श्रेणी:भक्ति साहित्य
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- कोमल चित अति दीनदयाला
- कोमलचित दीनन्ह पर दाया
- कोल कराल दसन छबि गाई
- कोल किरात बेष सब आए
- कोल किरात भिल्ल बनबासी
- कोल बिलोकि भूप बड़ धीरा
- कोलाहलु सुनि सीय सकानी
- कोसलपति गति सुनि जनकौरा
- कोसलपति समधी सजन
- कोसलपुर बासी नर नारि
- कोसलेस सुत लछिमन रामा
- कोहबरहिं आने कुअँर
- कौतुक कूदि चढ़े कपि लंका
- कौतुकहीं कैलास पुनि
- कौन जतन बिनती करिये -तुलसीदास
- कौन धौं सीखि ’रहीम’ इहाँ -रहीम
- कौसल्या कह दोसु न काहू
- कौसल्या कह धीर धरि
- कौसल्या के चरनन्हि पुनि
- कौसल्या के बचन सुनि
- कौसल्या जब बोलन जाई
- कौसल्या धरि धीरजु कहई
- कौसल्या सम सब महतारी
- कौसल्याँ नृपु दीख मलाना
- कौसल्यादि नारि प्रिय
- कौसल्यादि मातु सब
- कौसल्यादि मातु सब धाई
- कौसिक कहा छमिअ अपराधू
- कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु
- कौसिकादि मुनि सचिव समाजू
- क्रुद्धे कृतांत समान कपि
- क्रोध कि द्वैतबुद्धि बिनु
- क्रोध मनोज लोभ मद माया
- क्रोधवंत तब रावन
ख
- खंजन मंजु तिरीछे नयननि
- खग कंक काक सृगाल
- खग मृग परिजन नगरु
- खग मृग बृंद अनंदित रहहीं
- खग मृग हय गय जाहिं न जोए
- खगपति सब धरि खाए
- खगहा करि हरि बाघ बराहा
- खबरि लीन्ह सब लोग नहाए
- खबरि लेन हम पठए नाथा
- खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली
- खर दूषन बिराध तुम्ह मारा
- खर दूषन सुनि लगे पुकारा
- खर सिआर बोलहिं प्रतिकूला
- खरभरु देखि बिकल पुर नारीं
- खल अघ अगुन साधु गुन गाहा
- खल खंडन मंडन रम्य छमा
- खल परिहास होइ हित मोरा
- खल बधि तुरत फिरे रघुबीरा
- खल मंडली बसहु दिनु राती
- खल मनुजाद द्विजामिष भोगी
- खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी
- खाईं सिंधु गभीर अति
- खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा
- खेद खिन्न छुद्धित
- खेलत रहे तहाँ सुधि पाई
- खैंचि धनुष सर सत संधाने
- खैंचि सरासन श्रवन
- खैचहिं गीध आँत तट भए
ग
- गंग बचन सुनि मंगल मूला
- गइ मुरुछा तब भूपति जागे
- गइ मुरुछा रामहि सुमिरि
- गई बहोर गरीब नेवाजू
- गईं समीप महेस
- गए अवध चर भरत
- गए जानि अंगद हनुमाना
- गए देव सब निज निज धामा
- गए बिभीषन पास पुनि
- गए लखनु जहँ जानकिनाथू
- गए सुमंत्रु तब राउर माहीं
- गएँ जाम जुग भूपति आवा
- गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा
- गगनोपरि हरि गुन गन गाए
- गननायक बर दायक देवा
- गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुण्डा
- गयउ दूरि घन गहन बराहू
- गयउ मोर संदेह सुनेउँ
- गयउ सभा दरबार तब
- गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा
- गयउ सहमि नहिं कछु कहि आवा
- गयउँ उजेनी सुनु उरगारी
- गरइ गलानि कुटिल कैकेई
- गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा
- गरल सुधासम अरि हित होई
- गरुड़ गिरा सुनि हरषेउ कागा
- गरुड़ महाग्यानी गुन रासी
- गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही
- गर्जि परे रिपु कटक मझारी
- गर्भ स्रवहिं अवनिप रवनि
- गलीं सकल अरगजाँ सिंचाईं
- गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई
- गहसि न राम चरन सठ जाई
- गहहु घाट भट समिटि सब
- गहि गिरि तरु अकास कपि धावहिं
- गहि गिरि पादप उपल
