रामाज्ञा प्रश्न
गोस्वामी तुलसीदास की यह एक ऐसी रचना है, जो शुभाशुभ फल विचार के लिए रची गयी है किंतु यह फल-विचार तुलसीदास ने राम-कथा की सहायता से प्रस्तुत किया है। यह सारी तुलसीदास की रचना दोहों में हैं, जो सात-सात सप्तकों के सात सर्गों के लिए पुस्तक खोलने पर जो दोहा मिलता है, उसके पूर्वार्द्ध में राम-कथा का कोई प्रसंग आता है और उत्तरार्द्ध में शुभाशुभ फल।
- भाषा
रचना अवधी में है और तुलसीदास की प्रारम्भिक कृतियों में है।
- रचना काल
रचना तिथि इसके निम्नलिखित दोहे में आती है- "सगुन सत्य ससिनयन गुन अवधि अधिक नय बान। होई सुफल सुभ जासु जस प्रीति प्रतीति प्रमान॥[1]" इस प्रकार रचना की तिथि सं. 1621 है।
- कला कौशल
इसमें स्वभावत: वह परिपक्वता नहीं है, जो 'मानस' अथवा अन्य परवर्ती रचनाओं में है। प्रबन्ध-निर्वाह में तो त्रुटि प्रकट है। तीसरे सर्ग तक कथा रामजन्म से सुन्दर-काण्ड के वानरसम्पाती-मिलन तक आकर लौट पड़ती है और आगे के तीन सर्गों में पुन: रामजन्म स प्रारम्भ होकर सीता अवनि प्रवेश तक चलती है। सातवाँ सर्ग बहुत स्फुट ढंग पर लिखा गया है, उसके छठे सप्तक में राम के वनगमन की कथा आती है, किंतु शेष छ: सप्तकों में कथा न देकर राम भक्ति मात्र कक सहारा लिया गया है।
- कथानक
कथा की दृष्टि से यह 'मानस' से कुछ विस्तारों में भिन्न है। जैसे इसमें विवाह के पूर्व का राम-सीता का पुष्म-वाटिका प्रसंग नहीं है। धनुर्भंग के बाद राम-विवाह की निमंत्रण लेकर जनक की ओर से दशरथ के पास शतानन्द जाते हैं। परशुराम-राम मिलन स्वयंवर-भूमि में न होकर बारात के लौटते समय मार्ग में होता है। वनवास में राम का प्रथम पड़ाव तमसा तट न होकर सुरसरि तट पर होता है। चित्रकूट में जनक का आगमन नहीं होता। सीता की खोज में जाने पर विभीषण से हनुमान की भेंट नहीं होती। सेतुबंध के अवसर पर शिवलिंग की स्थापना का उल्लेख नहीं है। अंगद को रावण के पास दूतत्त्व के लिए नहीं भेजा जाता है। साथ ही, इसमें सीता-राम के अयोध्या लौटने पर सीता के अवधि प्रवेश तक के कुछ ऐसे कथा-प्रसंग आते हैं, जो 'मानस' में नहीं हैं। जैसे मृत ब्राह्मण बालक को जीवन-दान (6,516), बक-उलूक तथा यती-श्वान विवादों का समाधान (6-6-1-3), सीता-त्याग और लव-कुश जन्म (6-6-4-6) तथा (7-4) और सीता का अवनि-प्रवेश (6-7-6)। इन अंतरों पर विचार करने से ज्ञात होता है कि कवि पर 'रामाज्ञा प्रश्न' की रचना तक' 'प्रसन्न राघव नाटक', 'हनुमन्नाटक' तथा 'अध्यात्म रामायण' का उतना प्रभाव नहीं था, जितना बाद को 'मानस' की रचना के समय हुआ। 'रामाज्ञा-प्रश्न' पर 'वाल्मीकि-रामायण' तथा 'रघुवंश' का अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव ज्ञात होता है।
- कवि रूप
रचना की तिथि निश्चित होने से यह ज्ञात होता है कि 'मानस' के पूर्व राम-कथा का कौन सा रूप कवि के मानस में था, इसलिए इसकी सहायता तुलसीदास की ऐसी रचनाओं के काल-निर्माण में सहायक हो सकी है, जिनमें रचना-तिथि नहीं आती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शशि=1, नयन=2, गुण=6, नय=4 तथा बाण= 5 और दोनों का आधिक्य (अंतर) =1
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 525।
बाहरी कड़ियाँ
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