User:DrMKVaish
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'बरमूडा त्रिकोण' में तो नहीं फंसा ए-330?
पेरिस। बत्तीस देशों के 228 लोगों को लेकर ब्राजील के रियो डी जेनेरियो से पेरिस के लिए उड़ा एयर फ्रांस का विमान ए-330 का कुछ पता नहीं है। एयर फ्रांस ने विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने की घोषणा कर दी है। साथ ही विमान की खोज में एयर फ्रांस के कई जेट विमान और समुद्री पोत मंगलवार को दिन भर अटलांटिक में सर्च ऑपरेशन चलाते रहे, लेकिन विमान नहीं मिला। कहीं यह विमान 'बरमूड त्रिकोण' का शिकार तो नहीं हो गया। क्या यहीं पर गिरा एयर फ्रांस का विमान ? स्ट्रेट्स ऑफ फ्लॉरिडा, बाहामास और करेबियन द्वीप की सीमाओं से लगे अस बरमूडा त्रिकोण के बारे में किताबों में आसानी से मिल सकता है। इसके तीन शीर्ष हैं पहला फ्लॉरिडा का अटलांटिक कोस्ट, दूसरा सान जुआन और तीसरा अटलांटिक महासागर के बीच स्थित बरमूडा द्वीप। ज्यादातर दुर्घटनाएं त्रिकोण की दक्षिणी सीमा के पास होती है, जो बहामास और फ्लॉरिडा के पास स्थित है। सोमवार को ब्राजील से पैरिस के लिए उड़ा विमान उड़ान भरने के चार घंटे तक एयर कंट्रोल रूम के संपर्क में रहा। यदि समय का आंकलन किया जाए तो चार घंटे बाद यह विमान के बरमूडा त्रिकोण की सीमा में प्रवेश करने की आशंका प्रबल हो गई है। विमान का मलबा मिला! मंगलवार को दिन भर अटलांटिक महासागर में चले सर्च ऑपरेशन में एक दुर्घटनाग्रस्त विमान का मलबा पाया गया है। आशंका जताई जा रही है कि यह एयर फ्रांस के विमान ए-330 का ही मलबा है। हालांकि इस बात की अभी अधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है। विमान के मलबे को पहली बार एक मालवाहक जहाज के क्रू ने देखा। अगर जांच दल अगर विमान के ब्लैक बॉक्स को खोजने में कामयाब होता है, तो दुर्घटना के कारणों का ठीक-ठीक पता चल जाएगा, पर आशंका है कि यह सागर की तलहटी में चला गया होगा। बरमूदा त्रिभुज की इस उलझी हुई गुत्थी को आज तक कोई भी व्यक्ति ठीक से नहीं सुलझा पाया। इस रहस्मयी क्षेत्र के विषय में सिद्धान्त तो कई प्रस्तुत किए गए, लेकिन उनमें से कोई भी पूर्णत सन्तुष्ट नहीं करता। इस संदर्भ में अटकलें और अनुमान ही ज्यादा लगाए गए हैं। कुछ लोग इन घटनाओं को संयोग मानते हैं, परन्तु इतने सारे जहाजों और वायुयानों का केवल इस विशेष त्रिभुजाकार क्षेत्र में ही गायब होना मात्र संयोग नहीं हो सकता। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि यहां वायु की अति विशाल तूफानी धाराएं ऊपर से नीचे की ओर बहती हैं तथा जहाज व वायुयान इन्हीं तीव्र वायु धाराओं की चपेट में आकर सागर में डूब जाते हैं, जिन्हें बाद में समुद्र की शक्तिशाली लहरें कहीं और बहा कर ले जाती हैं। लेकिन अगर इस तर्क को सही माने, तो प्रश्न उठता है कि फिर रेडियों, वायरलेस, राडार और कम्पास जैसे उपकरणों में खराबी क्यों पैदा होती है ? बहुत से विद्वानों का मत है कि सागर के इस भाग में एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र बन जाता है जो रेडियो तरंगों के संकेतों को काट कर इन यन्त्रों को खराब कर देता है जिससे दुर्घटना हो जाती है, जबकि कुछ वैज्ञानिक इन दुघर्टनाओं का कारण गुरूत्वाकर्षण की शक्ति बताते हैं। कुछ लोग इन घटनाओं को प्राकृति बताते हुए समुद्र के इस भाग के नीचे स्थित स्फटिक पदार्थों, जलचक्रों (भंवरों), समुद्री तल से उत्पन्न मिथेन गैसों तथा समुद्री भूचालों को इनका दोषी मानते हैं तथा