बी डी जत्ती
श्री बासप्पा दानप्पा जत्ती को श्री फ़ख़रुद्दीन अली अहमद की मृत्यु के बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया गया था। यह भारतवर्ष के निर्वाचित राष्ट्रपति नहीं थे। अतः इन्हें कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में ही सम्बोधित किया जाता है। भारतीय संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार उपराष्ट्रपति को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाए जाने की व्यवस्था है, यदि किसी भी कारणवश राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाए। फ़ख़रुद्दीन अली अहमद की मृत्यु के समय श्री बी.डी जत्ती देश के उपराष्ट्रपति पद पर थे। कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में इनका कार्यकाल 11 फ़रवरी 1977 से 25 जुलाई तक रहा। इस दौरान इन्होंने अपना दायित्व संवैधानिक गरिमा के साथ पूर्ण किया।
जन्म एवं परिवार
श्री बासप्पा दानप्पा जत्ती का जन्म 10 सितम्बर 1912 को बीजापुर ज़िले के सवालगी ग्राम में हुआ था। बीजापुर ज़िला कर्नाटक का विभाजित भाग भी बना। जब इनका जन्म हुआ, तो गाँव में मूलभूत सुविधाओं का सर्वथा अभाव था। इनका ग्राम मुंबई प्रेसिडेंसी की सीमा के निकट था। इस कारण वहाँ की भाषा मराठी थी, कन्नड़ भाषा नहीं। श्री बासप्पा के दादाजी ने सवालगी ग्राम में एक छोटा घर तथा ज़मीन का एक टुकड़ा ख़रीद लिया था। लेकिन आर्थिक परेशानी के कारण घर और ज़मीन को गिरवी रखना पड़ा ताकि परिवार का जीवन निर्वाह किया जा सके।
विद्यार्थी जीवन
उस समय सवालगी ग्राम में दो स्कूल थे, जो प्राथमिक स्तर के थे। एक, लड़कों का स्कूल और दूसरा, लड़कियों का स्कूल। बासप्पा बचपन में काफ़ी शरारती थे। वह शरारत करने का मौक़ा तलाश करते थे। बासप्पा अपनी बड़ी बहन के बालिका स्कूल में पढ़ते जाते और वह इनकी सुरक्षा करती थीं। दूसरी कक्षा के बाद इन्हें लड़कों के स्कूल में दाखिला प्राप्त हो गया। चौथी कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्हें ए. वी. स्कूल में भर्ती कराया गया, जो उसी वर्ष खुला था। यह स्कूल काफ़ी अच्छा था।
ए. वी. स्कूल की पढ़ाई समाप्त करने के बाद बासप्पा सिद्धेश्वर हाई स्कूल बीजापुर गए ताकि मैट्रिक स्तर की परीक्षा दे सकें। 1929 में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा पास कर ली। तब यह स्कूल के छात्रावास में ही रहा करते थे। वह खेलकूद में भी रुचि रखते थे। इन्हें फुटबॉल एवं तैराकी के अलावा कुछ भारतीय परम्परागत खेलों में भी रुचि थी। खो-खो, मलखम्भ, कुश्ती, सिंगल, बार एवं डबल बार पर कसरत करने का भी इन्हें शौक़ थ। उन्होंने लगातार दो वर्ष तक लाइट वेट वाली कुश्ती चैम्पियनशिप भी जीती थी।
दाम्पत्य जीवन
उस समय बाल विवाह की सामान्य प्रथा थी और इस प्रथा की चपेट में बासप्पा भी आए। 1922 में इनका विवाह भाभानगर की संगम्मा के साथ सम्पन्न हुआ जो रिश्ते में इनके पिता की बहन की पुत्री लगती थी। विवाह के समय बासप्पा की उम्र मात्र 10 वर्ष थी और वधू संगम्मा की आयु केवल 5 वर्ष। बाल विवाह की प्रथा के अंतर्गत विवाह छोटी उम्र में होते थे लेकिन कन्या को ससुराल कुछ वर्षों बाद भेजा जाता था।
व्यावसायिक जीवन
श्री बासप्पा की क़ानून की जो पढ़ाई अधूरी रह गई थी, वह इन्होंने टिक्केकर नामक तहसीलदार एवं प्रथम श्रेणी के दंडनायक रहे व्यक्ति की अभिप्रेरणा से पूरी की। तब वह क़ानून की शिक्षा के प्रति पूर्ण समर्पित भी हुए। इस दृष्टि से यह मानना उपयुक्त होगा कि टिक्केकर इनके परम मित्र, दार्शनिक एवं पथ-प्रदर्शक साबित हुए। अक्टूबर 1940 में बासप्पा ने कठोर श्रम द्वारा मुंबई विश्वविद्यालय से एल. एल. बी. की डिग्री कर ली।
उपाधि प्राप्त करने के बाद 1941 से 1945 तक बासप्पा ने जमाखंडी में वकालत की। इस दौरान इनका उद्देश्य ग़रीबों की मदद करना रहा। अपने मुवक्किलों को न्याय दिलाने के लिए वह संबंधित क़ानूनी मामलों में काफ़ी मेहनत करते थे और पारिश्रमिक की कोई परवाह नहीं करते थे। इनके ज़्यादातर ग्राहक ग्रामीण समुदाय के होते थे। इनकी सह्रदयता पर ईश्वर का आशीर्वाद बरसा। उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण क़ानूनी मामलों में सफलता प्राप्त की। इससे इनका नाम जमाखंडी के प्रसिद्ध वकीलों में आ गया।
राजनीतिक जीवन
1952 के भारत छोड़ो आन्दोलन में बासप्पा ने प्रजा परिषद पार्टी की ओर से प्रतिनिधित्व किया। जमाखंडी की प्रजा परिषद पार्टी में इन्हें सेक्रेटरी का पद प्रदान किया गया। इन दिनों बासप्पा को यह पसंद नहीं था कि इन्हें काँग्रेसी कहकर सम्बोधित किया जाए। 18 अप्रॅल 1945 को वह जमाखंडी स्टेट के मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। 25 अगस्त 1947 को यह प्रजा परिषद पार्टी की ओर से जमाखंडी स्टेट के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए। लेकिन जब राज्यों के पुनर्गठन का समय आया तो जमाखंडी स्टेट स्वतंत्र भारत का एक अभिन्न हिस्सा बन गया।
1952 में भारतीय गणराज्य का प्रथम आम चुनाव हुआ। इसमें बासप्पा ने काँग्रेस के टिकट पर जमाखंडी सीट से विधायक का चुनाव लड़ा और शानदार अंतर के साथ जीत अर्जित की। मुंबई राज्य में पहली जन चयनित लोकप्रिय सरकार बनी और श्री मोरारजी देसाई प्रथम मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए। बासप्पा को उपमंत्री का दर्जा प्राप्त हुआ। यह शांतिलाल शाह के साथ कार्य करने लगे, जिनके पास स्वास्थ्य और श्रम के महकमे थे। श्री शांतिलाल शाह ने श्री बासप्पा जत्ती को कार्य हेतु पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की। इन्हें लगता था कि यह स्वयं कैबिनेट मिनिस्टर हैं। 1 नवम्बर 1956 को मुंबई प्रोविंस में जो हिस्सा कन्नड़ भाषी प्रदेश था, उसे अलग करके मैसूर में मिला दिया गया। इस प्रकार बासप्पा जमाखंडी की जिस सीट से विधायक निर्वाचित हुए थे, वह सीट मैसूर विधानसभा के अंतर्गत आ गई। 10 मई 1957 को इन्हें मैसूर राज्य की भूमि सुधार समिति का चेयरमैन बना दिया गया। उन्होंने यहाँ अवैतनिक रूप से पूर्ण निष्ठा के साथ कार्य किया।
उपराष्ट्रपति पद
27 अगस्त 1974 को बासप्पा उपराष्ट्रपति पद का चुनाव काफ़ी अंतर के साथ जीत गए। इन्हें 78.7 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। इनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी श्री एन. ई. होरो को शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा, जो विपक्ष की कई पार्टियों के संयुक्त उम्मीदवार थे। 31 अगस्त 1974 को इन्हें राष्ट्रपति फ़खरुद्दीन अली अहमद ने उपराष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण कराई, जो राष्ट्रपति भवन के अशोक हॉल में प्रातः 8.30 बजे सम्पन्न हुई। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी, उनके कैबिनेट के सहयोगी, पूर्व उपराष्ट्रपति जी. एस. पाठक तथा बासप्पा की पत्नी संगम्मा भी मौजूद रहीं। यह 10 मिनट का संक्षिप्त समारोह था। इसके तुरंत बाद बी.डी. जत्ती राजघाट गए और महात्मा गाँधी की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित की। 31 अगस्त 1974 को बासप्पा द्वारा पदभार संभालने के साथ ही भारत सरकार के गजट में अधिसूचना प्रकाशित की गई, जिसका क्रमांक एस. ओ. 561 (ई) दिनांक 31 अगस्त 1974 था। उपराष्ट्रपति के रूप में उन्होंने अपना दायित्व बेहद कुशलता के साथ निभाया। राज्यसभा के सभापति के रूप में भी इन्होंने सदन का निष्पक्ष संचालन किया।
कार्यवाहक राष्ट्रपति
11 फ़रवरी 1977 को श्री फ़ख़रुद्दीन अली अहमद की मृत्यु राष्ट्रपति पद पर रहते हुए हो गई। एक ओर जहाँ दिवंगत राष्ट्रपति के अंतिम संस्कार की रूपरेखा तैयार की जा रही थी, वहीं दूसरी ओर संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार उपराष्ट्रपति बी.डी जत्ती को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाए जाने की औपचारिकताएँ भी पूर्ण की जा रही थीं। पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय फ़ख़रुद्दीन अली अहमद की मृत्यु के दो घंटे बाद बी. डी. जत्ती को प्रातः 10.35 बजे कार्यवाहक राष्ट्रपति की शपथ ग्रहण कराई गई।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख न्यायाधीश श्री एम.एच. बेग ने श्री बासप्पा दानप्पा जत्ती को कार्यवाहक राष्टपति के रूप में राष्ट्रपति भवन के अशोक हॉल में साधारण समारोह के दौरान शपथ ग्रहण कराई। श्री बासप्पा ने यह पदभार 24 जुलाई 1977 तक संभाला। इस दौरान इन्होंने छठवीं लोकसभा के नए सत्र का शुभारंभ होने पर सदन को सम्बोधित भी किया। इसके बाद नीलम संजीव रेड्डी देश के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। इनके निर्वाचित होने के बाद भी बी.डी. जत्ती ने 4 सितम्बर 1977 से 24 सितम्बर 1977 तक कार्यवाहक राष्ट्रपति का दायित्व निभाया क्योंकि श्री रेड्डी इस दौरान न्यूयार्क में चिकित्सा हेतु गए थे।
जब श्री नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित हो गए तो श्री बी. डी. जत्ती ने कार्यवाहक राष्ट्रपति का पदभार त्याग दिया। 25 जुलाई 1977 को इन्होंने कार्यवाहक राष्ट्रपति का पदभार छोड़ा और 30 अगस्त 1979 को उनका उपराष्ट्रपति पद का कार्यकाल समाप्त हो गया। इसके पश्चात जस्टिस मुहम्मद हिदायतुल्लाह नए उपराष्ट्रपति बनाए गए। 1 सितम्बर 1979 को उपराष्ट्रपति पद की गरिमा के अनुकूल निर्णय लेते हुए इन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और बंगलौर लौट गए।
मृत्यु
जीवन के अंतिम समय में बी.डी जत्ती बंगलौर में ही थे। उल्टी तथा पेट दर्द की शिकायत के कारण 7 जून 2002 को प्रातः काल इन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया और उसी दोपहर को उनका निधन हो गया। इस प्रकार एक परम्परावादी युग का अंत हो गया, जिससे गाँधी दर्शन भी समाहित था। उस समय इनके परिवार में पत्नी, तीन पुत्र एवं एक पुत्री थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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