वृद्धि , प्रशिक्षण की व्यवस्था, प्रान्तीय पुलिस की स्थापना व केन्द्रीय गुप्तचर विभाग की स्थाना की व्यवस्था की गई।
शैक्षिक सुधार
शैक्षिक सुधारों के अन्तर्गत कर्ज़न ने 1902 ई. में 'सर टॉमस रैले' की अध्यक्षता में 'विश्वविद्यालय आयोग' का गठन किया। आयोग द्वारा दिये गए सुझावों के आधार पर विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 ई. पारित किया गया। इस अधिनियम के आधार पर विश्वविद्यालय पर सरकारी नियन्त्रण बढ़ गया। विश्वविद्यालय की सीनेट में मनोनीत सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। गैर सरकारी कॉलेजों का विश्वविद्यालयों से सम्बन्धित होना अत्यधिक कठिन बना दिया गया।
आर्थिक सुधार
आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत कर्ज़न ने 1899-1990 ई. में पड़े अकाल व सूखे की स्थिति के विश्लेषण के लिए 'सर एण्टनी मैकडॉनल' की अध्यक्षता में एक 'अकाल आयोग' की नियुक्ति की। आयोग ने कहा कि, अकाल सहायता व अनुदान में दी गई सहायता पर अनावश्यक बल दिया गया। आयोग ने कहा कि, कार्य करने में सक्षम लोगों को उनके कार्य में ही सहयोग करना चाहिए।
अन्य आयोगों की स्थापना
भूमिकर को अधिक उदार बनाने हेतु लॉर्ड कर्ज़न द्वारा 16 जनवरी, 1902 को 'भूमि प्रस्ताव' लाया गया। कर्ज़न ने 1901 ई. में 'सर कॉलिन स्कॉट मॉनक्रीफ़' की अध्यक्षता में एक 'सिंचाई आयोग' का भी गठन किया और आयोग के सुझाव पर सिंचाई के क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण सुधार किये। 1904 ई. में 'सहकारी उधार समिति अधियिम' पेश हुआ, जिसमें कम ब्याज दर पर उधार की व्यवस्था की गयी। इसके अतिरिक्त एक 'साम्राज्यीय कृषि विभाग' स्थापित किया गया, जिसमें कृषि, पशुधन एवं कृषि के विकास के लिए वैज्ञानिक प्रणाली के प्रयोग को प्रोत्साहित किया गया। वाणिज्य एवं उद्योग के क्षेत्र में सुधार हेतु एक नवीन विभाग खोला गया, जो डाक तार, रेलवे प्रशासन, कारखाने, बन्दरगाहों आदि पर नज़र रखता था।
- 1899 ई. में पारित किये गये 'भारत टंकण व पत्र मुद्रण अधिनियम' द्वारा अंग्रेज़ी पौण्ड को भारत में विधिग्राह्य बना दिया गया। एक अन्य योजना 'स्वर्ण विनिमय प्रमाप योजना' के अन्तर्गत सरकार को सोने के बदले रुपये देने होते थे।
रेलवे का विकास
भारतीय रेलवे के विकास के क्षेत्र में सर्वाधिक रेलवे लाइनों का निर्माण लॉर्ड कर्ज़न के समय में ही हुआ। इंग्लैण्ड के रेल विशेषज्ञ 'राबटर्सन' को भारत बुलाया गया। उन्होंने वाणिज्य उपक्रम के आधार पर रेल लाइनों के विकास पर बल दिया। न्यायिक सुधारों के अन्तर्गत कर्ज़न ने 'कलकत्ता उच्च न्यायालय' में न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाया। उसने उच्च न्यायालय एवं अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन एवं पेंशन में वृद्धि की। उसने भारतीय नागरिक प्रक्रिया संहिता को संशोधित करते हुए परिवर्तित कर दिया।
सैनिक सुधार
सैनिक सुधारों के अन्तर्गत लॉर्ड कर्ज़न ने सेनापति 'किचनर' के सहयोग से सेना का पुनर्गठन किया। भारतीय सेना को उत्तरी व दक्षिणी कमानों में बांटा गया। उत्तरी कमान ने अपना कार्यालय 'मरी' में एवं 'प्रहार केन्द्र' पेशावर में तथा दक्षिणी कमान ने अपना कार्यालय 'पूना' में एवं 'प्रहार केन्द्र' क्वेटा में स्थापित किया। सैन्य अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए 'केम्बरले कॉलेज' के नमूने पर क्वेटा में एक कॉलेज की स्थापना की। तत्कालीन सैन्य टुकड़ियों को एक महत्वपूर्ण परीक्षण 'किचनर परीक्षण' से गुज़रना होता था। इस सैन्य पुनर्गठन के कारण कर्ज़न के समय में सेना पर ख़र्च अत्यधिक बढ़ गया था।
कलकत्ता निगम अधिनियम