बहुत से ऐसे व्यक्ति हैं जिनका मानना है कि ये दुर्घटनाएं मानवीय भूल या मशीनी खराबी मात्र ही हैं। परन्तु इसका रहस्य तब और भी अधिक गहरा हो जाता है जब कुछ लोग इन दुर्घटनाओं को उन `उड़नतश्तरियों´ से जोड़ कर देखते हैं जो इस क्षेत्र में कई बार उड़ते हुए `देखी´ गईं हैं। इन लोगों का कहना है कि इन उड़नतश्तरियों में सवार दूसरे ग्रह के प्राणी ही इन दुर्घटनाओं के जिम्मेदार हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि उनके इस क्षेत्र में कोई पृथ्वीवासी आवागमन करके उनके रहस्य को जान जाए या उनके कार्य में बाधा ड़ाले। बरमूदा त्रिभुज पर डॉक्युमेंट्री फिल्म बनाने वाले रिचर्ड विनर का कहना है कि इस क्षेत्र के एक विशेषज्ञ ने तो अपने साक्षात्कार में यहां तक कहा था कि वहां गायब होने वाले जहाज और वायुयान एक भिन्न आयाम या दृश्यता में अभी भी वहीं हैं और इस भिन्न आयाम का कारण संभवत; `यूएफओ´ अर्थात् उड़नतश्तरी द्वारा स्थापित किया गया चुम्बकीय वातावरण ही है। इन रहस्यमयी घटनाओं के पीछे क्या कारण है ? यह जानने के लिए कई दशकों से वैज्ञानिक, अनुसंधानकर्ता, खोजकर्ता एवं शोधकर्ता लगे हुए हैं और वे लोग दावा भी करते हैं कि उन्होंने इन घटनाओं का हल ढूंढ निकाला है, किन्तु अभी भी बहुत से प्रश्न ऐसे हैं जिनका कोई सही व सटीक उत्तर नहीं मिल सका है। इसीलिए आज तक बरमूदा का यह रहस्यमयी त्रिभुजाकार क्षेत्र अपने आप में एक अनसुलझा रहस्य ही बना हुआ है।
इस तरह की तमाम घटनाऍं उस क्षेत्र में होने का दावा समय समय पर किया जाता रहा है। लेकिन यह सब किन कारणों से हो रहा है, यह कोई भी बताने में अस्मर्थ रहा है। इस सम्बंध में चार्ल्स बर्लिट्ज ने 1974 में अपनी एक पुस्तक के द्वारा इस रहस्य की पर्तों को खोजने का दावा किया था। उसने अपनी पुस्तक 'दा बरमूडा ट्राइएंगिल मिस्ट्री साल्व्ड' में लिखा था कि यह घटना जैसी बताई जाती है, वैसी है नही। बॉबरों के पायलट अनुभवी नहीं थे। चार्ल्स के अनुसार वे सभी चालक उस क्षेत्र से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे। और सम्भवत: उनके दिशा सूचक यंत्र में खराबी होने के कारण खराब मौसम में एक दूसरे से टकरा कर नष्ट हो गये। बहरहाल समय-समय पर इस तरह के ताम दावे इस त्रिकोण के रहस्य को सुलझाने के किए जाते रहे हैं। कुछ रसायन शास्त्रियों क मत है कि उस क्षेत्र में 'मीथेन हाइड्रेट' नामक रसायन इन दुर्घटनाओं का कारण है। समुद्र में बनने वाला यह हाइड्राइट जब अचानक ही फटता है, तो अपने आसपास के सभी जहाजों को चपेट में ले सकता है। यदि इसका क्षेत्रफल काफी बड़ा हो, तो यह बड़े से बडे जहाज को डुबो भी सकता है। वैज्ञानिकों का मत है कि हाइड्राइट के विस्फोट के कारण डूबा हुआ जहाज जब समुद्र की अतल गहराई में समा जाता है, तो वहॉं पर बनने वाले हाइड्राइट की तलछट के नीचे दबकर गायब हो जाता है। यही कारण है कि इस तरह से गायब हुए जहाजों का बाद में कोई पता-निशां नहीं मिलता। इस क्षेत्र में होने वाले वायुयानों की दुर्घटना के सम्बंध में वैज्ञानिकों का मत है कि इसी प्रकार जब मीथेन बड़ी मात्रा में वायुमण्डल में फैलती है, तो उसके क्षेत्र में आने वाले यान का मीथेन की सांद्रता के कारण इंजन में ऑक्सीजन का अभाव हो जाने सेवह बंद हो जाता है। ऐसी दशा में विमान पर चालक का नियंत्रण समाप्त हो जाता है और वह समुद्र के पेट में समा जाता है। अमेरिकी भौगोलिक सवेक्षण के अनुसार बरमूडा की समुद्र तलहटी में मीथेन का अकूत भण्डार भरा हुआ है। यही वजह हैकि वहॉं पर जब-तब इस तरह की दुर्घटनाऍं होतीरहती हैं। बहरहाल इस तर्क से भी सभी वैज्ञानिक सहमत नहीं है। यही कारण है कि बरमूडा त्रिकोण अभी भी एक अनसुलझा रहस्य ही बना हुआ है। इस रहस्य से कभी पूरी तरह से पर्दा हटेगा, यह कहना मुश्किल है।
