गोलमेज़ सम्मेलन प्रथम
प्रथम गोलमेज़ सम्मेलन का आयोजन 12 सितम्बर, 1930 ई. को 'सेन्ट जेम्स पैलेस', लन्दन में किया गया था। इस सम्मेलन का उद्घाटन तत्कालीन ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने किया और प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने सम्मेलन की अध्यक्षता की। इस 'प्रथम गोलमेज़ सम्मेलन' में कुल 89 प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिसमें 57 ब्रिटिश भारत के, 16 प्रतिनिधि भारतीय देशी रियासतों के तथा शेष 16 प्रतिनिधि ब्रिटेन के प्रमुख राजनीतिक दलों के संसद सदस्य थे।
देशी रियासतें तथा प्रतिनिधि
इस सम्मेलन में भारत की देशी रियासतों के अलवर, बीकानेर, भोपाल, पटियाला, बड़ौदा, ग्वालियर तथा मैसूर राज्य के प्रतिनिधि शामिल थे। 89 प्रतिनिधियों में से भारत के जो मुख्य प्रतिनिधि थे, वे इस प्रकार थे-
- हिन्दू महासभा - जयकर एवं बी.एस. मुंजे।
- उदारवादी - सी.वाई. चिन्तामणि एवं तेज़बहादुर सप्रू।
- मुस्लिम - आगा ख़ाँ, मुहम्मद शफ़ी, मुहम्मद इमाम, मुहम्मद अली जिन्ना और फ़जलुल हक।
- सिक्ख - सरदार सम्पूर्ण सिंह।
- ऐग्लो इण्डियन - के.टी. पाल।
- दलित वर्ग - डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर।
- व्यापारी - होमी मोदी।
सप्रू का गाँधी जी से निवेदन
प्रथम 'गोलमेज़ सम्मेलन' में प्रमुख राजनीतिक पार्टी 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' ने भाग नहीं लिया। पार्टी ने स्वयं को पूरी तरह इस सम्मेलन अलग रखा। 'गोलमेज़ सम्मेलन' के प्रतिनिधियों के भारत लौटने पर तेज़बहादुर सप्रु ने गाँधी जी से मिलकर उन्हे कांग्रेस की ओर से लॉर्ड इरविन से मिलने एवं बात करने के लिए राजी किया।
इरविन का दावा
दिसम्बर, 1930 ई. में 'मुस्लिम लीग' ने इलाहाबाद के सम्मेलन में 'नागरिक अवज्ञा आंदोलन' का विरोध किया। इसी कारण लॉर्ड इरविन को यह दावा करने का मौका मिल गया, कि कांग्रेस भारत के सभी लोगों की प्रतिनिधि पार्टी नही है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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