बहुभर्तृता विवाह
बहुभर्तृता विवाह अथवा एक स्त्री से अनेक पुरुषों के विवाह प्रथा को कहा गया है। सुप्रसिद्ध प्राचीन भारतीय उदाहरण द्रौपदी का पाँच पांडवों के साथ विवाह यह परिपाटी अब भी भारत के अनेक प्रदेशों- लद्दाख में, पंजाब के काँगड़ा ज़िले के स्पीती लाहौल परगनों में, चंबाकु, कुल्लू और मंडी के ऊँचे प्रदेशों में रहने वाले कानेतों में, देहरादून ज़िले के जौनसार बाबर में, दक्षिण भारत में मालाबार के नायरों में, नीलगिरि के टोडों, कुरुंबों और कोटों में पाई जाती है। भारत से बाहर यह कुछ दक्षिणी अमरीकन इंडियन जातियों में मिलती है। इसके दो मुख्य प्रकार हैं। पहले प्रकार में एक स्त्री के आपस में सगे या सौतले होते हैं। इसे भ्रातृक बहुभर्तृता कहते हैं। द्रौपदी के पाँचों पति भाई थे। आजकल इस प्रकार की बहुभर्तृता देहरादून ज़िले में जौनसार बावर के खस लोगों में तथा नीलगिरि के टोडों में पाई जाती है। बड़े भाई के शादी करने पर उसकी पत्नी सब भाइयों की पत्नी समझी जाती है। इसके दूसरे प्रकार में एक स्त्री के अनेक पतियों में भाई का संबंध या अन्य कोई घनिष्ठ संबंध नहीं होता। इसे अभ्रातृक या मातृसत्ताक बहुभर्तृता कहते हैं। मालाबार के नायर लोगों में पहले इस प्रकार की बहुभर्तृता का प्रचलन था।
बहुभर्तृता विवाह के कारण
बहुभर्तृता के उत्पादक कारणों के संबंध में समाजशास्त्रियों तथा नृवंशशास्त्रियों में प्रबल मतभेद है। वैस्टरमार्क ने इसका प्रधान कारण पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का संख्या में कम होना बताया है। उदाहरणार्थ नीलगिरि के टोडों में बालिकावध की कुप्रथा के कारण एक स्त्री के पीछे दो पुरुष हो गए, अत: वहाँ बहुभर्तृता का प्रचलन स्वाभाविक रूप से हो गया। किंतु राबर्ट ब्रिफाल्ट ने यह सिद्ध किया कि स्त्रियों की कमी इस प्रथा का एक मात्र कारण नहीं है। तिब्बत, सिक्किम, लद्दाख, लाहौर, आदि बहुभर्तृक प्रथा वाले प्रदेशों में स्त्री पुरुषों की संख्या में कोई बड़ा अंतर नहीं है। कनिंघम के मतानुसार लद्दाख में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है। अत: सुमनेट, लोर्ड, बेल्यू आदि विद्वानों ने इसका प्रधान कारण निर्धनता को माना है। सुमनेर ने इसे तिब्बत के उदाहरण से पुष्ट करते हुए कहा है कि वहाँ पैदावार इतनी कम होती है कि एक पुरुष के लिए कुटुंब का पालन संभव नहीं होता, अत: कई पुरुष मिलकर पत्नी रखते हैं। इससे बच्चे कम होते हैं, जनसंख्या मर्यादित रहती है और परिवार की भूसंपत्ति विभिन्न भाइयों के बँटवारे से विभक्त नहीं होती।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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