कदम्ब
कदम्ब | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कदम्ब (बहुविकल्पी) |
कदम्ब
| |
जगत | पादप (Plantae) |
गण | जेनशियानेल्स (Gentianales) |
कुल | रूबियेसी (Rubiaceae) |
जाति | नियोलामार्किया (Neolamarckia") |
प्रजाति | कैडेम्बा (cadamba) |
द्विपद नाम | नियोलामार्किया कदम्बा (Neolamarckia cadamba") |
फूल | गेंद की तरह गोल लगभग 55 सेमी व्यास के होते हैं जिसमें अनेक उभयलिंगी पुंकेसर कोमल शर की भाँति बाहर की ओर निकले होते हैं। |
तना | कदम्ब का तना 100 से 160 सेंटीमीटर व्यास का, चिकना, सफेदी लिए हुए हल्के भूरे रंग का होता है। |
अन्य जानकारी | बाणभट्ट के प्रसिद्ध काव्य "कादम्बरी" की नायिका "कादम्बरी" का नाम भी कदम्ब वृक्ष के आधार पर है। इसी तरह भारवि, माघ और भवभूति ने भी अपने काव्य में कदम्ब का विशिष्ट वर्णन किया है। |
कदम्ब एक प्रसिद्ध फूलदार वृक्ष है। कदम्ब का पेड़ काफ़ी बड़ा होता है। कदम्ब के पेड़ ग्रामीण क्षेत्रों में ज़्यादा होते हैं। इसके पत्ते बड़े और मोटे होते हैं जिनसे गोंद भी निकलता है। कदम्ब के पेड़ के पत्ते महुए के पत्तों जैसे और फल नीबू की तरह गोल होते है और फूल फलों के ऊपर ही होते हैं। फूल छोटे और खुशबुदार होते हैं। वर्षा ऋतु में जब यह फूलता है, तब पूरा वृक्ष अपने हल्के पीले रंग के छोटे-छोटे फूलों से भर जाता है। उस समय इसके फूलों की मादक सुगंध से ब्रज के समस्त वन और उपवन महकने लगते हैं। कदम्ब के वृक्ष में एल्केलायड कदम्बाई न. 3, अल्फाडीहाइड्रो कदम्बीन, ग्लैकोसीड्स एल्केलायड, आइसो- डीहाइड्रो कदम्बीन, बीटासिटोस्तीराल, क्लीनोविक एसिड, पेंतासायक्लीक, ट्रायटार्पेनिक एसिड, कदम्बाजेनिक एसिड, सेपोनिन, उत्पत्त तेल, क्वीनारिक एसिड आदि रासायनिक तत्वों की भरमार होती है, जिनकी वजह से कदम्ब देव वृक्ष की श्रेणी में आता है।
जाति एवं रंग
ब्रज में इसकी कई जातियां पायी जाती हैं, जिसमें श्वेत-पीत लाल और द्रोण जाति के कदंब उल्लेखनीय हैं। साधारणतया यहां श्वेत-पीप रंग के फूलदार कदंब ही पाये जाते हैं। किन्तु कुमुदवन की कदंबखंडी में लाल रंग के फूल वाले कदंब भी पाये जाते हैं। श्याम ढ़ाक आदि कुख स्थानों में ऐसी जाति के कदंब हैं, जिनमें प्राकृतिक रुप से दोनों की तरह मुड़े हुए पत्ते निकलते हैं। इन्हें 'द्रोण कदंब' कहा जाता है। गोवर्धन क्षेत्र में जो नवी वृक्षों का रोपड़ किया गया है, उनमें एक नये प्रकार का कदंब भी बहुत बड़ी संख्या में है। ब्रज के साधारण कदंब से इसके पत्ते भिन्न प्रकार के हैं तथा इसके फूल बड़े होते हैं, किन्तु इनमें सुगंध नहीं होती है। ब्रज में कदंब का वृक्ष सदा से बड़ा प्रसिद्ध और लोकप्रिय रहा है। राधा-कृष्ण की अनेक लीलाएँ इसी वृक्ष के सुगन्धित वातावरण में हुई थीं। मध्य काल में ब्रज के लीला स्थलों के अनेक उपवनों में अनेक उपवनों इस वहुत बड़ी संख्या में लगाया गया था। वे उपवन 'कदंबखंडी' कहलाते हैं। कदम्ब की कई सारी जातियाँ हैं जैसे-
- राजकदम्ब
- धूलिकदम्ब
- कदम्बिका
सामान्य परिचय
