मरा हूँ हजार मरण पाई तब चरण-शरण । फैला जो तिमिर जाल कट-कटकर रहा काल, आँसुओं के अंशुमाल, पड़े अमित सिताभरण । जल-कलकल-नाद बढ़ा अन्तर्हित हर्ष कढ़ा, विश्व उसी को उमड़ा, हुए चारु-करण सरण ।