प्रिय यामिनी जागी। अलस पंकज-दृग अरुण-मुख तरुण-अनुरागी। खुले केश अशेष शोभा भर रहे, पृष्ठ-ग्रीवा-बाहु-उर पर तर रहे, बादलों में घिर अपर दिनकर रहे, ज्योति की तन्वी, तड़ित- द्युति ने क्षमा माँगी। हेर उर-पट फेर मुख के बाल, लख चतुर्दिक चली मन्द मराल, गेह में प्रिय-नेह की जय-माल, वासना की मुक्ति मुक्ता त्याग में तागी।