श्रीपंचमी
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
(1) मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पंचमी पर लक्ष्मी की स्वर्णिम, रजत, ताम्र, काष्ठ या मिट्टी की प्रतिमा का निर्माण या किसी वस्त्र खण्ड पर उसका चित्र खींचकर पुष्पों से पूजा तथा आपादमस्तक पूजा की जाती है।
- पतिव्रता नारियों का कुंकुम, पुष्पों, भोजन एवं प्रणाम आदि से सम्मान किया जाता है।
- एक घृतपूर्ण पात्र के साथ एक प्रस्थ चावल का दान तथा 'लक्ष्मी मुझसे प्रसन्न हों' ऐसा कहना चाहिए।
- प्रत्येक मास में लक्ष्मी के विभिन्न नामों से ऐसा ही एक वर्ष तक करना चाहिए।
- अन्त में एक मण्डप में लक्ष्मी प्रतिमा पूजन करना चाहिए।
- प्रतिमा का एक गाय के साथ में दान तथा साफल्य के लिए श्री से प्रार्थना करनी चाहिए।
- 21 पीढ़ियों तक समृद्धि प्राप्त होती है।[1]
(2) सफलता के लिए अन्य व्रत हैं, श्रवण नक्षत्र या उत्तराफाल्गुनी एवं सोमवार के साथ पंचमी पर होता है।
- चौथ पर एकभक्त; दूसरे दिन बिल्व वृक्ष की पूजा, जिसके नीचे आठ दिशाओं में आठ कलश रखे जाते हैं।
- इन कलशों में पवित्र जल, रत्न, दूर्वा, श्वेत कमल आदि छोड़े जाते हैं।
- लक्ष्मी देवी से प्रार्थना एवं पूजा की जाती है।
- कलश के मध्य में नारायण का आवाहन एवं नारायण प्रतिमा का पूजन किया जाता है।
- एक वर्ष तक या जब तक सफलता न प्राप्त हो जाए।[2]
(3) माघ शुक्ल की पंचमी पर जलपूर्ण पात्र में या शालग्राम प्रस्तर पर लक्ष्मी पूजा, क्योंकि उस दिन वे विष्णु के आदे पर इस विश्व में आयीं थी।
- भुजबलनिबन्ध[3] के मत से पूजा कुन्द पुष्पों से होती है।[4]
- पुरुषार्थचिन्तामणि[5] के मत से पूजा माघ शुक्ल पंचमी को किन्तु स्मृतिकौस्तुभ[6] के मत से उस दिन काम एवं रति की पूजा होती है और बसन्तोत्सव किया जाता है।
(4) चैत्र शुक्ल पंचमी पर लक्ष्मी पूजा की जाती है।
- जीवन भर समृद्धि की प्राप्ति होती है।[7]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 537-543, भविष्योत्तरपुराण, अध्याय 37|1-58 से कुछ विभिन्नता के साथ उद्धरण);
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 546-552, गरुड़ पुराण से उद्धरण);
- ↑ भुजबलनिबन्ध (पृष्ठ 363, पाण्डुलिपि)
- ↑ कृत्यतत्त्व (457-458);
- ↑ पुरुषार्थचिन्तामणि (98)
- ↑ स्मृतिकौस्तुभ (479)
- ↑ नीलमतपुराण (पृ0 62, श्लोक 766-768); स्मृतिकौस्तुभ (92)।
अन्य संबंधित लिंक
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