नारी शक्ति पुरस्कार
नारी शक्ति पुरस्कार (अंग्रेज़ी: Women Power Award) भारत सरकार द्वारा महिलाओं को सम्मान के रूप में दिया जाता है। ये पुरस्कार उन महिलाओं को दिया जाता है, जिन्होंने उम्मीद से बढ़कर कार्य किया हो अथवा बंधे-बंधाये ढर्रे को चुनौती दी हो और महिला सशक्तिकरण में अविस्मरणीय योगदान किया हो।[1]
इतिहास
प्राचीन काल से ही भारतीय इतिहास में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। हमें पता है कि वैदिक या उपनिषद् युग में मैत्रेयी, गार्गी और अन्य महिलाओं ने ब्रह्म के ऊपर विचार करने की योग्यता के आधार पर ऋषियों का स्थान प्राप्त किया था। हजारों ब्राह्मणों की उपस्थिति में विदुषी गार्गी ने ब्रह्म के ऊपर शास्त्रार्थ करने की चुनौती याज्ञवल्क्य को दी थी। स्वतंत्रता पूर्व समय में महिलाओं ने शिक्षा और सामाजिक उन्नति के उद्देश्य के लिए नेतृत्व किया था। वर्ष 1950 में भारत दुनिया के ऐसे कुछ देशों में गिना जाता था जिन्होंने अपने नागरिकों को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्रदान किया था। महिलाओं ने युवा भारत के विकास का मार्ग प्रशस्त किया। और, आज हम देख रहे हैं कि महिलाएं सरकार, व्यापार, खेल, सशस्त्र बलों और यहाँ तक कि वास्तविक रॉकेट विज्ञान में भी अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। महिलाओं ने समस्त मानक तोड़ दिये हैं और प्रतिदिन नए-नए मानक स्थापित कर रही हैं।[1]
गठन
नारी शक्ति पुरस्कार 1999 में गठित किया गया था ताकि उन महिलाओं का सम्मान किया जा सके जिन्होंने उम्मीदों से बढ़कर काम किया, और महिला सशक्तिकरण में अविस्मरणीय योगदान किया हो। भारत सरकार ये पुरस्कार उन व्यक्तियों और संस्थानों को प्रदान करती है जिन्होंने महिलाओं के लिए अभूतपूर्व सेवा की हो। महिला विकास और उन्नयन के क्षेत्र में शानदार योगदान करने के लिए यह पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। 2016 में नारी शक्ति पुरस्कार विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओं और संस्थानों को दिया जा रहा है। जिसके मद्देनजर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने उन उम्मीदवारों का चयन किया है जो सामाजिक उद्यमिता, कला, बागवानी, योग, पर्यावरण संरक्षण, पत्रकारिता, नृत्य, सामाजिक कार्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभाई है। महिलाओं ने इन सभी क्षेत्रों में राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है तथा पूरी दुनिया के सामने यह साबित कर दिया है कि सफलता के लिए लैंगिक सीमा का कोई अस्तित्व नहीं होता। समस्त पुरस्कृत लोग सामाजिक उद्यमिता निर्माण, जैविक खपत को प्रोत्साहन देने और सतत पर्यावरण के निर्माण जैसे नए और उभरते हुए क्षेत्रों में योगदान कर रहे हैं। यह देखना बहुत उत्साहवर्धक है कि इन सभी क्षेत्रों में महिलाएं नेतृत्व कर रही हैं, जिससे भावी विकास कि रूपरेखा तय होगी।
भारतीय महिलाओं का स्वरूप
