अंतरिक्ष -अनूप सेठी

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अंतरिक्ष -अनूप सेठी
जगत में मेला' का आवरण चित्र
जगत में मेला' का आवरण चित्र
कवि अनूप सेठी
मूल शीर्षक जगत में मेला
प्रकाशक आधार प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, एस. सी. एफ. 267, सेक्‍टर 16, पंचकूला - 134113 (हरियाणा)
प्रकाशन तिथि 2002
देश भारत
पृष्ठ: 131
भाषा हिन्दी
विषय कविता
प्रकार काव्य संग्रह
अनूप सेठी की रचनाएँ

एक अंतरिक्ष है
सब उसमें हैं

बना लें अगर हम भी अपना एक अंतरिक्ष
सब हममें हो जाएं
शुरू हों समय से पहले
फैल जाएं समय के परे

नीली स्फटिक पृथ्वी हों हम
अग्निपिंड सूर्य हो एक
झूम झूम घूमें अनवरत
टिकें रहें शून्य में भी

एक चांद हो रातों में उजास भरने वाला
बलैंया लेकर घूमे कलाएं दरसाता
किंवदंतियों सा दिखा करे छिपा करे
तयशुदा दूरी हो पर हमारा हो
इस भरोसे नींद आए

अंतरिक्ष होगा पूरा
अनगिनत जब तारे गढ़ेंगे हम
दिपदिप अंधकार में ढूंढा करेंगे
कौन है जो झिलमिलाता है
कुछ कहता है बुलाता है

किसी के शायद सितारे हो जाएं हम भी

अनगिनत लोगों के साथ
रहते हैं हम बिसर जाते हैं

जब बनाएंगे अंतरिक्ष
कोई बिसरेगा न बिछड़ेगा
अनंत की छाती पर टंकेगा
टिमटिमाएगा
इतने पास होगा हमारे

हम इतने प्यारे हो जाएंगे
कोई सितारा जगाएगा
कोई सुलाएगा
ब्रह्मांड में रहेंगे हम अनंत

                      (1989)


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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