16 सितंबर 1950 को पहली बार इस बारे में अखबार में लेख भी छपा था। दो साल बाद फैट पत्रिका ने ‘सी मिस्ट्री एट अवर बैक डोर’ शीर्षक से जार्ज एक्स. सेंड का एक संक्षिप्त लेख भी प्रकाशित किया था। इस लेख में कई हवाई तथा समुद्री जहाजों समेत अमेरिकी जलसेना के पाँच टीबीएम बमवर्षक विमानों ‘फ्लाइट 19’ के लापता होने का जिक्र किया गया था। फ्लाइट 19 के गायब होने का घटनाक्रम में एरिजोना स्टेट विश्वविद्यालय के शोध लाइब्रेरियन और ‘द बरमूडा ट्रायंगल मिस्ट्रीः साल्व्ड’ के लेखक लारेंस डेविड कुशे ने काफी शोध किया तथा उनका नतीजा बाकी लेखकों के अलग था। उन्होंने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से विमानों के गायब होने की बात को गलत करार दिया। कुशे ने लिखा कि विमान प्राकृतिक आपदाओं के चलते दुर्घटनाग्रस्त हुए। इस बात को बाकी लेखकों ने नजरअंदाज कर दिया था। ऑस्ट्रेलिया में किए गए शोध से पता चला है कि इस समुद्री क्षेत्र के बड़े हिस्से में मिथेन हाईड्राइड की बहुलता है। इससे उठने वाले बुलबुले भी किसी जहाज के अचानक डूबने का कारण बन सकते हैं। इस सिलसिले में अमेरिकी भौगोलिक सर्वेक्षण विभाग (यूएसजीएस) ने एक श्वेतपत्र भी जारी किया था। यह बात और है कि यूएसजीएस की वेबसाइट पर यह रहस्योद्घाटन किया गया है कि बीते 15000 सालों में समुद्री जल में से गैस के बुलबुले निकलने के प्रमाण नहीं मिले हैं। इसके अलावा अत्यधिक चुंबकीय क्षेत्र होने के कारण जहाजों में लगे उपकरण यहाँ काम करना बंद कर देते हैं। इससे जहाज रास्ता भटक जाते हैं और दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। बहरहाल, तमाम शोध और जाँच-पड़ताल के बाद भी इस नतीजे पर नहीं पहुँचा जा सका है कि आखिर गायब हुए जहाजों का पता क्यों नहीं लग पाया...उन्हें आसमान निगल गया या समुद्र लील गया...दुर्घटना की स्थिति में भी मलबा तो मिलता...ये प्रश्न अनुत्तरित हैं।
बरमूडा त्रिकोण और परग्रही अटलांटिक महासागर के बरमूडा त्रिकोण को डेविल्स ट्रायएंगल यानी शैतान त्रिकोण के नाम भी जाना जाता है ... इस काल त्रिकोण से अब तक कई जहाज और विमान गायब हुए है लेकिन किसी का भी कुछ पता नहीं चल पाया ... यहां इलेक्ट्रानिक फॉग होने की बात भी सामने आई ... जिसमें फंस कर जहाज और विमान लापता हो जाते हैं.. लेकिन बरमूडा में इलेक्ट्रानिक फॉग किस तरह बनता है.. इसके बारे में जानकारी नहीं हैं .. इसलिए इस रहस्मयी त्रिकोण को परग्रही शक्तितियों से भी जोड़ कर देखा जाता है .. इस त्रिकोण के पास सबसे ज्यादा यूएफओ दिखने की बात सामने आई है.. इस लिए हो सकता है कि बरमूडा त्रिकोण दूसरे ग्रह के प्राणियों का रिसर्च स्टेशन हो ... इसलिए परग्रही शक्तियां जहाजों और विमानों को गायब करते हों .. और फिर उस पर रिसर्च करते हों .. दुनिया भर में यूएफओ देखने की बात सामने आती ही रहती है ..