रहता यहाँ कोई नहीं जग है एक सराय, दुर्जन सज्जन सब चले काल खाय मुंह बाय । काल खाय मुंह बाय देखते सब ही रहते, कथा एक से एक जाय मरघट पर कहते । किसी-किसी को ज्ञान हो क्षण भर रहे उदास, शिवदीन राम गुन, गुन सरस, गा चल बारहों मास । राम गुन गायरे ।।
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