अपरांत

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अपरांत महाराष्ट्र के अंतर्गत उत्तर-कोंकण[1] में स्थित है। अपरांत का प्राचीन साहित्य में अनेक स्थानों पर उल्लेख है-

'तत: शूर्पारकं देशं सागरस्तस्य निर्ममे,
सहसा जामदग्न्यस्य सोऽपरान्तमहीतलम्'।[2]
'तथापरान्ता: सौराष्ट्रा: शूराभीरास्तथार्बुदा:'।[3]
'तस्यानीकैर्विसर्पदिभरपरान्तजयोद्यतै:'।[4]

कालिदास ने रघु की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में पश्चिमी देशों के निवासियों को अपरांत नाम से अभिहित किया है और इसी प्रकार कोशकार यादव ने भी 'अपरान्तास्तु पाश्चात्यास्ते' कहा है। रघुवंश[5] में भी अपरांत के राजाओं का उल्लेख है। इस प्रकार अपरांत नाम सामान्य रूप से पश्चिमी देशों का व्यंजक था किंतु विशेषरूप से[6] इस नाम से उत्तर कोंकण का बोध होता था। महावंश[7] के उल्लेख के अनुसार अशोक के शासनकाल में यवन धर्मरक्षित को अपरांत में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा गया था। इस संदर्भ में भी अपरांत से पश्चिम के देशों का ही अर्थ ग्रहण करना चाहिए। महाभारत शान्ति पर्व[8] से सूचित होता है कि शूर्पारक नामक देश को जो अपरांतभूमि में स्थित था, परशुराम के लिए सागर ने छोड़ दिया था।

'तत: शूर्पारकं देश सागरस्तस्य निर्ममे, सहसा जामदग्नस्य सोपरान्तमहीतलम'।

महाभारत सभा पर्व [9] से सूचित होता है कि अपरांत देश में जो परशुराम की भूमि थी तीक्ष्ण फरसे (परशु) बनाए जाते थे-

'अपरांत समुदभूतांस्तथैव परशूञ्छितान्'

गिरनार-स्थित रुद्रदामन् के प्रसिद्ध अभिलेख में अपरांत का रुद्रदामन् द्वारा जीते जाने का उल्लेख है-

'स्ववीर्यार्जितनामनुरक्त सर्वप्रकृतीनां सुराष्ट्रश्वभ्रभरुकच्छसिंधुसौवीरकुकुरापरान्तनिषादादीनां'-

यहां अपरांत कोंकण का ही पर्याय जान पड़ता है। विष्णुपुराण में अपरांत का उत्तर के देशों के साथ उल्लेख है। वायुपुराण में अपरांत को अपरित कहा गया है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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