- गहि गुन पय तजि अवगुण बारी
- गहि पद लगे सुमित्रा अंका
- गहि भूमि पार्यो लात मार्यो
- गहिसि पूँछ कपि सहित उड़ाना
- गहेउ चरन गहि भूमि पछारा
- गा चह पार जतनु हियँ हेरा
- गाँव गाँव अस होइ अनंदू
- गाथे महामनि मौर मंजुल
- गाधितनय मन चिंता ब्यापी
- गाधिसूनु कह हृदयँ हँसि
- गारीं मधुर स्वर देहिं सुंदरि
- गारीं सकल कैकइहि देहीं
- गावत राम चरित मृदु बानी
- गावहिं गीत मनोहर नाना
- गावहिं मंगल कोकिलबयनीं
- गावहिं मंगल मंजुल बानीं
- गावहिं सुंदरि मंगल गीता
- गावहिं सुनहिं सदा मम लीला
- गिरत सँभारि उठा दसकंधर
- गिरा अरथ जल बीचि
- गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी
- गिरा मुखर तन अरध भवानी
- गिरि कानन जहँ तहँ भरि पूरी
- गिरि ते उतरि पवनसुत आवा
- गिरि त्रिकूट ऊपर बस लंका
- गिरि त्रिकूट एक सिंधु मझारी
- गिरि पर बैठे कपिन्ह निहारी
- गिरि सरि सिंधु भार नहिं मोही
- गिरि सुमेर उत्तर दिसि दूरी
- गिरिजा कहेउँ सो सब इतिहासा
- गिरिजा जासु नाम जपि
- गिरिजा संत समागम सम
- गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा
- गिरिबर गुहाँ पैठ सो जाई
- गिरिहहिं रसना संसय नाहीं
- गीध देह तजि धरि हरि रूपा
- गीधराज सुनि आरत बानी
- गीधराज सै भेंट भइ
- गुंजत मंजु मत्त रस भृंगा
- गुंजत मधुकर मुखर अनूपा
- गुंजत मधुकर मुखर मनोहर
- गुन कृत सन्यपात नहिं केही
- गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा
- गुन ध्यान निधान अमान अजं
- गुन सील कृपा परमायतनं
- गुनह लखन कर हम पर रोषू
- गुनागार संसार दुख
- गुनातीत सचराचर स्वामी
- गुर अनुरागु भरत पर देखी
- गुर के बचन सुरति करि
- गुर गुरतिय पद बंदि प्रभु
- गुर नित मोहि प्रबोध दुखित
- गुर नृप भरत सभा अवलोकी
- गुर पद कमल प्रनामु
- गुर पद पंकज सेवा
- गुर पद प्रीति नीति रत जेई
- गुर पितु मातु बंधु सुर साईं
- गुर पितु मातु महेस भवानी
- गुर पितु मातु स्वामि सिख पालें
- गुर पितु मातु स्वामि हित बानी
- गुर बसिष्ठ कहँ गयउ हँकारा
- गुर बिनु भव निध तरइ न कोई
- गुर बिबेक सागर जगु जाना
- गुर रघुपति सब मुनि मन माहीं
- गुर श्रुति संमत धरम
- गुर सन कहब सँदेसु
- गुर सन कहि बरषासन दीन्हे
- गुर समाज भाइन्ह सहित
- गुरजन लाज समाजु
- गुरतिय पद बंदे दुहु भाईं
- गुरहि देखि सानुज अनुरागे
- गुरहि प्रनामु मनहिं मन कीन्हा
- गुरु के बचन सचिव अभिनंदनु
- गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन
- गुह सारथिहि फिरेउ पहुँचाई
- गुहँ बोलाइ पाहरू प्रतीती
- गुहँ सँवारि साँथरी डसाई
- गूढ़ कपट प्रिय बचन
- गूढ़ गिरा सुनि सिय सकुचानी
- गूलरि फल समान तव लंका
- गृह गृह बाज बधाव
- गे नहाइ गुर पहिं रघुराई
- गै जननी सिसु पहिं भयभीता
- गै निसि बहुत सयन अब कीजे
- गै श्रम सकल सुखी नृप भयऊ
- गो गोचर जहँ लगि मन जाई
- गो द्विज धेनु देव हितकारी
- गोपाल भट्ट गोस्वामी
- गोविन्द विरूदावली
- गौतम तिय गति सुरति
- गौतम नारि श्राप बस
- गौर किसोर बेषु बर काछें
- गौर सरीर स्याम मन माहीं
- ग्यान अगम प्रत्यूह अनेका
- ग्यान गिरा गोतीत अज
- ग्यान निधान अमान मानप्रद
- ग्यान निधान सुजान
- ग्यान पंथ कृपान कै धारा
- ग्यान बिबेक बिरति बिग्याना
- ग्यान बिराग जोग बिग्याना
- ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं
- ग्यानहि भगतिहि अंतर केता