केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात की गात सँवारी। राग-पराग-कपोल किए हैं, लाल-गुलाल अमोल लिए हैं, तरू-तरू के तन खोल दिए हैं, आरती जोत-उदोत उतारी- गन्ध-पवन की धूप धवारी। गाए खग-कुल-कण्ठ गीत शत, संग मृदंग तरंग-तीर-हत, भजन-मनोरंजन-रत अविरत, राग-राग को फलित किया री- विकल-अंग कल गगन विहारी ।