सार्वलौकिक नीति तथा सदाचार -स्वामी विवेकानन्द

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:16, 19 जनवरी 2014 का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
सार्वलौकिक नीति तथा सदाचार -स्वामी विवेकानन्द
'सार्वलौकिक नीति तथा सदाचार' पुस्तक का आवरण पृष्ठ
'सार्वलौकिक नीति तथा सदाचार' पुस्तक का आवरण पृष्ठ
लेखक स्वामी विवेकानन्द
मूल शीर्षक सार्वलौकिक नीति तथा सदाचार
प्रकाशक रामकृष्ण मठ
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, 1998
देश भारत
भाषा हिंदी
मुखपृष्ठ रचना अजिल्द

स्वामी विवेकानन्द कृत ‘सार्वलौकिक नीति तथा सदाचार’ का यह ग्रन्थ स्वामी जी के अनेक ग्रन्थों में से संकलन है। यह बात सर्वमान्य है कि विद्यालयों तथा महाविद्यालयों के विद्यार्थियों के जीवन-गठन तथा चरित्र-निर्माण के लिए उन्हें नैतिक एवं अध्यात्मिक तत्त्वों की शिक्षा देना परमावश्यक है। इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर भारत सरकार ने श्रीप्रकाश की अध्यक्षता में एक समिति का निर्माण किया जिसने इस बात की जाँच की कि शिक्षासंस्थाओं में सदाचार तथा अध्यात्म संबंधी विषय के अध्ययन का समावेश कितना अधिक वांछित है। फलत: इस समिति ने यह सिफारिश की कि भारत सरकार इस संबंध में ऐसी उपयुक्त पाठ्यसामग्री एकत्रित कराये, जो विद्यालय-महाविद्यालय में पढ़ायी जाय, तथा उसके प्रकाशन की व्यवस्था करे। तदनुसार भारत शासन ने रामकृष्ण मिशन के स्वामी रंगानाथानन्दजी से एक ऐसी पुस्तक तैयार कर देने के लिए प्रार्थना की श्री स्वामी विवेकानन्द के ग्रन्थों में से सार्वलौकिक नीति तथा सदाचार संबंधी सामग्री संकलित हो। स्वामी रंगानाथनजी ने मूल अग्रेज़ी से संकलन करके ऐसी पुस्तक तैयार कर दी और प्रस्तुत ग्रन्थ उसी का हिन्दी अनुवाद है।

पुस्तक के अंश

मनुष्य की साधुता ही सामाजिक तथा राजनीतिक सर्वविध व्यवस्था का आधार है। पार्लमेन्ट द्वारा बनाये गये कानूनों से ही कोई राष्ट्र भला या उन्नत नहीं हो जाता। वह उन्नत तब होता है, जब वहाँ के मनुष्य उन्नत और सुन्दर स्वभाववाले होते हैं। बहुधा लोग एक ही उद्देश्य से कर्म में प्रवृत्त होते हैं, पर वे यह समझ नहीं पाते। यह तो मानना ही पड़ेगा कि कानून, सरकार या राजनीति मानव-जीवन का चरम उद्देश्य नहीं है। इन सब के परे एक ऐसा चरम लक्ष्य है, जहाँ पहुँचने पर कानून या विधि का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। सभी महान् आचार्य यही शिक्षा देते हैं। ईसा मसीह जानते थे कि कानून का प्रतिपालन ही उन्नति का मूल नहीं है, बल्कि पवित्रता और सच्चरित्रता ही शक्तिलाभ का एकमात्र उपाय है।[1][2]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. स्वामी विवेकानन्द से वार्तालाप- पृष्ठ संख्या- 21-22
  2. सार्वलौकिक नीति तथा सदाचार (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 19 जनवरी, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख