वैदेही
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जनक के पूर्वज निमि कहे जाते हैं। निमि ने एक बृहत यज्ञ का आयोजन करके वसिष्ठ को पौरोहित्य के हेतु आमन्त्रित किया, किन्तु वसिष्ठ उस समय इन्द्र के यज्ञ में संलग्न थे। अत: वे असमर्थ रहे। निमि ने गौतम आदि ऋषियों की सहायता से यज्ञ आरम्भ करा दिया। वसिष्ठ ने उन्हें शाप दे दिया। किन्तु प्रत्युत्तर में निमि ने भी शाप दिया। परिणामत: दोनों ही भस्म हो गये। ऋषियों ने एक विशेष उपचार से यज्ञसमाप्ति तक निमि का शरीर सुरक्षित रखा। निमि के कोई सन्तान नहीं थी। अतएव ऋषियों ने अरणि से उनका शरीर मन्थन किया, जिससे इनके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। शरीर मन्थन से उत्पन्न होने के कारण जनक को मिथि भी कहा जाता है। मृतदेह से उत्पन्न होने के कारण यही पुत्र जनक, विदेह होने के कारण ‘वैदेह’ और मन्थन से उत्पन्न होने के कारण उसी बालक का नाम ‘मिथिल’ हुआ।
- विदेह की पुत्री होने के कारण सीता को वैदेही भी कहा जाता है।
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