सौभाग्य व्रत

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  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • सौभाग्यव्रत में कार्तिक पूर्णिमा पर 16 दलों वाले चित्रित कमल के बीजकोष पर स्थापित चन्द्र प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए।
  • कमल के किजल्कों (अंशुओं) पर 28 नक्षत्रों (अभिजित को लेकर) की पूजा करनी चाहिए।
  • पत्तियों पर तिथियों एवं उनके स्वामियों की पूजा करनी चाहिए।
  • व्रत के अन्त में दो वस्त्रों का दान देना चाहिए।
  • दस दिन उपवास या नक्त रहना चाहिए।
  • इस व्रत से कल्याण, सौन्दर्य एवं सम्भोग आनन्द की प्राप्ति होती है।[1]
  • एक वर्ष तक फाल्गुन एवं आगे की तृतीया पर नमक का त्याग करना चाहिए।
  • अन्त में एक घर एवं पलंग का सारी सामग्रियों के साथ दान तथा 'पार्वती मुझ पर प्रसन्न हों' के साथ एक सपत्नीक ब्राह्मण का सम्मान करना चाहिए।
  • कर्ता गौरीलोक वासी हो जाता है।
  • सौभाग्यव्रत तिथिव्रत; देवता गौरी हैं।[2]
  • वर्षक्रियाकौमुदी[3], यहाँ 'लवणम्' के स्थान पर 'शयनम्' आया है।
  • अग्नि पुराण[4] में भी यही श्लोक है।
  • पंचमी पर चन्द्र का पूजक दीर्घायु, धन एवं यश पाता है।[5]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 235-236, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण
  2. कृत्यकल्पतरु (व्रत खण्ड 441, मत्स्य पुराण 101|15-16); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 483, गरुड़ पुराण से उद्धरण
  3. वर्षक्रियाकौमुदी 29-30
  4. अग्नि पुराण 178224-25
  5. हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 574, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण

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