विजया एकादशी

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विजया एकादशी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। यह एकादशी विजय की प्राप्ति को सशक्त करने में सहायक बनती है। तभी तो प्रभु श्रीराम ने भी इस व्रत को धारण करके अपनी विजय को पूर्ण रूप से प्राप्त किया था। एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के शुभ फलों में वृद्धि होती है तथा अशुभता का नाश होता है। विजया एकादशी व्रत करने से साधक व्रत से संबन्धित मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। सभी एकादशी अपने नाम के अनुरूप ही फल देती हैं।

पौराणिक महत्त्व

'विजया एकादशी' का पौराणिक महत्त्व भगवान श्रीराम से जुड़ा हुआ है, जिसके अनुसार विजया एकादशी के दिन भगवान राम लंका पर चढ़ाई करने के लिये समुद्र तट पर पहुंचे थे। समुद्र तट पर पहुंच कर भगवान श्रीराम ने देखा की सामने विशाल समुद्र है और उनकी पत्नी देवी सीता रावण की कैद में है। इस पर भगवान राम ने समुद्र देवता से मार्ग देने की प्रार्थना की, परन्तु समुद्र ने जब श्रीराम को लंका जाने का मार्ग नहीं दिया तो भगवान ने ऋषि गणों से इसका उपाय पूछा।

ऋषियों में भगवान राम को बताया की प्रत्येक शुभ कार्य को शुरु करने से पहले व्रत और अनुष्ठान कार्य किये जाते हैं। व्रत और अनुष्ठान कार्य करने से कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है और सभी कार्य सफल होते हैं। हे भगवान आप भी फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत विधिपूर्वक कीजिए। भगवान श्रीराम ने ऋषियों के कहे अनुसार व्रत किया। व्रत के प्रभाव से समुद्र ने प्रभु राम को मार्ग प्रदान किया और यह व्रत रावण पर विजय प्रदान कराने में मददगार बना। तभी से इस व्रत की महिमा का गुणगान आज भी सर्वमान्य रहा है और विजय प्राप्ति के लिये जन साधारण द्वारा किया जाता है।[1]

पूजा विधि

विजया एकादशी व्रत के विषय में यह मान्यता है कि एकादशी व्रत करने से स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्न दान और गौ दान से अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत के दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है। व्रत पूजन में धूप, दीप, नैवेध, नारियल का प्रयोग किया जाता है। विजया एकादशी व्रत में सात धान्य घट स्थापना की जाती है। सात धान्यों में गेहूँ, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर हैं। इसके ऊपर विष्णु जी की मूर्ति रखी जाती है। इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को पूरे दिन व्रत करने के बाद रात्रि में विष्णु पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए।

व्रत से पहले की रात्रि में सात्विक भोजन करना चाहिए और रात्रि भोजन के बाद कुछ नहीं लेना चाहिए। एकादशी व्रत 24 घंटों के लिये किया जाता है। व्रत का समापन द्वादशी तिथि के प्रात:काल में अन्न से भरा घड़ा ब्राह्मण को दान करके किया जाता है। यह व्रत करने से दु:ख दूरे होते हैं। अपने नाम के अनुसार विजया एकादशी व्यक्ति को जीवन की कठिन परिस्थितियों में विजय दिलाती है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 विजया एकादशी पर करें विजया की प्राप्ति (हिन्दी) हिन्दुमार्ग। अभिगमन तिथि: 11 फरवरी, 2015।

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