कदंब भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाला शोभाकर वृक्ष है। सुगंधित फूलों से युक्त बारहों महीने हरे, तेज़ी से बढ़ने वाले इस विशाल वृक्ष की छाया शीतल होती है। इसका वानस्पतिक नाम एन्थोसिफेलस कदम्ब या एन्थोसिफेलस इंडिकस है, जो रूबिएसी परिवार का सदस्य है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल, उड़ीसा में यह बहुतायत में पाया जाता है। इसके पेड़ की अधिकतम ऊँचाई 45 मीटर तक हो सकती है। पत्तियों की लंबाई 13 से 23 से.मी. होती हैं। अपने स्वाभाविक रूप में ये चिकनी, चमकदार, मोटी और उभरी नसों वाली होती हैं, जिनसे गोंद निकलता है।
कदम्ब का फूल
चार पाँच वर्ष का होने पर कदम्ब में फूल आने शुरू हो जाते हैं। कदंब के फूल लाल गुलाबी पीले और नारंगी रंग की विभिन्न छायाओं वाले हो सकते हैं। अन्य फूलों से भिन्न इनके आकार गेंद की तरह गोल लगभग 55 से.मी. व्यास के होते हैं जिसमें अनेक उभयलिंगी पुंकेसर कोमल शर की भाँति बाहर की ओर निकले होते हैं। ये गुच्छों में खिलते हैं इसीलिए इसके फल भी छोटे गूदेदार गुच्छों में होते हैं, जिनमें से हर एक में चार संपुट होते हैं। इसमें खड़ी और आड़ी पंक्तियों में लगभग आठ हज़ार बीज होते हैं। पकने पर ये फट जाते हैं और इनके बीज हवा या पानी से दूर दूर तक बिखर जाते हैं। कदंब के फल और फूल पशुओं के लिए भोजन के काम आते हैं। इसकी पत्तियाँ भी गाय के लिए पौष्टिक भोजन समझी जाती हैं। इसका सुंगंधित नारंगी फूल हर प्रकार के पराग एकत्रित करने वाले कीटों को आकर्षित करता है जिसमें अनेक भौंरे मधुमक्खियाँ तथा अन्य कीट शामिल हैं।
कदम्ब का तना
कदम्ब का तना 100 से 160 सेंटीमीटर व्यास का, चिकना, सफेदी लिए हुए हल्के भूरे रंग का होता है। बड़े होने पर यह खुरदुरा और धारीदार हो जाता है। और अधिक पुराना होने पर धारियाँ टूट कर चकत्तों जैसी बन जाती हैं। कदंब की लकड़ी सफ़ेद से हल्की पीली होती है। इसका घनत्व 290 से 560 क्यूबिक प्रति मीटर और नमी लगभग 15 प्रतिशत होती है। लकड़ी के रेशे सीधे होते हैं यह छूने में चिकनी होती है और इसमें कोई गंध नहीं होती। लकड़ी का स्वभाव नर्म होता है इसलिए औज़ार और मशीनों से यह आसानी से कट जाती है। यह आसानी से सूख जाती है और इसको खुले टैंकों या प्रेशर वैक्युअम द्वारा आसानी से संरक्षित किया जा सकता है। इसका भंडारण भी लंबे समय तक किया जा सकता है। इस लकड़ी का प्रयोग प्लाइवुड के मकान, लुगदी और काग़ज़, बक्से, क्रेट, नाव और फर्नीचर बनाने के काम आती है। कदम्ब के पेड़ से बहुत ही उम्दा किस्म का चमकदार काग़ज़ बनता है। इसकी लकड़ी को राल या रेज़िन से मज़बूत बनाया जाता है। कदम्ब की जड़ों से एक पीला रंग भी प्राप्त किया जाता है।
प्रकृति, पर्यावरण और स्वास्थ्य का संरक्षक
जंगलों को फिर से हरा भरा करने, मिट्टी को उपजाऊ बनाने और सड़कों की शोभा बढ़ाने में कदंब महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह तेज़ी से बढ़ता है और छह से आठ वर्षों में अपने पूरे आकार में आ जाता है। इसलिए जल्दी ही बहुत-सी जगह को हरा भरा कर देता है। विशालकाय होने के कारण यह ढ़ेर-सी पत्तियाँ झाड़ता है जो ज़मीन के साथ मिलकर उसे उपजाऊ बनाती हैं। सजावटी फूलों के लिए इसका व्यवसायिक उपयोग होता है साथ ही इसके फूलों का प्रयोग एक विशेष प्रकार के इत्र को बनाने में भी किया जाता है। जयपुर के सुरेश शर्मा ने कदंब के पेड़ से एक ऐसी दवा विकसित की है जो टाइप-2 डायबिटीज का उपचार कर