वंदना जी के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, जैसे- कादम्बिनी, बिंदिया, पाखी, हिंदी चेतना, शब्दांकन, गर्भनाल, उदंती, अट्टहास, आधुनिक साहित्य, नव्या, सिम्पली जयपुर आदि के अलावा विभिन्न ई-पत्रिकाओं में रचनाएँ, कहानियां, आलेख आदि प्रकाशित हो चुके हैं।
न मिलने की चाह रही
न बिछड़ने की परवाह रही
उमंगों के घोड़े रुक गए
जाने कहाँ तुम छुप गए
जब से किया किनारा है
मेरा न कोई दूजा सहारा है
अब बिरहा की मारी जाएँ कहाँ
तुम्हारी वो अलौकिक छवि पायें कहाँ
यूं सोच सोच बेजार हुईं
हम तो खुद को तुम पर हार गयीं
न वो सांझ सकारे रहे
न वो मधुबन के द्वारे रहे
न वो रास रंग की बतियाँ रहीं
न वो तुम संग बीतीं रतियाँ रहीं
न वो हास - विलास रहा
न वो पहला सा उल्लास रहा
जब से गए हो परदेस मोहन
अपना पता भी भूल गया
तभी तो कहता है हृदय हमारा
न ख़ुशी न गम
तटस्थ सा हो गया मन.......... मोहन !!!