अर्धोदय व्रत
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- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- अर्धोदय व्रत एक करोड़ सूर्य ग्रहणों की पवित्रता के समान है तथा बहुत कम किया जाता है।
- पश्चात्कालीन निबन्धों[1] ने महाभारत से उद्धरण दिया है- जब पौष या माघ में श्रवण-नक्षत्र एवं व्यतिपातयोग के साथ अमावास्या होती है तो उसे अर्धोदय एवं व्रतार्क कहा जाता है।
- भट्ट नारायण के प्रयाग सेतु के मत से अमान्त गणना के अनुसार अर्धोदय व्रत पौष में तथा पूर्णिमान्त गणना के अनुसार माघ में होता है।[2]
- अर्धोदय में प्रयाग में प्रातः स्नान महापुण्यकारक होता है, किन्तु ऐसा आया है कि अर्धोदय में सभी नदियाँ गंगा के समान हो जाती हैं।
- इस व्रत के देव तीन हैं—ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश और वे उसी क्रम में पूजित होते हैं।
- पौराणिक मन्त्रों एवं तीन वैदिक मन्त्रों के साथ[3] घृत की आहुति (अग्नि) में दी जाती है।
- अन्त में गायों एवं धन का दान होता है।
- यह द्रष्टव्य है कि प्रति पाँचवें वर्ष में हर्षवर्धन द्वारा प्रयाग में दान करना अर्धोदय व्रत नहीं था।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
अन्य संबंधित लिंक
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