सकती है। भारत सरकार के कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट्स द्वारा इस दवा का पेटेंट भी दे दिया गया है और विश्व व्यापार संगठन ने इसे अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण नंबर प्रदान किया है। डॉ. शर्मा के अनुसार कदंब के पेड़ों में हाइड्रोसिनकोनाइन और कैडेमबाइन नामक दो प्रकार के क्विनोलाइन अलकेलॉइड्स होते हैं। इनमें से हाइड्रोसिनकोनाइन शरीर में बनने वाली इंसुलिन के उत्पादन को नियंत्रित करता है और कैडेमबाइन इंसुलिन ग्राहियों को फिर से इंसुलिन ग्रहण करने के प्रति संवेदनशील बना देता है। गौरतलब है कि टाइप-2 डायबिटीज में या तो शरीर पर्याप्त इंसुलिन पैदा नहीं करता है या फिर कोशिकाएँ इंसुलिन ग्रहण करने के प्रति संवेदनशीलता खो देती हैं यानी इंसुलिन ग्रहण करना छोड़ देती हैं। फिलहाल इस दवा का व्यवसायिक निर्माण प्रारंभ नहीं हुआ है। इस प्रकार कदंब का वृक्ष प्रकृति और पर्यावरण को तो संरक्षण देता ही है, औषधि और सौन्दर्य का भी महत्त्वपूर्ण स्रोत है।[1]
कृष्ण का कदम्ब
कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा होने के कारण कदम्ब का उल्लेख ब्रजभाषा के अनेक कवियों ने किया है। इसका इत्र भी बनता है जो बरसात के मौसम में अधिक उपयोग में आता है। मथुरा में अब यह वृक्ष बहुत ही कम पाया जाता है।
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन ।
जौ पसु हौं तौ कहा बस मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन ॥
पाहन हौं तौ वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर-धारन ।
जौ खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल कदंब की डारन ॥
इन्हें भी देखें: यह कदम्ब का पेड़ -सुभद्रा कुमारी चौहान
ब्रज में कदम्ब का विशेष महत्त्व
ब्रज में कदम्ब के पेड़ की बहुत महिमा है। जब ब्रज की कुंज गलियन में अठखेलियां करने वाला कान्हा कभी कदम्ब की सघन छांव में आँखें बंद करके बांसुरी की तान छेड़ता तो प्रकृति भी सम्मोहित हो उठती थी। कदम्ब के वृक्ष से कालिया नाग पर छलांग लगाने, गोपियों के वस्त्र चुराने की घटना हो या सुदामा के साथ चने खाने का वाकया। द्वापर के जमाने में कृष्ण का साथी रहा कदम्ब का वृक्ष आज उपेक्षा का शिकार हो चला है। कभी मोदरा के आशापुरी माता मंदिर प्रांगण में कदम्ब के दर्जनों वृक्ष हुआ करते थे, लेकिन अब इन वृक्षों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। ऐतिहासिक महत्व के इन वृक्षों के प्रति क्षेत्र के लोगों की अगाध आस्था है। बड़े-बूढ़ों के मुताबिक एक जमाना था जब यहां रमणियां श्रावणी तीज पर उन पर झूले डालकर ऊंची पींगे बढ़ाती थीं। अमावस्या, पूर्णिमा, एकादशी और चौथ समेत कई तिथियों पर यहां की महिलाएं अब भी इन वृक्षों का पूजन करके वस्त्र आदि चढ़ाती हैं। एक पौराणिक कथा के मुताबिक स्वर्ग से अमृत पीकर लौट रहे विष्णु के वाहन गरुड़ की चोंच से कुछ बूंदे कदम्ब के वृक्ष पर गिर गई थी। इस कारण यह अमृत तुल्य माना जाता है। श्रावण मास में आने वाले इसके फूलों का भी विशेष महत्व है।
कामदेव का प्रिय वृक्ष
