कुछ न हुआ, न हो, मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल पास तुम रहो! मेरे नभ के बादल यदि न कटे- चन्द्र रह गया ढका, तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे लेश गगन-भास का, रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम हाथ यदि गहो। बहु-रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा- मन्द सबों ने कहा, मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा- ज्ञान, जहाँ का रहा, रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम कथा यदि कहो।