कीट
कीट (अंग्रेज़ी-Insect) प्राय: छोटा, रेंगने वाला, खंडों में विभाजित शरीर वाला और बहुत-सी टाँगों वाले प्राणी कीट को कहते हैं, वास्तव में यह नाम विशेष लक्षणों वाले प्राणियों को दिया जाना चाहिए। कीट अपृष्ठीवंशियों[1] के उस बड़े केसमुदाय अंतर्गत आते है जो संधिपाद[2] कहलाते हैं। लिनीयस ने सन 1735 में कीट[3] वर्ग में वे सब प्राणी सम्मिलित किए थे, जो अब संधिपाद समुदाय के अंतर्गत रखे गए हैं। लिनीयस के इनसेक्ट[4] शब्द को सर्वप्रथम एम. जे. ब्रिसन ने सन 1756 में सीमित अर्थ में प्रयुक्त किया। कीट अर्थोपोडा संघ का एक प्रमुख वर्ग है। तभी से यह शब्द इस अर्थ में व्यवहृत हो रहा है। सन 1825 में पी. ए. लैट्रली ने कीटों के लिये हेक्सापोडा[5]) शब्द का प्रयोग किया, इस शब्द से इन प्राणियों का एक अत्यंत महत्वपूर्ण लक्षण व्यक्त होता है।[6]
लक्षण
इनका शरीर खंडों में विभाजित रहता है जिसमें सिर में मुख भाग, एक जोड़ी श्रृंगिकाएँ[7], प्राय: एक जोड़ी संयुक्त नेत्र और बहुधा सरल नेत्र भी पाए जाते हैं। वृक्ष पर तीन जोड़ी टाँगों और दो जोड़े पक्ष होते हैं। कुछ कीटों में एक ही जोड़ा पक्ष होता है और कुछ पक्षविहीन भी होते है। उदर में टाँगें नहीं होती हैं। इनके पिछले सिरे पर गुदा होती है और गुदा से थोड़ा सा आगे की ओर जनन छिद्र होता है। श्वसन महीन श्वास नलियों[8] द्वारा होता हैं। श्वास नली बाहर की ओर श्वासरध्रं[9] द्वारा खुलती है। प्राय: दस जोड़ी श्वासध्रां शरीर में दोनों ओर पाए जाते हैं, किंतु कई जातियों में परस्पर भिन्नता भी रहती है। रक्त लाल कणिकाओं से विहीन होता है और प्लाज्म़ा[10] में हीमोग्लोबिन[11] भी नहीं होता। अत: श्वसन की गैसें नहीं पहुँचती हैं। परिवहन तंत्र खुला होता हैं, हृदय पृष्ठ की ओर आहार नाल के ऊपर रहता है। रक्त देहगुहा में बहता है, बंद वाहिकाओं की संख्या बहुत थोड़ी होती है। वास्तविक शिराएँ, धमनियों और कोशिकाएँ नहीं होती हैं। निसर्ग[12] नलिकाएँ पश्चांत्र के अगले सिरे पर खुलती हैं। एक जोड़ी पांडुर ग्रंथियाँ[13] भी पाई जाती हैं। अंडे के निकलने पर परिवर्धन प्राय: सीधे नहीं होता, साधारणतया रूपांतरण द्वारा होता है।[6]
जातियाँ
प्राणियों में सबसे अधिक जातियाँ कीटों की हैं। कीटों की संख्या अन्य सब प्राणियों की सम्मिलित संख्या से छह गुनी अधिक है। इनकी लगभग दस बारह लाख जातियाँ अब तक ज्ञात हो चुकी हैं। प्रत्येक वर्ष लगभग छह सहस्त्र नई जातियाँ ज्ञात होती हैं और ऐसा अनुमान है कि कीटों की लगभग बीस लाख जातियाँ संसार में वर्तमान में हैं। इतने अधिक प्राचुर्य का कारण इनका असाधारण अनुकूलन[14] का गुण हैं। ये अत्यधिक भिन्न परिस्थितियों में भी सफलता पूर्वक जीवित रहते हैं। पंखों की उपस्थिति के कारण कीटों को विकिरण[15] में बहुत सहायता मिलती हैं। ऐसा देखने में आता में है कि परिस्थितियों में परिवर्तन के अनुसार कीटों में नित्य नवीन संरचनाओं तथा वृत्तियों[16] का विकास होता जाता है।
पोषण तथा आवास
