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जयमंगल के मतानुसार चौंसठ कलाओं में से यह एक कला है। पीढ़ा, आसन, कुर्सी, पलंग, मोढ़े आदि चीज़ें बेंत बगेरे वस्तुओं से बनाना इस कला का रूप है।

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