बर्थ पर लेट के हम सो गये आसानी से
फ़ायदा कुछ तो हुआ बे सरो सामानी से
माँ ने स्कूल को जाती हुई बेटी से कहा
तेरी बिंदिया न गिरे देखना पेशानी[1] से
मुफ़्त में नेकियाँ मिलती थीं शजर[2] था घर में
अब हैं महरूम[3] परिंदों की भी मेहमानी से
मैं वही हूँ के मिरी क़द्र न जानी तुमने
अब खड़े देखते क्या हो मुझे हैरानी से
इसमें राँझाओं की नालायकि़यों का क्या है
इश्क़ जिंदा है तो बस हुस्न की क़ुर्बानी से
कोई दानाई यहाँ काम नहीं आती ’अना’
शेर कुछ अच्छे निकल आते हैं नादानी से