कीटों ने अपना स्थान किसी एक ही स्थान तक सीमित नहीं रखा है। ये जल, स्थल, आकाश सभी स्थानों में पाए जाते हैं। जल के भीतर तथा उसके ऊपर तैरते हुए, पृथ्वी पर रहते और आकाश में उड़ते हुए भी ये मिलते हैं। अन्य प्राणियों और पौधों पर बाह्य परजीवी[17] के रूप मे भी ये जीवन व्यतीत करते हैं। ये घरों में भी रहते हैं और वनों में भी, तथा जल और वायु द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच जाते हैं। कार्बनिक अथवा अकार्बनिक, कैसे भी पदार्थ हों, ये सभी में अपने रहने योग्य स्थान बना लेते हैं। उत्तरी ध्रुव प्रदेश से लेकर दक्षिणी ध्रुव प्रदेश तक ऐसा कोई भी स्थान नहीं जहाँ जीवधारियों का रहना हो ओर कीट न पाए जाते हों। वृक्षों से ये किसी रूप में अपना भोजन प्राप्त कर लेते हैं। सड़ते हुए कार्बनिक पदार्थ ही न जाने कितनी सहस्र जातियों के कीटों को आकृष्ट करते तथा उनका उदर पोषण करते हैं। यही नहीं कि कीट केवल अन्य जीवधारियों के ही बाह्य अथवा आंतरिक पारजीवी के रूप में पाए जाते हों, वरन उनकी एक बड़ी संख्या कीटों को भी आक्रांत करती है और उनसे अपने लिए आश्रय तथा भोजन प्राप्त करती हैं। अत्यधिक शीत भी इनके मार्ग में बाधा नहीं डालता है।
कीटों की ऐसी कई जातियाँ हैं, जो हिमांक से भी लगभग 50 सेंटीग्रेट नीचे के ताप पर जीवित रह सकती हैं। दूसरी ओर कीटों के ऐसे वर्ग भी हैं जो गरम पानी के उन श्रोतों में रहते हें जिसका ताप 40 से अधिक है। कीट ऐसे मरुस्थलों में भी पाए जाते हैं जहां का माध्यमिक ताप 60 सेल्सियस तक पहुँच जाता है, कुछ कीट तो मरुस्थलों में भी पाऐ जाते हैं। जहाँ का माध्यमिक ताप 60 सेल्सियस तक पहुँच जाता है। कुछ कीट तो ऐसे पदार्थों में भी अपने लिए पोषण तथा आवास ढूँढ लेते हैं जिसके विषय में कल्पना भी नहीं की जा सकती कि उनमें कोई जीवधारी रह सकता है या उनके प्राणी अपने लिए भोजन प्राप्त कर सकता है।
उदाहरण- साइलोसा पेटरोली[18] नामक कीट के डिंभ कैलीफोर्निया के पैट्रोलियम के कुओं में रहते पाये गये हैं। कीट तीक्ष्ण तथा विषेले पदार्थों में रहते तथा अभिजनन करते पाए गए हैं। जैसे अपरिष्कृत टार्टर जिसमे 80 प्रतिशत पौटेशियम वाईटार्टरेट होता है। अफीम, |लाल मिर्च, अदरक, नौसादर, कुचला[19] पिपरमिंट, कस्तूरी, मदिरा की बोतलों के काम, रँगने वाले ब्रश। कुछ कीट ऐसे भी हैं जो गहरे कुओं और गुफाओं मे रहते हैं, जहाँ प्रकाश कभी नहीं पहुँचता है। अधिकतर कीट उष्ण देशों में मिलते हैं और इन्हीं कीटों से नाना प्रकार की आकृतियों तथा रंग पाए जाते हैं।
व्यवहार
सहजवृति[20] के कारण कीटों का व्यवहार स्वभावत: ऐसा होता है जिससे उनके निजी कार्य में निरंतर लगे रहने की दृढ़ता प्रकट होती है। उनमें विवेक और विचारशक्ति का अभाव होता है। घरेलू मक्खियों को ही लें। बारबार किए जाने वाले प्रहार से वे न तो डरती हैं और न हतोत्साहित ही होती हैं। उन्हें हार मानना तो जैसे आता ही नहीं। जब तक उनके शरीर में प्राण रहते हैं, तब तक वे अपने भोजन की प्राप्ति तथा संतानोत्पति के कार्य की पूर्ति में बराबर लगी रहती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Invertebrates
- ↑ Anthropoda
- ↑ इनसेक्ट=इनसेक्टम्=कटे हुए
- ↑ इनसेक्टम्
- ↑ Hexapoda
- ↑ 6.0 6.1 कीट (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 17 अगस्त, 2015।
- ↑ Antenna
- ↑ ट्रेकिया-Trachea
- ↑ स्पाहरेकल Spiracle
- ↑ Plasma
- ↑ Haemoglobin
- ↑ मैलपीगियन-Malpighian
- ↑ Corpora allata
- ↑ ऐडैप्टाबिलिटी-Adaptability
- ↑ डिसपर्सल-dispersal
- ↑ हैबिट्स- habit
- ↑ इंटर्नल पैरासाइट-internal parasite
- ↑ Psilosa petroll
- ↑ स्ट्रिकनीन-strychnine
- ↑ Instinct
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