मदन पुरी
मदन पुरी
| |
पूरा नाम | मदन पुरी |
जन्म | 1915 |
जन्म भूमि | पठाणकोट |
मृत्यु | 13 जनवरी, 1985 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
अभिभावक | निहाल चंद पुरी और वेद कौर |
पति/पत्नी | शीला देवी पुरी |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | सिनेमा |
मुख्य फ़िल्में | ‘हाथी मेरे साथी’, ‘अपना देश’, ‘बीस साल बाद’, ‘बहारों के सपने’, ‘आई मिलन की बेला’, ‘चायना टाउन’, ‘काला बाज़ार’, |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | ‘उपकार’ में भाई भाई के बीच आग लगाकर खुश होने वाले खलनायक ‘चरणदास’ को भी कोई कैसे भूल सकता है? |
अद्यतन | 17:58, 30 जून 2017 (IST)
|
मदन पुरी (अंग्रेजी: Madan Puri, जन्म- 1915, पठाणकोट; मृत्यु: 13 जनवरी, 1985, मुम्बई) रंगमंच तथा हिन्दी सिनेमा के सबसे मशहूर खलनायक के रूप में प्रसिद्धि बटोरने वाले अभिनेता थे। कॉलेज के दिनों में किये एक नाटक ‘माल रोड’ में वे हीरो थे। और मदन पुरी की नायिका बने थे प्राण, जो कि उन दिनों अभिनय के क्षेत्र में आने की कोशीश कर रहे थे।[1]
परिचय
मदन पुरी का जन्म 1915 मे पठाणकोट में हुआ था। उनके पिता निहाल चंद पुरी और माता वेद कौर थी। यह चार भाई थे। चमन लाल पुरी, अमरीश पुरी, हरिश लाल पुरी। वह सबसे पहले हीरो के रूप में आये थे सन 1947 और 1948 में उसने दो तीन फ़िल्मों में हीरो के रूप में काम किया लेकिन वह पिक्चरें बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से पिट गई तो किसी निर्माता ने भी उन्हें हीरो न लिया तो उन्होंने विलेन के रोल स्वीकार करने शुरू कर दिये और इसमें उन्हें सफलता भी मिली। आज तक वह कुल मिलाकर 150 फ़िल्मों के रूप में आ चुके हैं। इसके अलावा 10 फ़िल्में ऐसी हैं जिनमें उन्होंने चीनी आदमी के रोल किये हैं। और 50 एक फ़िल्में और हैं जिनमें उन्होंने तरह-तरह के कैरेक्टर रोल किये हैं।[2]
कॅरियर
मदन जी के पिताजी एक सरकारी अफसर थे। इस लिए उन्होंने युवा मदन को भी सरकारी नौकरी में लगा दिया। अपनी 6 साल की नौकरी के दौरान उनका तबादला शिमला, करांची जैसी जगहों पर होता रहा। ऐसे में एक बार उनका ट्रान्सफर कलकत्ता हुआ। वैसे 1971 में गुजराती सामयिक ‘जी’ को दिये उनके एक इन्टर्व्यु में ये बात भी खुलती है कि वो तबादला मदन जी ने खुद करवाया था, क्योंकि न्यु थियटर्स और कुन्दनलाल सहगल दोनों वहाँ थे।[1]
1333 के. एल. सहगल उन दिनों के यानि ’40 के दशक में सबसे ज्यादा पैसे कमाने वाले स्टार थे। मदन पुरी के मुताबिक ‘उमर खयाम’ फ़िल्म में काम करने के लिए सहगल साहब को 1 लाख रूपये मिले थे! सहगल जैसे सुपर स्टार से मदन पुरी का पारिवारिक संबंध था। वे मदन जी की बुआ के बेटे थे। कलकत्ता में नौकरी करते करते, यानि पिताजी को बताये बिना ही, उन्हें दलसुख पंचोली की फ़िल्म ‘खज़ानची’ के एक गीत “सावन का नज़ारा है...” में पर्दे पर गीत गाते दिखने का मौका मिला। सिनेमा के लिए मेक अप लगाने का वह प्रथम प्रसंग था। फ़िल्म रिलीज़ होते ही पिक्चर तथा वो गाना दोनों सुपर हिट हो गए और उनके पिताजी ने ‘खज़ानची’ देखी तो अपने लाडले जैसे एक्टर को देख चौंक गए। उन्हें पता था कि मदन कलकत्ता में थे और ये पिक्चर तो लाहोर में बनी थी। परंतु, पिता एस. निहालचंद पुरी को और माता वेद कौर जी को कहाँ पता था कि ‘खज़ानची’ का वो एक ही गाना कलकत्ता के बोटनिकल गार्डन में शुट हुआ था और बाकी सारी फ़िल्म लाहौर के स्टुडियो