जोधइया बाई
जोधइया बाई (अंग्रेज़ी: Jodhaiya Bai) ऐसी भारतीय महिला हैं जो बैगा चित्रकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग 43 के किनारे बसा उमरिया जिले का छोटा-सा गांव लोढ़ा और वहां की बहुत साधारण-सी मजदूर जोधइया बाई, जिन्हें लोग 'जोधइया अम्मा' के नाम से भी जानते हैं, आज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पटल पर जानी जाती हैं। ऐसा इसलिए संभव हुआ, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बैगा चित्रकार के रूप में दुनिया में अपनी पहचान बना चुकीं जोधइया बाई को 'पद्म श्री', 2023 पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। एक मजदूर से चित्रकार और इस सम्मन तक पहुंचने का जोधइया बाई का मार्ग जितना संघर्ष से परिपूर्ण रहा, उतना ही रोचक भी रहा है। मैं नीर भरी दु:ख की बदरी
जीवन संघर्ष
"मैं नीर भरी दु:ख की बदरी" कविता को लिखा तो महादेवी वर्मा ने था लेकिन वह जोधइया बाई की जीवनगाथा बन गई। 35-36 साल की उम्र में जोधइया बाई ने अपने पति मैकू बैगा को खो दिया था। बीमारी से ग्रस्त मैकू बैगा की मौत किसी बड़ी बीमारी की वजह से हो गई थी। उस समय जोधइया बाई के दो मासूम बच्चे उनके साथ थे और तीसरी संतान गर्भ में थी। अपने दो बच्चों सुरेश बैगा और पिंजू बैगा के लालन-पालन के लिए मजदूरी करते हुए जोधइया बाई ने अपनी तीसरी संतान बेटी दुखिया बाई को जन्म दिया। बेटी के जन्म के साथ ही जोधइया बाई को कमजोरी ने घेर लिया। तीन बच्चों की जिम्मेदारी ने उन्हें अपने ही शरीर की कमजोरी के साथ लड़ने को विवश कर दिया, परिणामस्वरूप बेटी के जन्म के साथ ही वह एक बार फिर जीवन के रण में दु:खों से संघर्ष करने उतर पड़ीं।[1]
दु:ख ही जीवन की गाथा रही
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की 'सरोज स्मृति' में लिखी कविता "दु:ख ही जीवन की गाथा रही, क्या कहूं जो नहीं कही" जितनी सरोज के लिए लगती है उतना ही जाधइया बाई को भी खुद को जोड़ लेती है। पीठ पर मासूम बच्ची को बांधकर जोधइया बाई गाय, भैंस, बकरी चराने जाती थीं। जंगल से वापसी में लकडि़यां भी बीन लाती थीं, जिसका बोझ भी उनके अपने सिर पर होता था। गांव में लोगों के घरों को लीपना, आंगन और दीवारों को गेंरू से सजाना, खेत में मजदूरी करना यही उनके जीवन की भाग दौड़ थी।
गुरुजी ने बदला जीवन
संघर्ष से जूझ रही जोधइया बाई के जीवन में वर्ष 2008 में तब बदलाव शुरू हुआ, जब आशीष स्वामी ने लोढ़ा गांव में अपना स्टूडियो 'जनगण तस्वीरखाना' खोला। जनगण तस्वीरखाना का संचालन कर रहे निमिष स्वामी ने बताया कि उनके चाचा ने स्थानीय लोगों को अपने यहां काम पर रखा, जिसमें जोधइया बाई का बड़ा बेटा सुरेश बैगा भी शामिल था। एक दिन आंगन लीपने के लिए वह अपनी मां जाेधइया बाई को स्टूडियो ले गया। जोधइया बाई ने अपनी ही शैली में आंगन लीपा और उसे गेंरू और छूई माटी से सजा दिया। यह देखकर अशीष स्वामी जितना खुश हुए उतना ही जाेधइया बाई जैसी बुजुर्ग महिला से यह काम कराने पर नाराज भी हुए। इस दौरान सुरेश बैगा ने बताया कि उनकी मां अभी भी मजदूरी करती हैं। अशीष स्वामी ने उन्हें 'अम्मा' करके संबोिधित किया और कहा कि अब से अम्मा मजदूरी नहीं करेगीं बल्कि चित्र बनाएंगी।
जोधइया बाई ने बताया था कि जब आशीष स्वामी ने उन्हें चित्र बनाने का काम दिया तो वे घबरा गईं। उन्होंने पहले तो साफ मना कर दिया कि यह लिखने-पढ़ने का काम उनसे न हाे पाएगा। तब आशीष स्वामी ने उनसे दीवार पर चित्र बनवाएं। बाद में लकड़ी और सूखे कुम्हड़े, लौकी और तरोई पर चित्र बनवाए। जब उन्हें चित्र बनाने के लिए कागज दिया तो वे डर गईं कि कागज और रंग दोनों ही खराब हो जाएगा। लेकिन आशीष स्वामी ने उन्हें डाटकर चित्र बनाने के लिए कहा। जब गुरुजी की डांट पड़ने लगी तो सत्तर साल की आयु के करीब पहुंच चुकीं जाेधइया बाई किसी मासूम बच्चे की तरह अपने घर में छिप जाती थीं। आशीष स्वामी उनके घर जाते और उन्हें जबरन अपने स्टूडियो लाते।[1]
नारी शक्ति सम्मान
जब जोधइया बाई को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द से 'नारी शक्ति सम्मान' मिला था, तब भी स्वर्गीय आशीष स्वामी की तस्वीर के सामने बैठकर जोधइया बाई काफी देर तक रोती रहीं और पद्म श्री, 2023 की घोषणा होने के बाद भी उनका यही हाल हुआ। उन्होंने कहा कि गुरुजी ने एक साधारण मजदूर को कहां पहुंचा दिया। उन्होंने कहा कि जिस तरह से उनके गुरुजी ने स्टूडियों के कलाकारों को संबल प्रदान किया, उसी तरह अब उनके भतीजे भी काम कर रहे हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 जोधइया बाई ने पति की मौत के बाद मजदूरी करके बच्चों को पाला और फिर बन गई अंतर्राष्ट्रीय बैगा चित्रकार (हिंदी) naidunia.com। अभिगमन तिथि: 15 जुलाई, 2023।
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