पुष्कर मेला
अजमेर से लगभग 11 कि.मी. दूर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुष्कर है। यहां पर कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं। पुष्कर मेले का एक रोचक अंग ऊँटों का क्रय–विक्रय है। निस्संदेह अन्य पशुओं का भी व्यापार किया जाता है, परन्तु ऊँटों का व्यापार ही यहाँ का मुख्य आकर्षण होता है। मीलों दूर से ऊँट व्यापारी अपने पशुओं के साथ में पुष्कर आते हैं। पच्चीस हज़ार से भी अधिक ऊँटों का व्यापार यहाँ पर होता है। यह सम्भवतः ऊँटों का संसार भर में सबसे बड़ा मेला होता है। इस दौरान लोग ऊँटों की सवारी कर ख़रीददारों का अपनी ओर लुभाते हैं। पुष्कर में सरस्वती नदी के स्नान का सर्वाधिक महत्त्व है। यहाँ सरस्वती नाम की एक प्राचीन पवित्र नदी है। यहाँ पर वह पाँच नामों से बहती है। पुष्कर स्नान कार्तिक पूर्णिमा को सर्वाधिक पुण्यप्रद माना जाता है। यहाँ प्रतिवर्ष दो विशाल मेलों का आयोजन किया जाता हैं।
विशेषताएँ
- पुष्कर मेला कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक लगता है। दूसरा मेला वैशाख शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक रहता है।
- मेलों के रंग राजस्थान में देखते ही बनते हैं। ये मेले मरुस्थल के गाँवों के कठोर जीवन में एक नवीन उत्साह भर देते हैं। लोग रंग–बिरंगे परिधानों में सज–धजकर जगह–जगह पर नृत्य गान आदि समारोहों में भाग लेते हैं। यहाँ पर काफ़ी मात्रा में भीड़ देखने को मिलती है। लोग इस मेले को श्रद्धा, आस्था और विश्वास का प्रतीक मानते हैं।
पुष्कर मेला थार मरुस्थल का एक लोकप्रिय व रंगों से भरा मेला है। यह कार्तिक शुक्ल एकादशी को प्रारम्भ हो कार्तिक पूर्णिमा तक पाँच दिन तक आयोजित किया जाता है। मेले का समय पूर्ण चन्द्रमा पक्ष, अक्टूबर–नवम्बर का होता है। पुष्कर झील भारतवर्ष में पवित्रतम स्थानों में से एक है। प्राचीनकाल से लोग यहाँ पर प्रतिवर्ष कार्तिक मास में एकत्रित हो भगवान ब्रह्मा की पूजा उपासना करते हैं। [1]
पशु मेला
कार्तिक के महीने में यहां लगने वाला ऊंट मेला दुनिया में अपनी तरह का अनूठा तो है ही, साथ ही यह भारत के सबसे बडे पशु मेलों में से भी एक है. मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन सा देखने को मिलता है. एक तरफ तो मेला देखने के लिए विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शरीक होने आते हैं. मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है. आम मेलों की ही तरह ढेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और न जाने क्या-क्या. ऊंट मेला और रेगिस्तान की नजदीकी है इसलिए ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं. लेकिन कालांतर में इसका स्वरूप एक विशाल पशु मेले का हो गया है, इसलिए लोग ऊंट के अलावा घोडे, हाथी, और बाकी मवेशी भी बेचने के लिए आते हैं. सैलानियों को इन पर सवारी का लुत्फ मिलता है सो अलग. लोक संस्कृति व लोक संगीत का शानदार नजारा देखने को मिलता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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