लॉर्ड कर्ज़न ने 'कलकत्ता निगम अधिनियम' 1899 ई. के द्वारा चुने जाने वाले सदस्यों की संख्या में कमी कर दी, परन्तु निगम एवं उसकी समितियों में अंग्रेज़ लोगों की संख्या बढ़ा दी गई। परिणाम यह हुआ कि कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) नगर निगम मात्र एक 'ऐंग्लो-इण्डियन' सभा के रूप में ही रह गया। 28 चुने गये सदस्यों द्वारा इसका विरोध करने पर भी लॉर्ड कर्ज़न विचलित नहीं हुआ, और 1903 ई. में एक भोज के दौरान अपने उद्गार में उसने कहा, "मैं वाइसराय पद से निवृत होने के पश्चात् कलकत्ता नगर निगम का महापौर होना पसन्द करूँगा"।
प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम
'प्राचीन स्मारक संरक्षण अधियम', 1904 ई. के द्वारा लॉर्ड कर्ज़न ने भारत में पहली बार ऐतिहासिक इमारतों की सुरक्षा एवं मरम्मत की ओर ध्यान देते हुए 50,000 पौण्ड की धनराशि का आबंटन किया। इस कार्य के लिए लॉर्ड कर्ज़न ने 'भारतीय पुरातत्व विभाग' की स्थापना की।
बंगाल विभाजन
लॉर्ड कर्ज़न के विरोधी कार्यों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य था- 1905 ई. में 'बंगाल का विभाजन'। उसने राष्ट्रीय आंदोलन को दबाने व कमज़ोर करने के उदेश्य से, प्रशासनिक असुविधाओं का आरोप लगाकर बंगाल को दो भागों में बांट दिया। पूर्वी भाग में बंगाल और असम के चटगाँव, ढाका, राजशाही को मिलाकर एक नया प्रान्त बनाया गया। इस प्रान्त का मुख्य कार्यालय ढाका में था। पश्चिमी भाग में पश्चिम बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा को सम्मिलित किया गया। लॉर्ड कर्ज़न का यह विभाजन 'फूट डालो और राज्य करो' की नीति पर आधारित था। उसने इस कार्य के द्वारा हिन्दू और मुसलमानों में मतभेद पैदा करने का प्रयत्न किया। विभाजन का यह कार्य अन्तिम रूप से 16 अक्टूबर, 1905 ई. को सम्पन्न हुआ, परन्तु इस विभाजन के विरोध में इतनी आवाज़ें उठीं कि, 1911 ई. में इस विभाजन को समाप्त करने की घोषणा करनी पड़ी, जो 1912 ई. में कार्यरूप में परिणित हुआ।
विदेश नीति
लॉर्ड कर्ज़न ने अपनी विदेश नीति के अन्तर्गत फ़ारस की खाड़ी में अधिक सक्रियता दिखाई। उसने तिब्बत के गुरु 'दलाई लामा' पर रूस की ओर झुकाव का आरोप लगाकर, तिब्बत में हस्तक्षेप किया। 'कर्नल यंग हस्बैंड' के नेतृत्व 1903 ई. में गई सेना ने तिब्बतियों से एक संधि की, जिसके अनुसार तिब्बत ने एक लाख रुपया वार्षिक दर से 75 लाख रुपया युद्ध की क्षति पूर्ति के रूप में देना स्वीकार तो कर लिया, किन्तु इसकी जमानत के रूप में भारत सरकार ने सिक्किम एवं भूटान के बीच स्थित 'चुम्बी घाटी' पर 75 वर्षों के लिए अपना अधिकार कर लिया।
इस्तीफ़ा
1902 ई. में लॉर्ड किचनर के भारत के सैन्य प्रमुख के पद पर नियुक्त होने पर लॉर्ड कर्ज़न का किचनर से सैनिक सदस्यों को लेकर मतभेद हुआ, जिसके कारण 1905 ई. में लॉर्ड कर्ज़न ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
समग्र विश्लेषण
इस प्रकार लॉर्ड कर्ज़न का शासन काल उथल-पुथल का रहा। लॉर्ड कर्ज़न की नीतियों के समर्थक फ़्रेजर ने माना है कि, भारत में राष्ट्रीयता का प्रारम्भ लॉर्ड कर्ज़न ने ही किया। गोपाल कृष्ण गोखले ने लॉर्ड कर्ज़न की तुलना मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब से की है। लाला लाजपत राय ने लॉर्ड कर्ज़न के बारे में कहा है कि, 'भारत स्वराज्य एवं स्वतंत्रता चाहता था, लॉर्ड कर्ज़न इस बंधन के काल को बढ़ाना चाहता था, हम दृढ़ तथा स्वावलम्बी बनना चाहते थे, वह चाहता था कि, हम उदार तथा अधिकृत बने रहें, हम प्रतिदिन सरकार प्रसार मांगते थे, पर लॉर्ड कर्ज़न ने अधिकतर यह प्रयत्न किया कि, इन संस्थाओं को बदनाम कर दे, तथा घड़ी की सुईयों को पीछे घुमा दे'।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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