सौभाग्यतृतीया व्रत

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  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • सौभाग्यतृतीयाव्रत फाल्गुन शुक्ल पक्ष की तृतीया पर नक्त विधि से किया जाता है।
  • लक्ष्मी के साथ में हरि या उमा के साथ शिव (क्योंकि दोनों शास्त्रों एवं पुराणों में एक ही कहे गये हैं) की पूजा करनी चाहिए।
  • मधु, घी एवं तिल से होम कराना चाहिए।
  • सौभाग्यतृतीयाव्रत एक वर्ष तक तीन अवधियों में किया जाता है।
  • फाल्गुन से ज्येष्ठ के मासों तक बिना नमक या घी के गेहूँ से बने भोजन का प्रयोग, भूमि पर शयन करना चाहिए।
  • कार्तिक से माघ तक जौ से बने भोजन का प्रयोग करना चाहिए।
  • माघ शुक्ल पक्ष की तृतीया पर रुद्र एवं गौरी या हरि एवं श्री की स्वर्ण प्रतिमा का निर्माण और उसकी मध, घी, तिल, तेल, गुड़, नमक तथा गोदुग्ध युक्त 6 पात्रों के साथ में दान देना चाहिए।
  • ऐसी मान्यता है कि कर्ता सात जन्मों तक भाग्यवान एवं सुन्दर बन जाता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कृत्यकल्पतरु (व्रत, 75-77, वराह पुराण 58|1-19 से उद्धरण); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 479-480); कृत्यरत्नाकर (523-524)

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