डी. एन. खुरोदे
डी. एन. खुरोदे
| |
पूरा नाम | दारा नुसेरवानजी खुरोदे |
जन्म | 2 जनवरी 1906 |
जन्म भूमि | महू, इन्दौर (मध्य प्रदेश) |
मृत्यु | 1 जनवरी 1983 |
मृत्यु स्थान | मध्य प्रदेश |
पुरस्कार-उपाधि | रमन मैगसेसे पुरस्कार |
विशेष योगदान | डी. एन. खुरोदे को खाद्य संसाधनों की आपूर्ति तथा साफ-सुथरा शहरी रख-रखाव की समस्या का लाभकारी हल स्थापित करने के लिए वर्ष 1963 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया। |
नागरिकता | भारतीय |
अद्यतन | 15:29, 11 अगस्त 2016 (IST)
|
दारा नुसेरवानजी खुरोदे (अंग्रेज़ी: Dara Nusserwanji Khurody, जन्म: 2 जनवरी 1906 - मृत्यु:1 जनवरी 1983) एशिया के बड़े और घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों में आवश्यक खाद्य संसाधनों की आपूर्ति तथा साफ-सुथरा शहरी रख-रखाव, दोनों बनाए रखना एक समस्या रही है। सरकारी तथा निजी उद्योग व्यवस्थाओं के बीच उत्साही तालमेल बनाए बगैर यह काम सम्भव नहीं है। डी. एन. खुरोदे ने अपने क्षेत्र में इस समस्या का लाभकारी हल स्थापित किया और गाँवों के उत्पादकों के जीवन स्तर उठाने में उपयोगी सिद्ध हुए। उनके इस महत्त्वपूर्ण काम के लिए वर्ष 1963 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया। इनके साथ वर्गीज़ कुरियन तथा टी. डी. पटेल भी शामिल थे।[1]
दूध का उत्पादन
लगभग पूरे भारत में दूध सभी शाकाहारी जनों का प्रमुख खाद्य है। इससे प्रोटीन तो मिलता ही है, पकाने के लिए घी भी मिलता है। बहुत समय तक लोगों ने दूध, घी, मक्खन तथा दही-मट्ठे आदि के लिए अपने पशु, विशेष रूप से भैंस पाल कर रखीं। शहरीकरण ने इस व्यवस्था में बाधा पहुँचाई। साफ-सफाई की जरूरत ने इन पशुओं को अवांछित करार दे दिया। इनके लिए चरागह खत्म होने लगे। ऐसे में गाँवों से दूधिए मिलावटी दूध लाकर शहरों में देने लगे, तब भी जरूरत भर आपूर्ति नहीं हो पाई।
इस समस्या का हल खुरोद ने वर्ष 1940 से खोजना शुरू किया, जो आज विकसित होकर मुम्बई की डेयरी के जरिए दूध का उत्पादन तथा विवरण कर रहे हैं। इन्होंने मुम्बई के डेयरी कमिश्नर के रूप में और फिर महाराष्ट्र राज्य के सह-सचिव (ज्वाइंट सेक्रेटरी) के रूप किया। यह कॉलोनी आरे कॉलोनी के नाम से मुम्बई से बीस मील उत्तरी मुम्बई की ओर बनाई गई, जहाँ दूध को एकत्रित करके एक विशेष प्रक्रिया (पॉश्चुराइजेशन) के बाद पैक कर के वितरित किया जाने लगा। यहीं पर दूध की क्वालिटी तय की गई और निर्धारित मूल्य पर बेचा जाने लगा। इस दूध का लाभ नागरिकों को तो हुआ ही, इसे विभिन्न अस्पतालों में सप्लाई किया गया तथा मुम्बई के बहत्तर हजार कुपोषित बच्चों को उनके स्कूलों में मुफ्त में बाँटा जाने लगा।
श्वेत क्रांति
इस योजना के लागू होने से हज़ारों जानवर शहरी क्षेत्रों से बाहर लाकर बेहतर ढंग से पाले जाने लगे। उनका स्वास्थ्य बेहतर हुआ और इनकी दूध देने की क्षमता में 20 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई। इस सफलता के बाद दारा खुरोदे ने वरली में एक और प्लांट लगवाया जिसने इसी क्रम से काम करना शुरू कर दिया। मुम्बई की इस सफलता ने शहरी क्षेत्र के लिए एक नई धारा का रास्ता खोला। गुजरात में आनन्द में वर्गीज़ कुरियन तथा त्रिभुवन दास पटेल ने भी वहाँ श्वेत क्रांति की नींव डाली।