ऐसे में बरमूडा त्रिकोण से गायब होने वाले विमान और जहाज में परग्रही शक्तियों का हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता है .. लेकिन बरमूडा त्रिकोण के रहस्य में परग्रही शक्तियों का ही हाथ है.. इस पर बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है .. क्योंकि इसका ठोस कोई प्रमाण नहीं है .. इस लिए बरमूडा त्रिकोण आज भी है रहस्यमयी... हक़ीक़त पर रिसर्च बारमूडा ट्राएंगल के रहस्य से परदा हटाने के लिए कई शोध हुए ... इस मामले में एरिजोना स्टेट विश्वविद्यालय का रिसर्च .. द बरमूडा ट्रायंगल मिस्ट्री- साल्व्ड.. के लेखक लारेंस डेविड कुशे ने काफी शोध किया जिसमें उनका नतीजा बाकी शोध से अलग था.. उन्होंने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से विमानों के गायब होने की बात को गलत करार दिया... कुशे ने लिखा कि विमान प्राकृतिक आपदाओं के चलते दुर्घटनाग्रस्त हुए.. लेकिन इस बात को सभी शोधकर्ताओं ने नजरअंदाज कर दिया.. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में किए गए एक शोध से पता चला है कि इस समुद्री क्षेत्र के बड़े हिस्से में मिथेन हाईड्राइड की बहुलता है.. इससे उठने वाले बुलबुले भी किसी जहाज के अचानक डूबने का कारण बन सकते हैं.. इस सिलसिले में अमेरिकी भौगोलिक सर्वेक्षण विभाग यानी यूएसजीएस ने एक श्वेतपत्र भी जारी किया था.. यह बात और है कि यूएसजीएस के रहस्योद्घाभटन के कुछ दिनों बाद समुद्री जल में से गैस के बुलबुले निकलने के प्रमाण नहीं मिले.. वहीं कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने बरमूडा टायएंगल के आसमान में बादलों के बीच तेज आवाज के बीच बिजलियां कड़कड़ते हुए के हुए देखने बात कही.. जिससे वहां इलेक्ट्रोमेगनेटिक फिल्ड बनता है... और फिर बादल और समंदर के बीच बबंडर उठता है.... जिसे इलेक्ट्रोनिक फॉग कहा गया .. लेकिन ये कैसे होता है इससे सभी अनजान हैं ... इसके अलावा बरमूडा ट्रायएंगल में अत्यधिक चुंबकीय क्षेत्र होने की बात कही गई .. जिसकी वजह से जहाजों में लगे उपकरण यहां काम करना बंद कर देते हैं.. और जहाज रास्ता भटक कर दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं.. यानी यहां भौतिक के कुछ नियम बदल जाते है ... लेकिन तमाम रिसर्च के बाद बरमूडा त्रिकोण के रहस्य के बारे में कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया.. और ये दानवी त्रिकोण आज भी अनसुलझी पहेली है .. बरमूड त्रिकोण व्यस्त समुद्री मार्ग रहस्यमयी बरमूडा ट्राएंगल के एरिया को लेकर रिसर्च किया गया .. बारमूडा पर पर रिसर्च कर चुके कुछ वैज्ञानिको ने इसका एरिया .. फ्लोरिडा.. बहमास और पूरा केरेबियन द्वीप के साथ महासागर के उत्तरी हिस्से के रूप में बताया .. तो कुछ ने इसे मैक्सिको की खाड़ी तक बढ़ाया है.. यानी रिसर्च के बाद बारमूडा के एरिया को लेकर अलग अलग राय दिए गए ..समंदर में ये त्रिकोण भले ही खतरनाक रहे है .. लेकिन ऐसा नहीं है कि बारमूडा त्रिकोण से होकर कोई जहाज नहीं गुजरता है .. इस क्षेत्र में हवाई और समुद्री यातायात भी बहुतायत में रहता है.. ये समुद्री इलाका दुनिया की व्यस्तम समुद्री यातायात वाले जलमार्ग के रूप में की जाती है.. यहां से अमेरिका.. यूरोप और केरेबियन द्वीपों के लिए रोजाना कई जहाज निकलते हैं.. यही नहीं.. फ्लोरिडा.. केरेबियन द्वीपों और दक्षिण अमेरिका की तरफ जाने वाले हवाई जहाज भी यहीं से गुजरते हैं.. यही वजह है कि कुछ लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि इतने यातायात के बावजूद कोई जहाज अचानक से गायब हो जाए.. या फिर ऐसे में कोई दुर्घटना जाए .. तो किसी को कैसे पता नहीं चल पाएगा .. लेकिन हकीकत तो यही है कि इस क्षेत्र से गायब हुए जहाज और विमान का अब कुछ पता नहीं चल पाया है
