यम व्रत
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- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- जो व्यक्ति शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, पंचमी, षष्ठी, अष्टमी या चर्तुदशी को उपवास करता है तथा ब्रह्म भोज कराता है, वह रोग मुक्त हो जाता है और सुन्दर रूप पाता है।[1]
- कृष्ण पक्ष की चर्तुदशी को यम व्रत रखा जाता है।
- यम के प्रत्येक नाम यम, धर्मराज, चित्र, चित्रगुप्त, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल एवं सर्वभूतक्षय पर तिल-जल की सात अंजलियों का अर्पण करना चाहिए।
- ऐसी मान्यता है कि यमव्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।[2]
- कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चर्तुदशी पर स्नान एवं यम को तर्पण करना चाहिए।
- एक ब्राह्मण को तिल युक्त पात्र एवं सोने का दान देना चाहिए।
- ऐसी मान्यता है कि यमव्रत कर्ता मृत्यु पर दुख नहीं उठाता।[3]
- यदि राजा यम की पूजा दशमी को हो तो रोगों का निवारण हो जाता है।[4]
- जब चतुर्थी रविवार को पड़ती है और वह भरणी नक्षत्र से युक्त होती है तो यम के अनुग्रह की प्राप्ति के लिए भैंस एवं सोने का दान करना चाहिए।[5]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 389); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 377, महाभारत से उद्धरण)
- ↑ हेमाद्रि व्रत खण्ड 2, 151, कूर्म पुराण से उद्धरण
- ↑ हेमाद्रि व्रत खण्ड 2, 151
- ↑ हेमाद्रि व्रत खण्ड 1, 182, भविष्यपुराण से उद्धरण
- ↑ अहल्याकामधेनु (357, कूर्मपुराण से उद्धरण)
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