अमूल की स्थापना
कुरियन तथा त्रिभुवन पटेल ने दूध के उत्पादन का प्लांट लगाया और इस तरह 'अमूल' की स्थापना हुई। इस व्यवस्था से गुजरात में पूरे साल दूध का उत्पादन होने लगा और इसका जुड़ाव मुम्बई की आरे कॉलोनी के संयंत्र से हो गया, जहाँ पूरे वर्ष दूध की खपत होती रहती है। इससे काइरा यूनियन की स्थापन को मुम्बई सरकार, यूनीसेफ (UNICEF) तथा बहुत से देशों से आर्थिक सहायता मिलनी शुरू हुई। विकास के अगले क्रम में कुरियन तथा त्रिभुवन दास पटेल ने मिलकर दूध के पाउडर, कंडेस्ड मिल्क तथा बच्चों के लिए मिल्क फूड का भारत में पहला प्लांट खड़ा किया। यह दुनिया में एक अनोखा अकेला प्लांट बना, जो भैंस के दूध को पाउडर में बदल सकता था। उत्पादन के बाद त्रिभुवनदास पटेल तथा कुरियन के उद्यम ने गुजरात को- अपारेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF) की स्थापना की, जो काइरा यूनियन के उत्पादों की वितरण व्यवस्था सम्भालने लगा और आज भी 'अमूल' के उत्पादों की बिक्री और विरतण-विस्तार का काम सम्भाल रहा है।
त्रिभुवनदास पटेल का परिचय
त्रिभुवनदास पटेल का जन्म 22 अक्टूबर 1903 को गुजरात में हुआ था। उनके पिता के. बी. पटेल में और आरे परिवार में राजनैतिक वातावरण था। त्रिभुवन दास पटेल ने अपनी जीविका अपने देशबंधु प्रिटिंग प्रेस से शुरू की लेकिन उनका प्रारम्भिक जीवन गाँधी जी तथा सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ स्वतंत्रता आन्दोलनों में बीता। वर्ष 1930 में, 1935 में तथा 1942 में पटेल तीन बार जेल गए। स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1964 में उन्हें पद्मभूषण पुरस्कार प्रदान किया गया। वह गाँधीवादी होने के नाते काँग्रेस पार्टी से जुड़े हुए थे और वह दो बार 1967-1968 तथा 1968-1974 तक राज्य सभा के सदस्य भी रहे। त्रिभुवन दास पटेल छह पुत्रों तथा एक पुत्री के पिता बने। श्वेत क्रांति के मूल प्रोजक्ट के अलावा इन्होंने काइरा जिले में सात सामुदायिक निवास के प्रोजेक्ट चलाए तथा उनसे सक्रियता से जुड़े रहे।
वर्ल्ड फूड प्राइज
श्वेत क्रांति में उनके सहयोगी कुरियन वर्गीज़ भी अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित किए गए। उन्हें 1965 में पद्मश्री तथा 1966 में पद्मभूषण दिया गया। कुरियन वर्गीज़ को राष्ट्रपति द्वारा कृषिरत्न पुरस्कार भी वर्ष 1986 में प्रदान किया गया। उसी वर्ष उन्हें कार्नेको फाउंडेशन द्वारा वाटरपीस प्राइज अवार्ड भी मिल। वर्ष 1989 में उन्हें 'वर्ल्ड फूड प्राइज' अवार्ड दिया गया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मैग्सेसे पुरस्कार विजेता भारतीय |अनुवादक: अशोक गुप्ता |प्रकाशक: नया साहित्य, 1590, मदरसा, रोड, कशमीरी गेट दिल्ली-110006 |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 23-25 |
संबंधित लेख