ये है मौत का ट्राएंगल, जो गया वापस नहीं आया हादसों के लिए कौन है जिम्मेदार बरमूडा ट्राएंगल है, मौत का ट्राएंगल, 125 हवाई जहाजों और 50 जहाजों को लील चुका है। विज्ञान की इतनी प्रगति के बाद भी कोई इसका रहस्य खोल नहीं पाया। बरमूडा त्रिकोण में होने वाले हादसों के कारणों को अभी तक पक्के तौर पर नहीं जाना जा सका है। वैज्ञानिकों ने इसके पीछे ऐसे कारण बताए हैं जो इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। ये कारण इस प्रकार हैं ----- मौत के लिए जिम्मेदार मीथेन गैस के बुलबुले विमानों के गायब होने की घटनाओं के लिए मीथेन हाइड्रेट को जिम्मेदार बताया गया है। इस इलाके में समुद्र तल पर मीथेन हाइड्रेट्स के विशाल भंडार हैं। इस भंडार से मीथेन गैस के बड़े- बड़े बुलबुले ऊपर की ओर उठते रहते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार ये बुलबुले पानी के घनत्व में कमी लाकर जहाज को डुबो देने की क्षमता रखते हैं। भौगोलिक स्थिति बरमूडा ट्राएंगल में विमानों व जहाजों के गायब होने के पीछे सबसे प्रमुख कारण इसकी भौगोलिक स्थिति को माना जाता है। उत्तर पश्चिम अटलांटिक महासागर में स्थित इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां दाखिल होते ही विमानों के कंपास सही दिशा दिखाना बंद कर देते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस क्षेत्र में भौतिकी के नियम लागू नहीं होते जिसके कारण हादसे होते हैं। इसके साथ ही इस क्षेत्र के चुंबकीय प्रभाव व चांद की स्थिति को भी इसके लिए जिम्मेदार माना जाता है। शक्तिशाली समुद्री तूफान अटलांटिक महासागर के इस क्षेत्र में शक्तिशाली तूफान आते रहते हैं। इन तूफानों में फंसकर वायुयान व समुद्री जहाज डूब जाते हैं। गल्फ स्ट्रीम इस क्षेत्र में शक्तिशाली गल्फ स्ट्रीम चलती हैं। ये गल्फ स्ट्रीम मैक्सिको की खाड़ी से निकलकर फ्लोरिडा के जलडमरू से उत्तरी अटलांटिक तक जाती हैं। यह गल्फ स्ट्रीम असल में समुद्र के अंदर नदी की तरह होती हैं। इसके तेज बहाव में जहाजों के डूबने की संभावना रहती है। मानवीय त्रुटि इस क्षेत्र में वायुयानों और जहाजों के खो जाने की घटनाओं के पीछे मानवीय गलतियों को भी जिम्मेदार माना जाता है। जैसे इस इलाके में गायब हुए टैंकर वी. ए. के बारे में कहा जाता है कि इसके कर्मचारियों के प्रशिक्षण में कमी थी, जिसके कारण बेंजीन अवशिष्ट की सफाई में गलती हुई और जहाज डूब गया। कितने विमान और जहाज हुए हैं लापता इस दानवी त्रिभुज के बारे में कहा जाता है कि जो यहां गया वापस न आ सका। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यहां गायब होने वाले जहाजों को ढूंढ़ पाना भी आसान नहीं होता। इस इलाके में गायब होने वाले जहाजों का कोई अता-पता नहीं चलता। यही कारण है कि बहुत से जहाजों व विमानों के गायब होने का कोई लिखित ब्यौरा भी नहीं है। दर्ज किए गए ब्यौरे के अनुसार इस इलाके में 125 वायुयान और करीब 50 जहाज डूब चुके हैं। आखिर कहां पर है बारमूडा बरमूडा उत्तर अटलांटिक महासागर में स्थित ब्रिटेन का प्रवासी क्षेत्र है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट पर मियामी (फ्लोरिडा) से सिर्फ 1770 किलोमीटर और हैलिफैक्स, नोवा स्कोटिया (कनाडा) के दक्षिण में 1350 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह सबसे पुराना और सबसे अधिक जनसंख्या वाला ब्रिटेन का प्रवासी क्षेत्र है।
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मुझे हिन्दुस्तानी, हिन्दू और हिंदी भाषी होने का गर्व है |
— डा॰ मनीष कुमार वैश्य |