में। मदन पुरी अब कलकत्ता में छोटी छोटी भूमिकाओं में काम करने लगे थे। जिस के फल स्वरूप उन्होंने ‘माय सिस्टर’, ‘राज लक्ष्मी’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘बनफुल’ जैसी फिल्मों में काम किया और एक दिन ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोडकर वे 1945 में तीन हजार रूपये लेकर बम्बई चले गए। उनके पिताजी को ये अच्छा नहीं लगा। क्योंकि तब तक मदन जी की शादी भी हो चूकी थी और वे दो बच्चों के पिता भी बन चूके थे। मगर तीन ही महिने में उन्हें बतौर हीरो ‘कुलदीप’ फ़िल्म में लिया गया, जो फ्लॉप हो गई। इतना ही नहीं पहले पहल आई चारों पिक्चरें असफल रहीं। तब वे पहली बार खलनायक बने देव आनंद और सुरैया की फ़िल्म ‘विद्या’ में। उस वक्त से जो हीरोगीरी छुटी और पहले विलन तथा बाद में चरित्र अभिनेता बने। उस प्रकार की भूमिकाओं में 1985 में उनके देहांत तक मदन पुरी ने काम किया। खास कर ’60 और ’70 के दशक में आई कितनी ही हिट और सुपर हिट फ़िल्मों के वे हिस्सा थे।[1]
मदन जी को ‘आराधना’ के उस करूणामय जैलर के रूप में कौन भूल सकता है; जो रिटायर होकर कैदी शर्मिला टैगोर को अपने घर ले जाते हैं? तो दुसरी और ‘उपकार’ में भाई भाई के बीच आग लगाकर खुश होने वाले खलनायक ‘चरणदास’ को भी कोई कैसे भूल सकता है? उनके छोटे भाई अमरीश पुरी के साथ दिलीप कुमार की मुख्य भूमिका वाली यश चोपड़ा की फ़िल्म ‘मशाल’ में वे ‘तोलाराम’ बने थे और हर बार अमरीशजी अपनी भारी आवाज़ में कहते थे, “ज़माना बहोत खराब है, तोलाराम”! उनकी 250 से अधिक फ़िल्मों और उनकी भूमिकाओं के बारे में इतने छोटे से आलेख में लिखना, ‘डोन’ के अमिताभ के स्टाइल में कहें तो, मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।[1]
निधन
13 जनवरी, 1985 मात्र 69 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से मदन जी की मृत्यु हो गई।
मुख्य फ़िल्में
‘हाथी मेरे साथी’, ‘अपना देश’, ‘बीस साल बाद’, ‘बहारों के सपने’, ‘आई मिलन की बेला’, ‘चायना टाउन’, ‘काला बाज़ार’, ‘कश्मीर की कली’, ‘शहीद’, ‘गुमनाम’, ‘शागीर्द’, ‘दुनिया’, ‘आंखें’, ‘फूल और पथ्थर’, ‘हमराज़’, ‘लव इन टॉकियो’, ‘सावन की घटा’, ‘कटी पतंग’, ‘प्रेमपूजारी’, ‘शतरंज’, ‘देवी’, ‘आदमी और इन्सान’, ‘तलाश’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘प्यार ही प्यार’, ‘इत्तेफ़ाक’, ‘अनुराग’, ‘अपराध’, ‘धी ट्रेइन’, ‘रखवाला’, ‘पारस’, ‘लाखों में एक’, ‘अमर प्रेम’, ‘कारवाँ’, ‘शोर’, ‘अपराध’, ‘दाग’, ‘धर्मा’, ‘लोफ़र’, ‘धुन्द’, ‘अगर तुम न होते’, ‘नास्तिक’, , ‘अंधा कानून’, ‘अवतार’, ‘हीरो’, ‘विधाता’, ‘प्रेमगीत’, ‘क्रान्ति’, ‘मज़दुर’, ‘प्यासा सावन’, ‘धी बर्नींग ट्रेइन’, ‘जुदाई’, ‘ग्रेट गेम्बलर’, ‘जानी दुश्मन’, ‘नूरी’, ‘अंखियों के झरोंखों से’, ‘स्वर्ग नरक’, ‘विश्वनाथ’, ‘फ़कीरा’, ‘दुलहन वोही जो पिया मन भाये’, ‘मेहबूबा’, ‘बैराग’, ‘काली चरण’, ‘धर्मात्मा’, ‘ज़मीर’, ‘गीत गाता चल’, ‘मजबुर’, ‘बेनाम’, ‘अजनबी’, ‘चोर मचाये शोर’, ‘रोटी कपडा और मकान’ इत्यादि इत्यादि![1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 मदनपुरी.... ये आज भी ज़िन्दा ही है! (हिन्दी) tikhaaro.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 30 जून, 2017।
- ↑ उपलब्धियां पर कितनी? – मदन पुरी (हिन्दी) mayapurionline.com। अभिगमन तिथि: 30 जून, 2017।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख