केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान
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केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान की स्थापना 1948 में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अन्तर्गत एक राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला के रूप में की गईI संस्थान आइ एस ओ 9001 प्रमाणीकृत संगठन है जो सड़क एवं परिवहन अनुसंधान, महामार्ग अभियांत्रिकी, कुटिटम एवं रखरखाव, यातायात एवं परिवहन आयोजना, भू तकनीकी तथा सेतु अभियांत्रिकी क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करता हैI संस्थान द्वारा सड़कों, यातायात, पर्यावरण तथा सड़क पहलुओं, हवाई क्षेत्र कुट्टिम, भू स्खलन न्यूनीकरण से संबंधित अनुसंधान स्तर पर तथा तकनीकी सेवाएं व्यवसायिक रूप में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के ग्राहकों को देश तथा विदेशों में प्रदान की जाती हैI
संस्थान में काफी संख्या में उच्च योग्यता तथा अनुभव प्राप्त वैज्ञानिक तथा तकनीकी स्टाफ है, जिन्हें विभिन्न क्षेत्रों में समरूप बांटा गया हैI प्रयोगशाला में परीक्षण सुविधाएं तथा कार्यस्थल अन्वेषण उपस्कर आधुनिकतम तथा पूर्ण जानकारी सहित रखे गए हैंI कम्प्यूटरों का पूर्ण जालतंत्र है तथा सूचना प्रौद्योगिकी (आइ टी) सुविधाओं का कुशलतापूर्ण प्रबन्ध किया गया है I संस्थान में प्रशिक्षण तथा पुन:श्चर्या पाठ़्यक्रम विभिन्न समकालीन विषयों पर समय समय पर संचालित किए जाते हैंI संस्थान में पुस्तकालय एवं प्रलेखन सेवाएं सर्वोच्च कोटि की हैं I
संस्थान का इतिहास
गत 55 वर्षो के निरन्तर संघर्ष के बाद सड़क तथा परिवहन अभियांत्रिकी के क्षेत्र में विद्यमान प्रौद्योगिकी में सुधार एंव नवीन गतिविधियों के विकास के बाद इतिहास लिखा गया, विगत सभी कार्यों का लेखा जोखा उचित ढंग से रिकार्ड़ नहीं किया गया था और छोटे-छोटे कार्यो को नज़रअन्दाज किया गया। कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ, जो संस्थान की प्रगति तथा राष्ट्र के प्रति समर्पित सेवा को दर्शाती हैं, इस प्रकार हैं -
- 1950-1959 की महत्वपूर्ण घटनाएं
- डॉ. अर्नस्ट जिप्किस, प्रसिद्ध सड़क अभियन्ता, स्विटजरलैण्ड, पूर्व प्रभारी सड़क अनुसंधान विभाग, फैडरल प्रौद्योगिकी संस्थान, ज़्यूरिख को मई 1950 में निदेशक नियुक्त किया गया।
- संस्थान की नींव 6 सितम्बर 1950 को एन. गोपालास्वामी अय्यंगर, परिवहन मंत्री, भारत सरकार के द्वारा रखी गई। संस्थान को 11 कि.मी. दूर दिल्ली - मथुरा रोड़ पर 33 एकड़ भूमि आंवटित की गई थी। इस दिन डॉ. एस. एस. भटनागर, निदेशक, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी.एस.आर.आर.) ने केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान का आदेशपत्र रेखांकित किया। 1951 में केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान ने प्रस्तावित स्थान पर एक अस्थाई भवन में 15 तकनीकी तथा 22 अन्य सदस्यों सहित कार्य करना आरम्भ किया। मृदा, डामर, कंक्रीट तथा निर्माण सामग्री अनुसंधान के क्षेत्र थे।
- भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जुलाई 1952 में संस्थान के मुख्य भवन का उदघाटन किया। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, शिक्षा एवं संस्कृति मंत्री, उपाध्यक्ष सी.एस.आइ.आर. ने अपना अभिभाषण दिया।
- प्रो. एस.आर.मेहरा, केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान के प्रथम भारतीय निदेशक बने। प्रो. एस.आर. मेहरा 'पंजाब अभियांत्रिकी महाविद्यालय' के प्रिंसिपल तथा पी.डब्लू.डी. अनुंसधान प्रयोगशाला, करनाल, पंजाब के निदेशक थे।
- नवीन पुस्तकालय भवन तथा सेमिनार हॉल निर्मित किया गया। अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला उपकरण मंगवाए गए। पास की 72 बीघा ज़मीन में परीक्षण पथ बनाए गए।
- कंक्रीट तथा मसाले के प्रतिरोधक घर्षण का मूल्यांकन करने के लिए परीक्षण विधि तथा परीक्षण उपस्कर विकसित किए गए। ये उपलब्धियां बाद में भारत मानक बने।
- 1958 में भारतीय सड़क कांग्रेस (आइ.आर.सी.) में अध:स्तर संहनन प्रौद्योगिकी के अनुसंधान तथा सुनम्य कुट्टिम के अभिकल्प की संस्तुति की गई।
- सड़क निर्माण में निम्न कोटि मृदु (सॉफ्ट) सामग्री का प्रयोग कर प्रौद्योगिकी विकसित की गई। भारत में गहन खोज के पश्चात विभिन्न प्रकार की अध:स्तर सामग्री की उपलब्धता को दर्शाते हुए समोच्च रेखा मानचित्र तैयार किया गया।
- राष्ट्रीय स्तर पर आर्द्रता परिस्थिति सर्वेक्षण संचालित किया गया तथा भारत के विभिन्न भागों में अध:स्तर संतृप्ति स्तर को दर्शाते हुए मानचित्रों को विकसित किया गया।
- भारत हैवी इलैक्ट्रिकल्स (बी.एच.ई.एल) के लिए 180 टन परिवहन वाहनों के लिए कुट्टिम मोटाई तथा निर्माण विधि तैयार की गई।
- उर्ध्वाधर बालू अपवाह प्रणाली अभिकल्प तथा निर्माण विधि विकसित की गई जो कि त्वरण तटबंध सैटलमैंट में सहायक बनी।
- कच्छ भूमि तथा दलदल के माध्यम से पूर्वी द्रुतगामी महामार्ग, मुम्बई के निर्माण के दौरान तकनीकी सर्वेक्षण तथा गुणवता नियन्त्रण प्रदान किया गया।
- ग्रामीण भारत में 1950 में बैलगाड़ी माल ढोने का प्रमुख वाहन था। पहिए के लचीले अभिकल्प, योक सम्पर्क क्षेत्र तथा धुरी भार वितरण के माध्यम से पशु कंधों पर दाब को न्यूनतम किया गया एवं बैलगाड़ी की गति को आसान बनाया गया।
- 1960-1969 की प्रमुख घटनाएं
- एक चलती-फिरती प्रयोगशाला स्थापित की गई जो कार्यस्थल परीक्षण के लिए आवश्यक बन गई। यह नवीनतम परीक्षण सुविधाओं से लैस थी तथा बहुत सी परियोजनाओं में कार्यस्थल खोज संचालित करने में काफी सहायक सिद्ध हुई।
- परिवर्ती भार के अन्तर्गत संस्थान में सुनम्य तथा दृढ़ कुटि्टम उपरिशायी सामर्थ्य भारवहन परीक्षण आधार सुविधा उत्पन्न की गई। 40 टन के अधिकतम भार के कारण कुटि्टम प्रतिक्रिया प्राप्त की गई।
- ईंट भराव कंक्रीट कुटि्टम अभिकल्प विकसित किया गया। कुटि्टम सामर्थ्य पर बिना किसी कम्प्रोमाइस के अभिकल्प ज्यादा मितव्ययी है।
- दृढ़ कुटि्टम खण्डों के अभिकल्प में कंक्रीट स्लैब की उपरी तथा निचली सतह के बीच तापमान अन्तर की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। अधिक अन्तर कुटिटम खण्डों में तापमान प्रेरित प्रतिबल बनाता है । देश में विभिन्न स्थानों पर विभिन्न मोटाई पर अन्तरात्मक तापमान अभिग्रहण (कैपचर) करने के लिए अध्ययन संचालित किया गया । अभिकल्प मोटाई पर उपलब्धियां तथा संस्तुतियों को भारतीय सड़क कांग्रेस (आइ आर सी) द्वारा दिशा निर्देश के रूप में स्वीकार किया गया ।
· बर्न्टक्ले पोजोलाना पोर्टलैण्ड सीमेंट स्थानापन्न सामग्री के रूप में विकसित की गई । यह देखा गया कि सीमेंट कंक्रीट कुटि्टम निर्माण में सीमेंट का 20 प्रतिशत तक पोजोलाना द्वारा बदला जा सकता है । यह परियोजना संस्थान द्वारा तब ली गई जब 1960 में देश सीमेंट की भारी कमी से जूझ रहा था ।
· लगातार प्रबलित कंक्रीट कुटि्टम तथा निर्माण प्रौद्योगिकी का विकास किया गया तथा संस्थान द्वारा देश में परिचित कराई गई । इस प्रकार की कुटि्टम अधिक मोटाई की आवश्कयता को कम करती है तथा निर्माण जोड़ों को हटाती है एवं कुटि्टम पर भारी यातायात प्रवाह के लिए उपयुक्त है । इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए एयर फील्ड कुटिटम का निर्माण भी किया गया । उपलब्धियों तथा संस्तुतियों को बाद में आइ आर सी दिशा निर्देश के रूप में अनुमोदित किया गया ।
· संस्थान ने बद्व कंक्रीट निर्माण विकसित की तथा भारत में पहली बार एयर फील्ड निर्माण के लिए इसका प्रयोग किया गया । कुटि्टम उपयोगिता रेटिंग इन्डैक्स विकसित किया गया जो सड़क उपयोगकर्ता के आराम सुविधा तथा विभिन्न विकृति प्राचलों को जोड़ता है । इस परियोजना के लिए डाटा एकत्रित करने के लिए विस्तृत सर्वेक्षण संचालित किया गया ।
· सेतु अवसंरचना तथा नींव पर बढ़ती हुई परामर्श मांग को देखते हुए 1966 में अलग से सेतु प्रभाग की स्थापना की गई । इसी वर्ष एक अन्य भारी परीक्षण आधार 12एम का निर्माण किया गया ।
· विशाखापटटनम, मद्रास, टयूटीकोरिन, मंगलौर, गोवा, कांडला पोर्ट क्षेत्र में मृदु/नरम समुद्री मृदा के स्थिरीकरण, नींव उपचार, यांत्रीकरण तथा सुधार, कृषि योग्य भूमि पर सड़क तथा भवन निर्माण पर परियोजना कार्य किया गया ।
· 8 अगस्त 1968 को डा. बी.एच. सुब्बाराजू ने अगले निदेशक का पदभार सम्भाला ।
- 1970-1979 के दौरान की मुख्य घटनाएं
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भारी वर्षा के कारण ऋषिकेष जोशीमठ सड़क पर भारी क्षति के पश्चात् भू-स्खलन पर परामर्श कार्य किया गया ।
· शिमला में भू-स्खलन के कारण सड़कों तथा भवनों को क्षति के पश्चात् अनेक सुधारात्मक उपाय संस्थान ने संस्तुत किए ।
· दिल्ली तथा बंगलौर के लिए विस्तृत शहरी सड़क सुधार तथा प्रबन्ध आयोजना प्रदान करने के लिए परियोजनाएं लेने के पश्चात् यातायात तथा परिवहन प्रभाग प्रकाश में आया । यातायात सरकुलेशन, चौराहा अभिकल्प, पार्किंग, पैदल यात्री सुविधा पर अनेक अन्य शहरों तथा कस्बों में अध्ययन किए गए ।
· क्षतिग्रस्त कंक्रीट सड़कों तथा हवाई पट्टियों की शीघ्र मरम्मत के लिए प्रौद्योगिकी विकसित की गई । इस विधि के द्वारा सिथेटिक रेजिन का प्रयोग करते हुए 8-12 घण्टों में मरम्मत पूरी की जा सकती है । इस तकनीक पर आइ आर सी ने एक निर्देश पुस्तिका प्रकाशित की ।
· बंधकों की उपयुक्त श्रेणी निर्धारित करने के लिए विभिन्न जलवायु स्थितियां परीक्षण पथ प्रयोग प्रारम्भ किए गए ।
· देश के शुष्क, अर्ध शुष्क, नम, अर्ध नम तथा पूर्व नम क्षेत्रों में डामर की विभिन्न पाँच श्रेणियों जैसे 30/40, 40/50 तथा 80/100 का अन्त:स्त्रवण अध्ययन किया गया ।
· मास्टिक एस्फाल्ट आपृष्ठन (घुटाई) के निष्पादन का अनुसंधान दर्शाता है कि यह कुट्टिम संरचना को अन्य परम्परागत विधियों की तुलना में बेहतर सुरक्षा तथा वहनीयता दे सकता है । सार्वजनिक निर्माण विभाग के पूरे देश में सड़क चौराहों, फलाईओवर, बस स्टाप तथा सेतुओं पर रपटन रोधक सतह के रूप में रोड़ी रोपित (ग्राफटिड) मास्टिक एस्फाल्ट बिछाना शुरू कर दिया ।
· केन्द्रीय मैकेनिकल अनुसंधान संस्थान के सहयोग से ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रैक्टर का प्रयोग करने की प्रौद्योगिकी का विकास किया गया । विभिन्न वाहनों/गतिमय उपस्करों जैसे डिस्क हैरो, रोटावेटर, रोटिल्लर, पानी टैंकर विकसित किए गए जो ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत उपयोगी तथा मितव्ययी पाए गए ।
· संस्थान ने कंक्रीट सड़क निर्माण के लिए कुछ उपयोगी यंत्र (डिवाइसिस) विकसित किए । इनमें स्वचालित जोड़ (सीलिंग) बंद करने का यंत्र, सतह पट्टी वाइब्रेटर, जोड़ निर्माण यंत्र हैं ।
· मरू तथा रेतीले क्षेत्रों के लिए पूर्व निर्मित कंक्रीट ब्लाक कुट्टिम प्रौद्योगिकी का विकास किया गया । सुनम्य तथा कंक्रीट कुटिटम का निर्माण जल तथा परिवहन के अभाव के कारण मरू क्षेत्रों में अत्यधिक कठिन होता है तथा उपयुक्त अभिकल्पित पूर्व निर्मित ब्लाक बिछाना बेहतर विकल्प है । खण्डों का अभिकल्प षट्कोणीय, सपाट सतह परन्तु तल खोखला रिब सहित है, जो कि अनवरत सतह बनाने के लिए स्टरडी गुच्छी (डोवेल्स) के साथ परस्पर जोड़े जाते हैं ।
· संस्थान में सड़क असमतलता नापने के यंत्र विकसित किए गए ।
· वै औ अ प की योजना ‘‘जिलों का रूपांतरण’’ के अन्तर्गत संस्थान ने आंध्रप्रदेश में करीम नगर जिले को चुना । इस चयन प्रक्रिया में सीविल अभियांत्रिकी क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले उतरदायित्व जैसे सड़क सुधार, आवास, जल आपूर्ति, स्वच्छता इत्यादि सम्मिलित थे ।
· विक्षेप तथा विकृति मापने के लिए संस्थान ने विभिन्न तकनीकों का विकास किया तथा सेतुओं का निष्पादन मूल्यांकन के लिए परीक्षण भार प्रयोग में लाए गए । इस क्षेत्र में आन्तरिक परीक्षण सुविधाएं भी विकसित की गई ।
· जुलाई 1977 में प्रो. सी जी स्वामिनाथन ने निदेशक का पदभार सम्भाला ।
· 1978 में यातायात एवं परिवहन प्रभाग द्वारा बम्बई महानगर क्षेत्र के लिए विस्तृत यातायात एवं परिवहन अध्ययन किया गया ।
· 1979 में संस्थान द्वारा विश्व बैंक द्वारा प्रायोजित सड़क उपभोक्ता लागत अध्ययन प्रारम्भ किया गया । अध्ययन का उद्देश्य विभिन्न परिस्थितियों के अन्तर्गत वाहन निष्पादन के गणितीय माडल का विकास करने के लिए विस्तृत डाटा एकत्रित करना था, जो कि विभिन्न वर्गों के वाहनों की ईधन खपत का अनुमान लगाएगा । डाटा का उपयोग विश्व बैंक के महामार्ग अभिकल्प तथा रखरखाव (एच डी एम -3) के माडल का विकास करने में किया गया ।
- 1980-1989 के दौरान की मुख्य घटनाएं
बाढ़ प्रमुख क्षेत्रों में ग्रामीण सड़कों के निर्माण की नई विधि विकसित की गई जिसमें अल्प सीमेंट उड़न राख आधार पर अल्प सीमेंट गुज्झी द्वारा अन्त:संबंधित पूर्व निर्मित कंक्रीट ब्लाक पगडंडी के साथ-साथ बिछाए गए । इस प्रकार पगडंडी रास्ते लम्बे समय तक बाढ़ के पानी में डूबे रहने पर भी अप्रभावित रहे ।
· भारत में बुनियादी (प्राइमरी) सड़क जालतंत्र की सड़क ज्यामितीय तथा सतह विशिष्टताओं पर अध्ययन किया गया । अध्ययन के अन्तर्गत 67 राष्ट्रीय महामार्ग पर फैली 31,700 कि.मी. लम्बाई का सूचीकरण सम्मिलित था । प्रत्येक कि.मी. के लिए रूक्षता, क्षैतिज वक्रता तथा उर्ध्वाधर प्रोफाइल डाटा एकत्रित करने के लिए यंत्रीकृत कार का प्रयोग किया गया । कुट्टिम स्थिति, चौड़ाई, सतह प्रकार पर अन्य डाटा भी सूचीकृत किया गया ।
· 1983 में डा. एम पी धीर ने नए निदेशक के रूप में पदभार सम्भाला ।
· 0.27 कि.ग्रा./एम2 तक रन्ध्र जलदाब मापने के लिए कैसाग्रैनेड पीजोमीटर का सुधरा रूप विकसित किया गया
· त्रि-अक्षीय सैल का सुधार किया गया जिसका प्रयोग क्षैतिज तथा उर्ध्वाधर दोनों दिशाओं में उभार दाब मापने के लिए किया जाता है ।
· 19 राष्टी्य हवाई अडडों को उनकी धावन-पट्टी (रनवे)कुट्टिम दृढ़ीकरण के लिए आंकलित किया गया । भारतीय विमान पतन (एयरपोर्ट) प्राधिकरण के अनुरोध पर 1987-89 के दौरान परियोजना ली गई ।
· विभिन्न राज्यों तथा राष्ट्रीय महामार्गो पर धुरी भार सर्वेक्षण मैकेनिकल भार सेतु का प्रयोग करते हुए पूरा किया गया । इस अध्ययन का उद्देश्य देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न महामार्गो पर अधिभार का निर्धारण करना था ।
· सेतुओं का भार वहन क्षमता परीक्षण विभिन्न नवीन विधियों का प्रयोग करते हुए किया गया । तेजपुर में ब्रहमपुत्र सेतु तथा जम्मू श्री नगर राष्ट्रीय महामार्ग पर आर सी सी सेतु का परीक्षण किया गया ।
· सेतुओं के इलैक्ट्रिक धारण परीक्षण से एकत्रित डाटा से आइ आर सी के लिए (कोड ऑफ प्रौक्टिस) प्रक्रिया संहिता बनाई गई ।
· बाह्य पूर्व-प्रतिबल विधि का प्रयोग करते हुए पुरातन ठाने क्रीक सेतु की भार वहन क्षमता को पुन:स्थापित किया गया ।
- 1990-1999 के दौरान की प्रमुख घटनाएं
प्रो. डी.वी. सिंह 1990 में संस्थान के नए निदेशक बने ।
· इस दशाब्दी की शुरूआत भूतल-परिवहन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रायोजित कुट्टिम निष्पादन अध्ययन से हुई । कुट्टिम निष्पादन संकेतक डाटा 113 परीक्षण खण्डों से पाक्षिक आधार पर एकत्रित किया गया जिसमें राज्य तथा महामार्गो से नमूना आधार पर कुछ चुनिंदा नए तथा पुराने दोनों खण्ड सम्मिलित किए गए । बाद में अनुकूलतम रखरखाव तथा पुनर्वास रणनीति निर्धारित करने के उददेश्य से विभिन्न प्रकार के निघर्षण स्तर के लिए अलग-अलग माडल विकसित किए गए ।
· संस्थान ने पालिमर संशोधित डामर (पीएमबी) संघटन विकसित कर इनका पेटेंट करवाया । देश में कुछेक उत्पादकों को उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी हस्तान्तरित की गई
· बैंकलमैन बीम का प्रयोग करते हुए विक्षेप ट्रांसडयूसर यंत्र के प्रयोग द्वारा विक्षेप डाटा संग्रह संचालित किया गया जिसके संकेत तत्काल परीक्षण के पश्चात् संसाधित सूचना तैयार करने के लिए माइक्रोप्रोसैसर आधारित प्रणाली में डाले गए ।
· कार्य स्थल सी बी आर मापने तथा अंकीय मान प्रदर्शित करने के लिए संस्थान में एक सुवाह्य यंत्र (पोर्टेबल डिवाइस) विकसित किया गया जो कि इम्पैक्ट टैस्टर के नाम से जाना जाता है ।
· कुटिटम स्थिति आंकड़ा संग्रह व्हीकल माउंटिड हाई रेजोल्यूशन कैमरा का प्रयोग करते हुए बनाया गया । प्रतिबिम्ब (इमेज) विश्लेषण साफ्टवेयर का प्रयोग करते हुए प्रणाली से कुटिटम की (दरार, उधेइन, गढढे) संकट पूर्ण स्थिति उत्पन्न हुई ।
· संस्थान के विशेषज्ञ (एक्सपर्ट) पर्यवेक्षण के अन्तर्गत अधिकतर पहाड़ी क्षेत्रों में अन्त:पाशन कंक्रीट खण्ड कुटिटम निर्मित की गई । इस प्रकार की कुट्टिम के लिए नीचे उचित नींव तथा किनारों से परिरोध सहारे की आवश्कता होती है ।
· प्रो. ए के गुप्ता ने 1996 में संस्थान के नए निदेशक का पदभार सम्भाला ।
· विभिन्न शहरों में पुरानी सुनम्य कुट्टिम का स्थान कंक्रीट कुट्टिम ले रही है क्योंकि आजकल देश में निर्माण के लिए कच्चा माल तथा प्रौद्योगिकी दोनों उपलब्ध हैं । संस्थान कंक्रीट सड़क निर्माण में बड़े पैमाने पर अभिकल्प प्रदाता, गुणवता नियंत्रक तथा पर्यवेक्षक के रूप में जुड़ा हुआ है ।
· इस दशक में संस्थान का रूचिपूर्ण अनुसंधान क्षेत्र का विषय रहा कि किस प्रकार अपशिष्ट सामग्री का निर्माण में प्रयोग किया जाए । संस्थान का प्रयास तटबंध निर्माण में उड़नराख, तल राख के प्रयोग को लोकप्रिय बनाना है । यह सार्वजनिक निर्माण विभाग में अच्छी तरह से स्वीकृत है तथा कुछेक महत्वपूर्ण कार्य हैं जैसे दूसरे निजामुददीन सेतु के लिए उड़न राख का तटबंध में प्रयोग, ओखला फलाई ओवर, कर्नाटक में रायचूर सड़क का कुछ खण्ड ।
· सेतु अभियांत्रिकी में आर सी सी संरचना में संक्षारण को न्यूनतम करने के लिए सुधरे हुए परत लेप (कोटिंग) पर खोज, टी-आधार आर सी सी संरचना के आचरण पर अध्ययन तथा सेतुओं के निष्पादन मानिटरिंग के लिए, नई तकनीकों का विकास करने के लिए निजी क्षेत्रों में दिशा निर्देश तथा अभिकल्प मैनुअल तैयार किए गए ।
· प्रो. पी के सिकदर ने संस्थान के आगामी निदेशक का पदभार 23 अक्टूबर 1998 में सम्भाला ।
- 2000-2005 के दौरान की महत्वपूर्ण घटनाएं
स्थानीय क्षेत्र जालतंत्र (लोकल एरिया नेटवर्क) ‘लैन’ स्थापित किया गया । ‘लैन’ कैम्पस में 200 पर्सनल कम्प्यूटरों को जोड़ने के लिए 10/100 MBPs बैंडविड्थ टी सी पी / आइ पी प्रोटोकोल का प्रयोग करते हुए उच्च गति कम्प्यूटर कंन्द्रीय तथा कार्यसमूह स्विच जालतंत्र है । लैन के साथ साथ उपयोगकर्त्ताओं को ई-मेल तथा इंटरनेट सेवाएं प्रदान की गईं । एंटीवायरस साफ्टवेयर भी डाला गया । संस्थान में आइ टी सुविधाओं का विस्तार किया गया । वैज्ञानिकों तथा अन्य स्टाफ सदस्यों को कम्प्यूटर, प्रिंटर तथा स्कैनर दिए गए ।
· भै. सू. प्र. (जी आई एस) प्रयोगशाला स्थापित की गई तथा एक अलग समूह केवल जी आइ एस अनुप्रयोग पर कार्य करने के लिए बनाया गया ।
· अनुसंधान तथा विकास प्रयोशालाओं के आधुनिकीकरण योजना को प्रारम्भ किया गया तथा बहुत से आधुनिकतम तथा स्टेट ऑफ आर्ट उपस्कर लिए गए और उनका परिचालन किया ।
· प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के द्वारा प्रारम्भ की गई । इस कार्यक्रम का उद्देश्य वर्ष 2007 तक 500 तक की जनसंख्या वाले गांवों के ग्रामीणों को मोटर चालित बारहमासी सड़कों से सम्बध्दता प्रदान करना था । संस्थान ने देश के विभिन्न भागों में जागरूकता लाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किए तथा इस कार्यक्रम को देश भर में ग्रामीण विकास मंत्रालय, राज्य सार्वजनिक निर्माण विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान तथा क्षेत्रीय अभियांत्रिकी विद्यालय के साथ समन्वित किया । संस्थान ने आधार डाक्यूमैंटस को तैयार करना प्रारम्भ किया, अन्य संगठनों के साथ परामर्श कर विधि प्रणाली तैयार की तथा अभिकल्प मैनुअल तथा साफटवेयर इष्टतम सम्बध्दता निर्धारित करने के लिए तैयार किया । कार्यान्वयन भाग बाद में राज्य पी डब्लू डी को हस्तान्तरित किया गया ।
· संस्थान ने प्रशिक्षण तथा महामार्ग विकास के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा एचडीएम-4 साफटवेयर के माध्यम से प्रबनध प्रैक्टिस जो कि बर्मि़गहम विश्वविद्यालय, यू.के. द्वारा कोड की गई तथा विश्व में अनेकों सीविल अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थानों के द्वारा बनाई गई ।
· डॉमर पर अनुसंधान जारी है । नई उत्पादन (जैनेरेशन) उच्च निष्पादन डामर तथा मिश्र अभिकल्प के अन्य प्रकार विकसित किए तथा उद्योग को प्रस्तावित किया गया ।
· संस्थान ने 28 फरवरी 2004 में बी आई एस से आई एस ओ 2001:1994 क्यू.एम.एस. लाइसैंस लिया गया आई.एस.ओ. प्रमाण पत्र से संस्थान को आन्तरिक कार्य प्रवाह तथा प्रबन्ध को पुन:गठित करने में सहायता मिली ।
· वाहन ई़धन नीति पर राष्ट्रीय परियोजना समय रहते पूरी की गयी तथा सी.एस.आई.आर. के माध्यम से भारत सरकार को संस्तुति दी गई ।
· केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने वर्ष के दौरान वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् के हीरक जयन्ती वर्ष के उपलक्ष में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जैसे कार्यशाला, गोलमेज, खुलामंच, प्रतियोगिताएं इत्यादि ।
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