इन पुरस्कार विजेताओं ने अंतरिक्ष अनुसंधान, रेलवे, मोटरसाइक्लिंग और पवर्तारोहण जैसे क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराकर महिलाओं से जुड़ी रूढ़ीवादी सोच को चुनौती दी है। इन्होंने न केवल चुनौती दी है बल्कि उन क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्ति की है जहाँ इतिहास में कभी महिलाओं की भागीदारी नहीं देखी गई। इसरो के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों, पहली डीजल ट्रेन चालक सुश्री मुमताज काजी, मोटरसाइक्लिस्ट सुश्री पल्लवी फौजदार और पर्वतारोही सुश्री सुनीता चोकेन ऐसे युवा भारतीयों के लिये एक उदाहरण हैं जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। ये विजेता बदलते वैश्विक भारत की एक अलग तस्वीर पेश करते हैं। सुश्री टीयाशा अद्या और सुश्री बानो हरालु ने मत्स्य विडाल के शिकार पर रोक लगाने के लिए संघर्ष किया। सुश्री वी.नानाम्ल ने योग की शिक्षा देने के लिए बेहतरीन योगदान दिया। आज उनके विद्यार्थी देशभर में योग की शिक्षा देने के कार्य में जुटे हुए हैं।[1]
सरकार द्वारा प्रोत्साहन
सरकार ने उन महिलाओं और संस्थानों को सम्मानित किया है जो कमजोर और पीड़ित महिलाओं के लिए कार्य कर रहे है और जिन्हें हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा देश के सुदूरवर्ती इलाकों में लिंग अनुपात में सुधार के लिए महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता के प्रति प्रोत्साहित करने, महिला किसानों के लिए विकास कार्य करने तथा वास्तविक विकास के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। छांव फाउण्डेशन और शिक्षित रोजगार केन्द्र प्रबंधक समिति, साधना महिला संघ जैसे संस्थानों तथा डॉ. कल्पना शंकर ने अपनी संस्था ‘हैंड इन हैंड’ के जरिये समाज में महिलाओं की उन्नति के लिए जमीनी स्तर पर कार्य किया है। इन पुरस्कार विजेताओं ने यह साबित किया है कि नये विचार अक्सर स्थितिजन्य बाधाओं को पार कर सकते हैं। वित्तीय अवसरों की कमी का सामना कर रही महिलाओं ने धन जुटाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग किया है। प्राकृतिक आपदाओं के बाद उन्हें स्थानीय लोगों के पुनर्वास के लिए अनूठे तरीके मिल गये हैं। आर्थिक अवसरों की कमी के साथ महिलाओं ने डिजिटल अर्थव्यवस्था में प्रवेश किया है। पुरस्कार विजेताओं में से एक ‘शरन’ की स्थापक डॉ. नन्दिता शाह का उद्देश्य मधुमेह मुक्त भारत बनाना है। एक टैक्सटाइल डिजाइनर सुश्री कल्याणी प्रमोद बालाकृष्णन ने पारंपरिक शिल्प को बढ़ावा देकर ग़रीब बुनकरों की मदद की है।[1]
सरकारी व गैर सरकारी संगठनों द्वारा सुधार
सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों ने अपने-अपने क्षेत्रों में जीवन में सुधार लाने के लिए दशकों तक काम किया है। लोगों ने अपने घरों के आराम को छोड़कर लोगों के कल्याण के लिए संघर्ष किया है और उनका साथ दिया है। परिवर्तन धीरे-धीरे आता है लेकिन इन महिलाओं और संस्थानों ने यह साबित कर दिया है कि संगठित प्रयत्नों से सकारात्मक बदलाव आता है। इन लाभार्थियों ने यह साबित किया है कि कोई भी व्यक्ति अगर ठान ले तो कुछ भी संभव है। 2016 के नारी शक्ति पुरस्कार ने हमारे देश के एक अलग स्तर को प्रमाणित किया है ये पुरस्कार पाने वाली जीवट महिलाएं अपने समर्पण, विश्वास और प्रेरणा के लिए मिशाल हैं। इन महिलाओं ने यह साबित किया है कि यदि कोई व्यक्ति सही दिशा में कार्य करे तो लाखों लोगों के जीवन में सुधार लाया जा सकता है। आइए हम लोगों को प्रेरित करें कि वे श्रेष्ठ भारत के लिए जनकल्याण के कार्य जारी रखें।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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