कवितावली (पद्य)-किष्किन्धा काण्ड

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कवितावली

किष्किन्धा काण्ड

 

समुद्रोल्लंघन

  

(समुद्रोल्लंघन)
जब अंगदादिनकी मति-गति मंद भई ,
पवनके पूतको न कूदिबेको पलु गो।
साहसी ह्वै सैलपर सहसा सकेलि आइ,
चितवत चहूँ ओर, औरति को कलु गो।
‘तुलसी’ रसातल को निकसि सलिलु आयो,
कालु कलमल्यो, अहि-कमठको बलु गो।ं
चारिहू चरन के चपेट चाँपें चिपिटि गो,
उचकें उचकि चारि अंगुल अचलु गो।।

(इति किष्किन्धा काण्ड )

इन्हें भी देखें: कवितावली -तुलसीदास

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