29 नक्षत्रों में से शतभिषा नक्षत्र का वृक्ष कदम्ब कामदेव का प्रिय माना जाता है। इसके अलावा भगवान विष्णु, देवी पार्वती और काली का भी यह प्रिय वृक्ष है। भीनमाल के कवि माघ ने अपने काव्य में इसका वर्णन किया। उनके अलावा बाणभट्ट के प्रसिद्ध काव्य "कादम्बरी" की नायिका "कादम्बरी" का नाम भी कदम्ब वृक्ष के आधार पर है। इसी तरह भारवि, माघ और भवभूति ने भी अपने काव्य में कदम्ब का विशिष्ट वर्णन किया है। वहीं प्रसिद्ध वैज्ञानिक आर्यभट ने अपने शोध में कदम्ब वृक्ष का उल्लेख किया है।[2]
औषधीय उपयोग
- ग्रामीण अंचलों में इसका उपयोग खटाई के लिए होता है। इसके बीजों से निकला तेल खाने और दीपक जलाने के काम आता है।
- बच्चों में हाजमा ठीक करने के लिए कदंब के फलों का रस बहुत ही फ़ायदेमंद होता है।
- इसकी पत्तियों के रस को अल्सर तथा घाव ठीक करने के काम में भी लिया जाता है।
- आयुर्वेद में कदंब की सूखी लकड़ी से ज्वर दूर करने की दवा तथा मुँह के रोगों में पत्तियों के रस से कुल्ला करने का उल्लेख मिलता है।
- यदि पशुओं को कोई रोग हो जाए तो इसके फूलों और पत्तियों को पशुओं को बाड़े में रखे, रोग नहीं फैलेगा।
- कदंब की पत्तियाँ सांप काटने के इलाज में काम आती हैं।
- इसकी जड़ मूत्र रोगों में लाभकारी है।
- इसकी छाल को घिस कर बाहर से लगाने पर कनजक्टीवाइटिस ठीक हो जाता है।
- इसके फलों का रस माँ के दूध को बढाता है।
- चोट या घाव या सूजन पर इसके पत्तों को हल्का गर्म कर बाँधने से आराम मिलता है।[3]
घरेलू उपयोग
- कदम्ब के फूल पत्ते, छाल, फल सभी लाभदायक हैं।
- बुखार न जा रहा हो तो कदम्ब की छाल का काढा दिन में दो- तीन बार पी लीजिये।
- अगर पत्तों के काढ़े से कुल्ला करेंगे तो मुंह के छाले और दांत की बीमारियों में आराम मिलेगा।
- बदहजमी हो गयी हो तो कदम्ब की कच्ची कोंपलें 4-5 चबा लीजिये।
- बदन पर लाल चकत्ते पड़ गये हों तो कदम्ब की 5 कोंपले सुबह-शाम चबाएं।
- कदम्ब के फल आपके प्रजनन अंगों को मजबूत करते हैं।
- ख़ून में कोई कमी आ जाए तो कदम्ब के फल और पत्तों का 4 ग्राम चूर्ण लगातार एक महीना खा लीजिये।
- फोड़े- फुंसी और गले के दर्द में कदम्ब के फूल और पत्तों का काढा बनाकर पीजिये।
- महिलाओं को अपने वक्ष -स्थल पुष्ट रखने हैं तो कदम्ब के फूलों की चटनी बनाकर लेप कीजिए।
- दस्त हो रहे हों तो कदम्ब की छाल का काढा पी लीजिए या छाल का रस 2-2 चम्मच, लेकिन बच्चों को देते समय इस रस में जीरे का चूर्ण एक चुटकी और मिश्री भी मिला लीजिये।
- आँख में खुजली हो रही है या आँख आ गयी है तो इसकी छाल का रस लेप कर लीजिये।
- सांप के काटने पर इसके फल फूल पत्ते जो भी मिल जाएँ पहले तो पीस कर लेप कीजिए फिर काढा बनाकर पिलाइए।
- दिल की तकलीफों या नाडी डूबने की हालत में इसका रस 2 चम्मच पिला दीजिये।[4]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उपयोगी ढंग कदंब के (हिंदी) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 25 जुलाई, 2014।
- ↑ ये कदम्ब का पेड़ (हिंदी) चेतना के स्वर उजाले की ओर। अभिगमन तिथि: 25 जुलाई, 2014।
- ↑ कदम्ब के वृक्ष का औषधीय प्रयोग (हिंदी) Natural Care:आयुर्वेदिक उपचार। अभिगमन तिथि: 25 जुलाई, 2014।
- ↑ ये कृष्ण का कदम्ब (हिंदी) मेरा समस्त (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 25 जुलाई, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख