ज्ञानी ज़ैल सिंह
ज्ञानी ज़ैल सिंह
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पूरा नाम | ज्ञानी ज़ैल सिंह |
जन्म | 5 मई, 1916 |
जन्म भूमि | फरीदकोट ज़िले, पंजाब |
मृत्यु | 25 दिसंबर, 1994 |
मृत्यु स्थान | चंडीगढ़ |
मृत्यु कारण | सड़क दुर्घटना |
अभिभावक | किसान सिंह |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | कांग्रेस |
पद | भारत के आठवें राष्ट्रपति |
कार्य काल | 25 जुलाई, 1982 – 25 जुलाई, 1987 |
जेल यात्रा | अंग्रेजों द्वारा कृपाण[1] पर रोक लगाने के विरोध में ज़ैल सिंह को भी जेल जाना पड़ा था। |
अन्य जानकारी | ज्ञानी ज़ैल सिंह ने ‘प्रजामंडल’ का गठन किया। |
ज्ञानी ज़ैल सिंह (अंग्रेज़ी: Gyani Zail Singh, जन्म 5 मई, 1916; मृत्यु 25 दिसंबर, 1994) सिख धर्म के विद्वान पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके थे। वह अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति, सत्यनिष्ठा के राजनीतिक कठिन रास्तों को पार करते हुए भारत के राष्ट्रपति पद पर पहुँचे। 1982 में भारत के गौरवमयी राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुए। 1987 तक के अपने कार्यकाल के दौरान इन्हें 'ब्लूस्टार ऑपरेशन' एवं इंदिरा गांधी की हत्या जैसी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों से गुजरना पड़ा।
जीवन परिचय
जन्म
उनका जन्म पंजाब में फरीदकोट ज़िले के संधवा नामक गांव में 5 मई, 1916 ई. को हुआ। ज्ञानी ज़ैल सिंह का बचपन का नाम जरनैल सिंह था। पिता खेती करते थे। वह एक किसान के बेटे थे जिसने हल चलाया, फसल काटी, पशु चराए और खेती के विभिन्न काम करते थे, एक दिन भारत का राष्ट्रपति बन गये। यह बहुत ही असाधारण बात है और इसे सिद्ध कर दिखाया और ज्ञानी ज़ैल सिंह देश के आठवें राष्ट्रपति बन गये।
शिक्षा
ज्ञानी ज़ैल सिंह की स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं हो पाई कि उन्होंने उर्दू सीखने की शुरूआत की, फिर पिता की राय से गुरुमुखी पढ़ने लगे। इसी बीच में वे एक परमहंस साधु के संपर्क में आए। अढाई वर्ष तक उससे बहुत कुछ सीखने-पढ़ने को मिला। फिर गाना-बजाना सीखने की धुन सवार हुई तो एक हारमोनियम बजाने वाले के कपड़े धोकर, उसका खाना बनाकर हारमोनियम बजाना सीखने लगे। पिता ने राय दी कि तुम्हें गाना आता है तो कीर्तन करो, गुरुवाणी का पाठ करो। इस पर जरनैल सिंह ने ‘ग्रंथी’ बनने का निश्चय किया और स्कूली शिक्षा छूटी रह गई। वे गुरुग्रंथ साहब के ‘व्यावसायिक वाचक’ बन गए। इसी से ‘ज्ञानी’ की उपाधि मिली। अंग्रेजों द्वारा कृपाण पर रोक लगाने के विरोध में ज़ैल सिंह को भी जेल जाना पड़ा था। वहां उन्होंने अपना नाम जैल सिंह लिखवा दिया। छूटने पर यही जैल सिंह नाम प्रसिद्ध हो गया।
क्रांतिकारी
ज्ञानी ज़ैल सिंह क्रांतिकारियों के भी संपर्क में रहे। उन्होंने ‘प्रजामंडल’ का गठन किया। वे मास्टर तारासिंह के संपर्क में आए, जिन्होंने उन्हें फिर पढ़ने के लिए भेज दिया। वहां वे अधिक समय नहीं टिके और गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में नौकरी कर ली। स्वतंत्रता की भावना और राष्ट्रीय विचार उनके अंदर आरंभ से ही थे। 1946 में जब फरीदकोट में अफसरों ने तिरंगा झंडा नहीं फहराने दिया तो ज्ञानी जी ने नेहरू जी को निमंत्रित कर लिया। इस अवसर पर पूरे फरीदकोट को ज्ञानी जी के पीछे खड़ा देखकर नेहरू जी ने उनके प्रभाव का अनुभव किया और ज्ञानी जी उनके निकट आ गए। 1969 में उनकी इंदिरा जी से राजनीतिक निकटता बढ़ी। 1972 से 1977 तक ज्ञानी जी पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। 1980 में जब इंदिरा जी पुनः सत्ता में आईं तो उन्होंने ज्ञानी जी को देश का गृहमंत्री बनाया।
कार्यकाल
1982 में श्री नीलम संजीव रेड्डी का कार्यकाल समाप्त होने पर ज्ञानी जी देश के आठवें राष्ट्रपति चुने गए। 25 जुलाई, 1982 को उन्होंने पद की शपथ ली। उनके कार्यकाल में अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर में ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ तथा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या प्रमुख घटनाएं हैं। इंदिरा जी की हत्या के बाद राजीव गांधी को आपने ही प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई। यद्यपि अंतिम दिनों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के संबंधों में खिंचाव के समाचार आने लगे थे, पर ज्ञानी जी अपना संतुलन बनाए रहे। 25 जुलाई, 1987 में उनका कार्यकाल पूरा हुआ था।
निधन
ज्ञानी ज़ैल सिंह का निधन 25 दिसंबर, 1994 ई. को एक सड़क दुर्घटना में घायल होने के कारण हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ तलवार या कटार
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